आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज जी।
जनाब मनन कुमार जी कहानी के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें,
मेरे समझ से कहानी में खुलासा नहीं हो पाया ..
आभार आदरणीय।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी इस बढ़िया लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई।
आपका आभार आदरणीय।
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।बेहतरीन लघुकथा।
बहुत बहुत आभार आदरणीय।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय मनन सरजी।
आभार आदरणीया।
लघुकथा ------------ अनुकरण ------------ आज पन्द्रह अगस्त की छुट्टी के कारण सिलाई कारखाने की भी छुट्टी थी । उसके घर टीवी नहीं थी ,इसीलिए वह सुबह ही काम सलटा कर कमला के घर टीवी देखने चली गई थी । अजीब सा जोश महसूस करती थी वह देश के नाम पर । सैनिक पिता की पुत्री जो थी । देशभक्ति के उत्प्रेरक प्रोग्राम दिखलाए जा रहे थे । एक चैनल पर शहीद जवानों के घर वालों , बहनों ,मांओं का साक्षात्कार चल रहा था:- " मुझे गर्व है मेरे पति देश की सीमा पर देश के लिए शहीद हुए । " " मैंने अपने बेटे को हमेशा यही शिक्षा दी है बेटा तुम भी अपने बहादुर पिता जैसे बनना । " " अरे , तुम तो रोने लगी सरिता। सच में दिल के आंसू निकाल देते हैं ऐसे वाकये ।" "हां बिल्कुल ठीक कह रही हो ।" अपने आंसू पोंछकर शरीर के घावों और चोटों के निशानों को सहलाती सरिता बोल उठी " पर मुझे दुगना दर्द दे जाते हैं जब मैं अपने बेटे को यह सिखाती हूँ कि " बेटा , तुम अपने पिता की तरह विल्कुल मत बनना ।"
मौलिक व अप्रकाशित
रचना के पीछे जो दिखाना चाहा गया है रचना में. मेरे विचार से वह भले ही रचना की अंतिम पंक्ति में स्पष्ट हो गया है लेकिन रचना 'प्रेरणा विषय पर पूरी तरह सटीक उतर रही है, ऐसा मुझे संदेह है. ये भी संभव है कि मैं रचना को न समझ पा रहा हूँ. बरहाल रचना के लिए मेरी ओर से बधाई आदरणीया कनक हरलालका जी. सादर
आदरणीय वीर जी , कथा पर ध्यान देने के लिए आपका हार्दिक आभार। आपके अनुसार कथा प्रदत्त विषय पर पूरी तरह सही नहीं बैठती है तो यह कथा की सार्थकता का अभाव है ।मैं इस पर विचार करने की चेष्टा करूँगी ।
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