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आहा क्या बात है संजय जी आपकी ग़ज़ल भीड़ में ताज़ी हवा के झोंके के समान है हर शेर जानदार और बाकमाल !!
क्या मिला, जिन्दगी भर मंत्र हवस के पढ के,
सब्र की जादूगरी फिर से दिखाई जाये।
संजय भईया, बुत ही खुबसूरत यह शे'र लगा , यह हवस को जितना दाना पानी दिया जाए उतनी ही बढ़ने लग जाती है |
शानदार ग़ज़ल की प्रस्तुति , बधाई आपको |
//पैसों के मोह में क्यूं पैर पसारे बैठें,
त्याग के आंधियों से रेस लड़ाई जाये।//
आदरणीय डॉ० दानी साहब, बेहतरीन गज़ल के लिए दाद क़ुबूल फरमाएं|
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