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ग़ज़ल
मापनी: 2122 2122 2122 212

आंख से आंसू कभी यों ही बहाया ना करो
दर्द दिल का भी जमाने को बताया ना करो

हर किसी को मुफ्त में कोई खुशी मिलती नहीं
मेहनत से आप अपना जी चुराया ना करो

जिन्दगी ले जब परीक्षा हौसलों से काम लो
आपदा के सामने खुद को झुकाया ना करो

हैं सफलता और नाकामी समय का खेल ही 
लक्ष्य से अपनी नजर को तो हटाया ना करो

जीत लेंगे जिन्दगी की जंग ’मेठानी‘ सुनो
तुम निराशा को कभी मन में बसाया ना करो


( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2019 at 1:00pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय..

Comment by Dayaram Methani on March 16, 2019 at 11:27pm

प्राेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी।

Comment by Dayaram Methani on March 16, 2019 at 11:26pm

प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी। आपका सुझाव कि मेहनत नहीं मिहनत होना चाहिए इस बारे में अवश्य विचार कर भविष्य में ध्यान रखूंगा। सादर।

Comment by Samar kabeer on March 16, 2019 at 7:56am

जनाब दयाराम मेठानी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'मेहनत से आप अपना जी चुराया ना करो'

इस मिसरे में 'मेहनत' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मिहनत"22 देखें ।

Comment by Sushil Sarna on March 15, 2019 at 8:13pm

बहुत सुंदर आदरणीय ... खूबसूरत अशआर से सजी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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