आदरणीय साथिओ,
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मां बाप अपने सपने अपने बेटा-बेटी में देखते हैं । ताकि वे अपनी महत्वाकांक्षा को पूरी कर सकें। इसी मंशा को दर्शाती बहुत ही शानदार लघुकथा आदरणीय तेजवीर सिंह जी । हार्दिक बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय Omprakash Kshatriya जी।
प्रदत्त विषय पर बहुत ही बढ़िया कथा हुयी है आदरणीय तेजवीर सिंह जी। बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।
प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया और प्रेरणादायी रचना, बहुत बहुत बधाई आपको आ तेज वीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी।
आदाब। हालांकि हर विद्यार्थी की अपनी स्वाभाविक रुचि, रुझान व लक्ष्य होता है। किंतु ऐसे मामलों में प्रेरणा भी कमाल कर दिखाती है। बढ़िया उम्दा व संदेशवाहक रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।
जनाब तेज वीर साहिब, प्रदत्त विषय पर सीख देती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं ll
हार्दिक आभार आदरणीय सलीम रेज़ा रीवा साहब जी।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय तेजवीर सरजी।
इलाज
मुझे नहीं लगता बजाज साहब, हमें नर्सिंग होम में भर्ती मरीजों के लिए खाना 'प्रोवाइड' करवाने की जरूरत है।" उनके दिए सुझाव में मुझे कोई खास बात नहीं लगी।
"जरूरत है खान साहब। जितनी केयर हम अपने मरीजों की करते हैं, उतना ही ध्यान हमें उनके और उनके परिजनों के खाने का भी रखना चाहिए।"
"हमारा नर्सिंग होम कोई फाइव स्टार हॉस्पिटल्स की रेंज में नहीं आता। यहां आने वाले लोग मिडिल क्लास के होते हैं, और उन पर मरीज के इलाजी खर्चें में अलग से खाने का खर्च जोड़ देना, बिजनेस की नज़र से भी ठीक नहीं होगा।" मैं व्यवहारिक तौर पर सोच रहा था।
"ये मैंने कब कहा खान साहब, कि खर्चा हम मरीजों से वसूलेंगे। हम चेरिटेबल बेस पर केंटीन शुरू करेंगे।" उसके चेहरे पर विश्वास था।
"बजाज साहब, जकात और सदका मेरी कौम का एक हिस्सा जरूर है। लेकिन इतना अधिक तो मेरे बजट में भी नहीं आएगा।" मैंने अपना तर्क दिया।
"हम इसे पूरी तरह नो प्रॉफिट-नो लॉस पर शुरू कर सकते हैं। अपने स्टाफ के साथ 'कस्ट्मर' का भी इसमें एक उचित हिस्सा रख सकते है।" वह शायद निश्चय कर चुका था। "और यदि आप इस योजना के लिये साथ दें तो शुरुआती तौर पर मैं, अपनी सात दिन की सैलरी हर महीने देने की सहमति देता हूँ।"
"जहां तक मुझे याद है," मेरे चेहरे पर एक असमंजस के साथ मुस्कान भी थी। "एक दिन किसी लाचार को कुछ देने के सवाल पर आपने मेरी सोच को भी वाहियात बताया था। ये बदलाव कैसे...?"
"खान साहब!" एकाएक वह गंभीर हो गया। "आपने मुझे जब देखा था, मैं अपने स्वार्थ की अंधेरी गलियों में भटका करता था। लेकिन मैंने खुद को अभी कुछ दिन पहले ही देखने की कोशिश की है, जब एक स्लम बस्ती में मैंने किसी फ़रिश्ते को खैराती हस्पताल में लाचार मरीजों को स्वच्छ; पौष्टिक खाना बांटते देखा था।"
"कौन था वह?"
"एक डॉक्टर... जो बीमारों का ही नहीं बीमारी का भी इलाज कर रहा था।
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