आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय कनक हरलालका जी आप ने एक स्त्री की तुलना रफ कॉपी से कर के उस के द्वारा हवाईजहाज की तरह उड़ने की कल्पना से रचना में एक नई ऊर्जा का संचार किया है. इस अपने महत्व को प्रदर्शित करती रचनाके लिए हार्दिक बधाई.
आदरणीय ओंमप्रकाश जी कथा पर सकारात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार
"ओह.. मम्मी रफ कॉपी होने से क्या हुआ, बहुत जरुरी कॉपी होती है यह। सारे सबजेक्ट के नोट इसी में तो लिखे होते हैं। हम इसमें गेम भी खेलते हैं और ड्राइंग भी तो इसीमें बनाते हैं।इसके बिना तो काम ही न चले।"// बहुत कुछ कह रही हैं ये पंक्तियाँ। वैसे रफ काॅपी बनने में/ बने रहने में ,अपनी महानता समझना स्त्री की भूल है। विचारोत्तोजक कथा के लिये बधाई आदरणीया कनक जी।
आदरणीय प्रतिभा जी हार्दिक आभार आपका ।पर कोई रफ कॉपी बनती नहीं है बना दी जाती है फिर भी रफ कॉपी बहुत जरूरी होती है ।
आदरणीया Kanak Harlalka जी बहुत बहुत बधाई सुंदर रचना की सादर ।
हार्दिक आभार आदरणीय।
परिवार की महत्वपूर्ण कापी होती है स्त्री् जिसके बिना परिवार की कल्पना बेमानी है।परिवार की देखभाल उसका दायित्व है तो परिवार काफी उनके प्रति दायित्व सुनिश्चित होना चाहिये।कथा के लिये बधाई आद० कनक हरलालका जी ।
हार्दिक बधाई आदरणीय कनक जी। एक गंभीर विषय को कितने मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रतीकात्मक शैली द्वारा वर्णित किया है। बेहतरीन लघुकथा।
बहुत धन्यवाद आदरणीय तेजवीर जी .
हार्दिक आभार आदरणीया नीता कसार जी ।
दादी - लघुकथा -
सुमेर सिंह रसोईघर के पास ही चटाई बिछा कर गर्म गर्म रोटियाँ खा रहा था।अचानक उसने खाने से भरी थाली गुस्से में इतनी जोर से फेंकी कि खाने की सारी चीजें दाल,सब्जी,रायता,अचार,सलाद और रोटी पूरे आँगन में बिखर गयी।और खाली थाली फर्श पर घिसटती हुई दादी जी के कमरे की चौखट से जा टकराई। थाली के टकराने से जो झन्नाटेदार आवाज़ हुई तो दादी भी चौंक गयी।
इधर सुमेर सिंह अपनी घर वाली को अनाप सनाप गालियाँ बके जा रहा था। सुमेर की चिल्लपों सुनकर दादी भी बाहर आ गयीं," क्या हुआ रे सुमेर, क्यों आसमान सिर पर उठा रखा है?"
"सारे दिन कारखाने में हाड़ तोड़ मेहनत करो | ऊपर से मालिक की बकबक सुनो। घर आओ तो ये साली ढंग से खाना भी नहीं खिला सकती।"
"इसका मतलब यह है कि तू अपने कारखाने के मालिक से जो डांट खाया था उसका गुस्सा घर में दिखा रहा है।"
"ऐसी बात नहीं है। मैं देख रहा हूँ कि कभी बाल कभी कंकड़ निकलते ही रहते हैं खाने में।"
"तुझे क्या लगता है कि यह जान बूझकर तेरे खाने में बाल या कंकड़ मिलाती है।"
"मैंने ऐसा नहीं बोला लेकिन इसके पास एक ही तो काम है वह भी ठीक से नहीं होता।"
"एक ही काम? अरे मूर्ख, सुबह से शाम तक खटती है बेचारी।घर के सारे काम झाड़ू पोंछा, बर्तन धोना,छह लोगों का दोनों समय चाय नाश्ता और दो समय का खाना,सबके कपड़े धोना, सुखाना,इस्त्री करना,बच्चों को स्कूल के लिये तैयार करना आदि।"
"वह सब ठीक है पर मेरे खाने में तिनका भी आ जाये तो मेरी खोपड़ी खराब हो जाती है।"
"अच्छा सुमेर एक बात बता, ईमानदारी से, तेरा मालिक महीने में कितनी बार तुझे डाँटता है?"
"अरे वह तो एक दिन भी बिना डाँटे नहीं मानता। बहुत खड़ूस है।"
"अब ये बता तेरी घरवाली भी अपनी पड़ोसिनों और सहेलियों से तुझे खड़ूस बताये तो तुझे कैसा लगेगा।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आप की संवाद शैली में लिखी गई रचना गजब की होती है. आप अंतिम पंक्ति में पूरी लघुकथा का निचौड़ दे देते हैं. पढ़ कर ऐसा लगा कि हम वही बात करते हैं जो नहीं करना चाहिए. बेहतरीन संदेश देती इस रचना के लिए मेरी दिलीमुबारकबाद कबूल कीजिएगा.
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