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मुफ्त तालीम का हक मिल रहा बच्चों को मगर,
मुफलिसी कहती है मजदूरी सिखाई जाये.//
अद्भुत, लाजवाब और बेहतरीन प्रस्तुति
गज़ल के सारे तत्व ..तखय्युल, तगज्जुल, तवज़्ज़ुन और तहम्मुल मिजाजी का समावेश है....हासिल ए मुशायरा गज़ल है यह|
आदरणीय आलोक जी दिल खोलकर दाद दे रहा हूँ ....कबूल फरमाएं|
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मुफ्त तालीम का हक मिल रहा बच्चों को मगर,
मुफलिसी कहती है मजदूरी सिखाई जाये.
पीठ पीछे की बुराई तो चुगल करते हैं,
बात जो हो वो मेरे मुंह पे बतायी जाये.
आपका हँसता हुआ चेहरा बहुत खूब मगर,
जो पशे-पर्दा है सूरत वो दिखाई जाये.
हिर्श की आग जमाने से मिटे ना मुमकिन,
चाहे वो सात समंदर से बुझाई जाये.//
ग़ज़ल के भाव और शिल्प का क्या कहना ........बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें मित्र !
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तुम्हें बस अपनी फिकर, पीकर धुत्त रहते हो,
घर में भी चूल्हा जले- की कसम खाई जाये,
दारू का चस्का छोड़ कुछ बालबच्चों की सोचो
उन्हें कपड़े, जूते, किताब, कापी भी दिलाई जाए
बीवी का साथ निभाने की कसम खाई थी,
पीने की लत छोड़ अब कसम भी निभाई जाए//
बहुत अच्छा प्रयास .....बधाई शारदा जी !
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