आदरणीय साथिओ,
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रचना को समय देकर मेरा मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी ।
अच्छी और संदेशपरक लघुकथा है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० नीलम उपाध्याय जी.
रचना को समय देकर मेरा मान बढ़ाने के लिए बहुत बहुत आभार योगराज जी ।
विषय के अनुरूप रचना बढ़िया बनी है नीलम जी, परिवार के बीच कई समस्याओं का समाधान समझदारी से ही निकाला जाता है. बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी, रचना को समय देने के लिए बहुत बहुत आभार।
बेहतर सीख देती शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, रचना को समय देने के लिए बहुत बहुत आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी।बेहतरीन लघुकथा।अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों में ऐसी समस्या उत्पन्न होती रहती हैं। सुंदर विश्लेषणात्मक हल निकाला गया है।बढ़िया रचना।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीया नीलम दी।
बुढ़ापे की जिंदगी.
इस बार रिटायर लोगों की मासिक मीटिंग अमर सिंह के घर पर रखी गई, उनवान है बुढ़ापे की जिंदगी l बातचीत के दौरान सुरेश ने कहा,
"हमारे पड़ोसी गुप्ता जी का बेटा और बेटी शादी के बाद विदेश चले गए, भारत कम आते हैं, रुपए ज़रूर भेजते रहते हैं मगर उनकी और पत्नी की बुढ़ापे में सेवा करने वाला कोई नहीं है l औलाद को इतना नहीं पढ़ाना चाहिए कि वो दूर चली जाए l"
इसी बीच हामिद ने कहा,
"हमारे पड़ोसी अहमद भाई के चार बेटे दो बेटी हैं, बेटियों की जैसे तैसे शादी हो गई, दो बेटे अभी भी कुंवारे हैं, ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं इसलिए किसी के कोई नौकरी या रोज़गार नहीं, पेंशन से गुज़ारा नहीं चल पाता है, घर में लड़ाई का माहौल रहता है, ज़्यादा बच्चे और कम पढ़े होना भी माता पिता का बुढ़ापा खराब कर देते हैं "
पीछे से जॉन बोल पड़े,
"बुढ़ापा तो होता ही है परेशानी उठाने के लिए, बच्चों को पढ़ाओ तो मुश्किल न पढ़ाओ तो मुश्किल "
सबकी बाते सुन कर अमरसिंह कहने लगे,
"भाइयों बुढ़ापे के दौर से सबको गुज़रना पड़ता है, हम भी अपने माता पिता को छोड़ कर शहर नौकरी करने आए, हमारे बच्चे हमें छोड़ कर विदेश चले गए ये तो दुनिया की रीति है "
फ़िर वो बगीचे में खड़े पेड़ की तरफ़ इशारा करते हुए बोले,
"उसमें जो पिछले साल पत्ते आए वो पेड़ को छोड़ कर जारहे हैं, नए पत्ते आ रहे हैं, वो ये ग़म हर साल उठाता है मगर हिम्मत नहीं हारता है, हम सबको भी बुढ़ापे की हक़ीक़त का हँस कर सामना करना चाहिए "
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
बहुत सुंदर और प्रेरणादायी रचना प्रदत्त विषय पर, बुढ़ापा तो सबको आना है, उसका सामना करना ही बेहतर है. बधाई इस सुंदर रचना के लिए आ तस्दीक़ अहमद खान साहब
जनाब भाई विनय कुमार साहिब, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
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