आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी
शीतल के घर में घुसते ही भाई की बेटी मुनिया (4 साल की) उससे आकर लिपट गई,शीतल ने स्कूल बैग उतार कर सोफे पर रख दिया,और मुनिया से बातें करने लगी,माँ अपने कमरे से निकल आईं "छोड़ इसे मूंह हाथ धो और खाना खा ले"। फिर "अरे तुलसी कहां मर गई" सामने डरी सहमी कांपती हुई आवाज़ में, "जी मांजी" बहु खड़ी थी। "कहां मर गई थी"? मां- "पता नहीं जूते खा कर भी तेरे हाथ क्यों नहीं चलते"? "चल जा शीतल को खाना लगा जल्दी" शीतल= भाभी को हमेशा की तरह डरा सहमा बदहवास सा देख रही थी मां के जाते ही भतीजी ने धीरे से बताया "दादी ने मां के ऊपर गरम चाय डाल दी थी"। शीतल:- "क्यों"? "मुनिया:-दादी बोल रही थी चाय फीकी है"
(शीतल दसवीं की छात्रा थी) उसे बहुत बुरा लगा था माँ भाभी पर बहुत अत्याचार करती हैं,बाबूजी और भैया भी माँ से डरते हैं,देखते रहते हैं कुछ नहीं कहते,
कभी मां के सामने आवाज़ नहीं निकलते.ये काम रोज़-रोज़ का था, भाभी की सहन-शक्ति पर शीतल को ताज्जुब होता है कि वो क्यों सहती रहती हैं,चली क्यों नहीं जातीं मायके, किसी दिन माँ उनकी जान ही न लेलें,?..आज शाम से माँ की मेहरबानी रोज़ के मुकाबले शीतल पर कुछ ज़्यादा थी। रात के खाने के समय माँ ने भैया और बाबू जी से बात छेड़ी के 'सरपंच भैरों सिंह जी' के यहां से 'शीतल' का रिश्ता आया है, (बहुत ख़ुश थी)लेकिन शीतल को मानो करंट लगा हो,उसने हिम्मत जुटाकर कहा "मैं शादी नहीं करूंगी" सब अवाक् रह गए (ये उसका पहला साहस था) माँ:- "क्या बक रही है"? शीतल ने फिर हिम्मत दिखाई "नहीं करूंगी शादी कभी-भी किसी से"। माँ आंखें निकाल कर, "क्यों"? शीतल:- "मुझे अपना जीवन नरक नहीं बनाना"। माँ:- "क्या मतलब"। शीतल:- "मतलब आपकी समझ में नहीं आता..?" "जो हालत भाभी की यहाँ है, अगर यही सब मुझे वहां भुगतना है,तो यहीं ठीक हूं"। (शीतल की आंखों से खौफ़ और क्रोध से लबरेज़ आंसुओं की धारा बहने लगी) वो हाथ जोड़कर बोली:- "मुझे ऐसा गृहस्थी नहीं बसाना,जिसमें बेगुनाह अबला नारी पर अत्याचार हों"(अपनी भाभी की तरफ़ देखकर) "जो आप दूसरे की बेटी को दे रहे हैं वही तो आपकी बेटी को मिलेगा"?
मौलिक /अप्रकाशित
आदाब। सुस्वागतम। बहुत बढ़िया प्रेरक प्रसंग को लघुकथा रूप देने का बढ़िया प्रयास। बहू/भाभी पर ज़ुल्म और बाल-विवाह के मुद्दे उभारती बालिका की सजगता पर बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी साहिब। चार पात्रों शीतल, मुनिया, तुलसी और माँ के बजाय मुख्य दो/तीन पात्रों को लेकर भी फ़्लेशबैक का इस्तेमाल कर इसे कहा जा सकता है मेरे विचार से।
जनाब बहुत बहुत शुक्रिया आपका मशविरा बिल्कुल दुरुस्त है, तवज्जो के लिये फिर से शुक्रिया मोहतरम ।
जरा देख कर बताएँ भाई आसिफ़ ज़ैदी जी, सम्प्रेष्ण कुछ बेहतर हुआ कि नहीं?
जनाब योगराज जी महोदय शुक्रिया, आभार आइन्दा ऐसे ही कोशिश करूंगा आपकी तवज्जो और ज़हमत के लिए फिर से शुक्रिया अदा करता हूँ सादर।
प्रदत विषय पर बहुत सुंदर कथ्य चुना है आपने भाई आसिफ जैदी जी. रचना की प्रस्तुति के विषय पर उसकी सटीक और प्रभावी रूप में, आदरणीय योगराज सर द्वारा मंच पर इसको रखने के बाद और कुछ कहना शेष नहीं रहा है. बरहाल विषयानुरूप रचना के लिए बधाई स्वीकार करें. सादर
आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया मोहब्बतें का।
आदरणीय आसिफ ज़ैदी जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी कथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय नीलम जी बहुत बहुत शुक्रिया सादर।
बहुत बढ़िया प्रसंग चुना है आपने प्रदत्त विषय पर लिखने के लिए आ आसिफ ज़ैदी साहब, बस प्रस्तुति में कसावट की जरुरत है जिसे आ योगराज सर ने दुरुस्त कर दिया है. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए
जनाब विनय कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया तवज्जो का भी शुक्रिया सादर
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