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सलिल जी, हम सब आपसे सही मार्गदर्शन व कुछ ज्ञान प्राप्त करने के भिक्षुक हैं...और आपके अतुलित ज्ञान का प्रकाश मुझ जैसों को भी यहाँ कुछ मिल जाये तो अपने को धन्य समझूँगी. आप तो मेरे गुरु हैं..सदैव आदरणीय. आपने इतनी सुंदर रचना लिखी है नये मोती बिखराकर. बहुत-बहुत बधाई. अब अन्य काव्य रूपों को भी देखने की उत्सुकता से इंतज़ार है.
''अब तो नेताओं को सच्चाई दिखायी जाए.
अफसरी शान घटे, ज़मीं पर लायी जाए..
अदालतें न हों, चौपाल लगायी जाए.
आओ मिल-जुल के कोई बात बनायी जाए..
बहुत सहा है अब तक, न सहो अब लोगों.
अगर अभी न जगे, तो जगोगे कब लोगों??''
इसे कहते हैं तब्सिरा,
इस तरही-मुशायरे के उद्येश्य को --ग़ज़ल की विधा को आज के पाठकों के मध्य आम करने और सीखने-सिखाने का एक रोचक क्रम बन सके-- इसी ढंग से इण्टैक्ट रखा जा सकता है. मेरा इतना ही कहना था भाईसाहब.
ओबीओ के मंच पर इस तरही-मुशायरे के आयोजन के समानान्तर दो और मक़बूल आयोजन हैं जिनका रंग-ढंग बेलाग या फ्री-स्टाइल है. वहाँ हम पद्य और गद्य की अन्यान्य विधाओं में रचना प्रस्तुत कर सकते हैं.
मैं व्यक्तिगत तौर पर हार्दिकरूप से अभिभूत हूँ और हमसब के लिये गर्व कि अनुभूति होनी चाहिये कि अपने मध्य आचार्यवर सलिलजी, आदरणीय तिलकराजजी भाईसाहब, आदरणीय योगराजभाईसाहब, डाक्टर संजयभाईसाहब, आदरयोग्य आलोकसीतापुरीजी, सम्माननीय योगेन्द्रजी, राजेन्द्रप्रसाद भाईसाहब, आदरणीय धर्मेन्द्रजी या आदरणीय अम्बरीषजी जैसे अनेक सिद्धहस्त और उच्च कोटि के विद्वतजन तथा नई पीढी के संभावनाओं से भरे दैदिप्यमान हस्ताक्षर हैं. जिनका उठना-बैठना अपने मध्य होता है. और हम इस परिवार का हिस्सा हैं.
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