आदरणीय साथिओ,
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ठंडा राजमा
गाड़ी आने में कुछ ही समय बाकी था।स्त्री के दिमाग़ मे अजीब सी उथल पुथल मची थी।
"अपनी हर कैद का कारण तुम खुद हो।" उस दिन पति ने कहा था।
"मतलब?"
"मतलब तुम खुद बाहर नहीं आना चाहती हो और सारा दोष मुझपर मढ़ती हो।"
" मसलन?"
"मसलन पहले मुझे मेरे काम खुद नहीं करने देती हो और जब मैं तुम्हारा आदी हो जाता हूँ तो शिकायत करती हो।"
" तुम्हे आराम देना, तुम्हारे सब काम करना मेरी गल्ती है ये ही कहना चाहते हो।" स्त्री का गला भर आया।
"नहीं ,पर जब मैं तुम्हारे लिये ये सब नहीं कर पाता तो मुझे असंवेदनशील क्यों कहती हो।" पुरुष झुँझला गया था।
"तो! क्या मेरा हक नहीं बनता कि तुम भी मेरे बारे में वैसे ही सोचो जैसे मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूँ।" स्त्री ने रुलाई रोकने की भरसक कोशिश की।
" कुछ हद तक ठीक है पर हम दोनो की मिट्टी अलग है।एक ढंग से नहीं सोच सकते। शिकायत करनी है तो बनाने वाले से करो।" पुरुष ने बात खत्म कर दी।
उसी दिन शाम को दोनो की सहमति बनी कि स्त्री कुछ दिन घर गृहस्थी और पुरुष से दूर अपने मन से जीयेगी ।
सामने डिस्प्ले में स्त्री की गाड़ी का नंबर तैरने लगा था
स्त्री के चेहरे पर हड़बड़ी थी। अब वो फोन पर हल्के से काँपती हुई ऊँगलियाँ चला रही थी।
"सुनो वो फ्रिज में जो राजमा रखा है एकदम निकालते ही खा मत लेना।गला पकड़ जायगा।"
उस तरफ नींद में डूबी "हूँ"
" मेरे निकलते ही सो गये होगे। पता था मुझे।देखो ये..और वो..।"एहतियात निर्देशों के बीच बीच में एक गीला सा 'हाँ पता है सब कर लोगे' भी जारी था।
स्त्री के सामने उसकी गाड़ी अब धीरे धीरे स्टेशन छोड़कर आगे बढ़ गई थी।
मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। विषयांतर्गत भी और पूर्वाग्रहों संग अहम को उभारती बहुत सुंदर सारगर्भित रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जोशी जी। शीर्षक भी बढ़िया व उम्दा।
/"अपनी हर कैद का कारण तुम खुद हो।"/... //पता था मुझे//... इन संवादों पर ग़ौर फ़रमाइयेगा।
पत्नियों के पूर्वाग्रह के कारण उनकी सोच एक दायरे में क़ैद रहती है। ऐसा आज क़तई नहीं है कि पति घर-गृहस्थी में.पत्नी का हाथ बंटाना न चाहता हो! पारस्परिक समझ व सूझबूझ का अभाव रहता है अहम या अहंकार के कारण। नींद लग जाने का आशय पत्नियाँ न जाने क्या ले लेती हैं? यह सच है कि हिंदुस्तानी बीवियाँ जीवनसाथी के अलावा समय-समय पर माँ, बहन, शिक्षिका या सहेली बन जाया करतीं हैं। लेकिन पतियों को घरेलू कामों के अयोग्य मान कर वे उन्हें अंडरएस्टीमेट कर ऐसे तंज कस दिया करतीं हैं कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना उचित लगने लगता है। तुम अपने कामों में लगी रहो; मैं अपने में। पत्नियों को भी अपने पूर्वाग्रहों की क़ैद से बाहर.आना चाहिए। आज का पति कई तरह से परेशान है। महिलाओं को धार्मिक-संस्कार अनुसार और भारतीय पत्नी बनकर रहना ही होगा आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ, आधुनिक बनने के साथ-साथ, मुख्य धारा में बहने के साथ-साथ।
आदरणीय उस्मानी जी नमस्कार
स्त्री पुरुष दोनो अलग मिट्टी के बने हैं। दिमाग के वो रसायन जो भावनाओं संवेदनाओं को कंट्रोल करते हैं रीएक्ट करते हैं, दोनो मे अलग हैं। इसमे दोनो में से किसी की श्रेष्ठता या कमतरी का प्रश्न नहीं है।//शिकायत करनी है तो बनाने वाले से करो//।
कैद से तात्पर्य संवेदनाओं की कैद से है जिससे स्त्री नहीं निकल पाती है। अक्सर आधुनिक लिवइन संबंधों में भी स्त्री आम महिला वाली ही भावना रखती है और भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है // स्त्री के सामने उसकी गाड़ी अब धीरे धीरे स्टेशन छोड़कर आगे बढ़ गई थी।//
रचना पर उठाये सार्थक विमर्श और सराहना के लिये हार्दिक आभार
रचना संदर्भित मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।
आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी रचना स्त्री-पुरुष के मनोभावों को व्यक्त करती हुई कुछ और भी कहती है।स्त्री सब करती है,उबती भी है;परंतु जिम्मेवारी से मुक्त होने की चाह भी नहीं है।और पुरुष, पत्नी कुछ नहीं करने देती, के बहाने खुद को कार्यमुक्त समझता है।यह क्रम जारी रहता है।
//स्त्री सब करती है,उबती भी है;परंतु जिम्मेवारी से मुक्त होने की चाह भी नहीं है।और पुरुष, पत्नी कुछ नहीं करने देती, के बहाने खुद को कार्यमुक्त समझता है।यह क्रम जारी रहता है।// जी कथा के मर्म तक पहुँचने के लिये हार्दिक आभार आदरणीय मनन जी।
मोहतरमा pratibha pande जी सुंदर, समझाइश, लघु कथा की बहुत बहुत मुबारकबाद क़ुबूल करें सादर ।
हार्दिक आभार आपका
आदरणीय प्रतिभा पांडेजी, स्त्रीपुरूष पर अपनीअपनी विचारधारा के अनुसार भावनात्मक रूप से लिखी गई इस रचना के लिए हार्दिक बधाई.
हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी
आदरणीय प्रतिभा जी यह स्त्री का स्वभाव है कि वह अपना क्षेत्र अपनी गृहस्थी में किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाती।हमेशा से संरक्षण में पति का ध्यान रखना उसकी आदत में इस प्रकार शामिल हो जाता है कि वह चाह कर भु इससे छुटकारा नहीं पा सकती । बहुत बढ़िया कथा के लिए बधाई ।
कथा पर सार्थक टिप्पणी और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार आदरणीया कनक जी
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