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इसे कहते हैं गूढ़ अर्थों वाली दूरदर्शी रचना वाह !! जीवन के के विविध रंग -छंद -
सन्दर्भ हैं इस ग़ज़ल में प्रणाम है आपको , आपकी लेखनी को !!
//तल्ख़ तस्वीर हकीकत की दिखायी जाए.
आचार्य जी - कमाल, बेमिसाल ! "मांग" और "मांग" - क्या बात है ! क्या अनुपम कारीगरी की है लफ़्ज़ों की ! एक बेटी की मांग तो दूजी दहेज़ की मांग ! वाह वाह वाह ! श्लेष अलंकार का उत्कृष्ट नमूना ! और संदेश भी इतना सुन्दर है कि पढ़ कर आनंद आ गया !
आदरणीय आचार्य जी - इस महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धन हेतु ह्रदय से आपका आभार व्यक्त करता हूँ ! ग़ज़ल के "मुहासिनो" से सनातन "अलंकारों" का सफ़र अभी नया नया ही है -अत: आपका मार्गदर्शन कदम कदम पर दरकार है ! सादर !
आदरणीय योगराज जी समझ में नहीं आ रहा है इस शे'र को कहां चस्पा करूं अत:
आपके शरण आया हूं शायद आप कोई वाज़िब जगह ढूंढ लें।
"कितनों की गज़लों को पढ फ़ाड़ चुका हूं कपड़े,
आपने सोदाहरण समझा दिया है आदरणीय सलिलजी सो अब आगे कहने को कुछ रह ही नहीं जाता.
श्लेष और यमक के मध्य का अन्तर स्पष्ट है.
दानी साहब, मज़ा आ गया.
बने रहें.. बनाए रखें.. :-)))
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