आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय सलीम राजा रेवाजी आपकी इस अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।
आदाब। अंतिम प्रेरक संवाद के साथ विषयांतर्गत बहुत बढ़िया उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' साहिब। पहली पंक्ति में कमलेश शब्द दो बार टाइप हो गया है। योगेश ने कमलेश से कहा है न?
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आपकी इस प्रतिक्रिया और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकर कीजियेगा आदरणीय ओमप्रकाश सरजी।
आदरणीय बबिता जी आप का हार्दिक आभार . आप ने लघुकथा पर अमूल्य मत प्रदान कर मेरी हौसला अफजाई की हैं.
भोर होने को है - लघुकथा -
किरण अपने माँ बापू की एक मात्र संतान थी। माँ बापू दोनों ही उच्च शिक्षा प्राप्त थे। दोनों ही सेवा रत थे।
उनकी यही अभिलाषा थी कि किरण भी पढ़ लिख कर, कुछ ऐसा करे कि उनका नाम रोशन हो। अतः दोनों ही उसकी शिक्षा के प्रति बहुत सजग थे। शहर के सबसे अच्छे विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रही थी। साथ ही एक कोचिंग सेंटर से कोचिंग भी ले रही थी।
उसके अध्यापकों और कोचिंग के शिक्षकों की आम राय थी कि यदि किरण इसी तरह मेहनत और लगन से पढ़ती रही तो निश्चित रूप से आई आई टी के लिये चुन ली जायेगी। ऐसा सुनकर माँ का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता था।
लेकिन किरण को बापू का उसके प्रति रूखापन अधीर कर देता था। वे कभी भी उसकी किसी उपलब्धि पर खुशी जाहिर नहीं करते थे।
"माँ, क्या बापू हमेशा से ऐसे ही हैं। हर वक्त गुमसुम। कभी उनको हँसते हुए नहीं देखा?"
"नहीं रे, वे तो बहुत खुश मिज़ाज़ थे। उनके जीवन के कुछ खट्टे मीठे उतार चढ़ाव ने उन्हें एकदम से खामोश कर दिया।"
"ऐसा क्या हुआ उनके साथ? माँ बताओ ना?"
"वे बचपन से एक ही सपना संजोये थे कि फ़ौजी अफ़सर बनना है। लेकिन एक दुर्घटना ने उनका यह ख्वाब चकनाचूर कर दिया। वे हमेशा के लिये अपाहिज हो गये।"
"पर वे तो सरकारी नौकरी कर रहे हैं?"
"हाँ, यह नौकरी उन्हें विकलांग कोटे से मिली है। फिर शादी के बाद उन्होंने निर्णय लिया था कि हम अपने बेटे को फ़ौजी अफ़सर बनांयेंगे।लेकिन तुम्हारे जन्म के बाद उनकी यह इच्छा भी धराशाई हो गयी क्योंकि तुम्हारे जन्म के समय इतनी कंप्लीकेशंस हो गयीं थी कि मेरा गर्भाशय ही निकालना पड़ा।"
"माँ, तो क्या हम लोग कभी उनको हँसते मुस्कराते नहीं देख पांयेगे?"
"कौन जाने? इसका उत्तर तो ऊपरवाला ही दे सकेगा।"
"नहीं माँ इसका हल हमको ही खोजना होगा?"
"अरे बिटिया, तुम इन सब बातों में अपना समय बरबाद मत करो। अगले सप्ताह तुम्हारी आई आई टी की लिखित परीक्षा है| उसकी तैयारी करो।"
"नहीं माँ, मैंने निर्णय किया है कि मैं एन डी ए के माध्यम से भारतीय सेना में अधिकारी बनूंगी।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब, प्रदत्त विषय पर सीख देती सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
बहुत उम्दा लघुकथा कही है आ० तेजवीर सिंह जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी।
प्रदत विषय पर बहुत उम्दा लघुकथा प्रस्तुत की है आपने तेज वीर सिंह जी, रचना के शीर्षक से लेकर रचना का प्रस्तुतिकरण तक बढ़िया बना है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई जी.
हार्दिक आभार आदरणीय वीर मेहता जी।
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