आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बहुत सुंदर प्रस्तुति।
आदाब। रचना पर समय देकर मुझे यूं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
अच्छी लघुकथा है भाई उस्मानी जी. प्रयास किया करें कि लघुकथा में कथा-तत्व प्रचुर मात्रा में हो. वर्ना रचना महज़ एक ख्याल सा बन कर रह जाती है. बहरहाल, मेरी बधाई स्वीकार करे,
आदाब। रचना पर समय देकर बहुत ही महत्वपूर्ण हिदायत और समझाइश देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया मंच संचालक महोदय जनाब योगराज साहिब। कथा वस्तु विषयक इस कमी पर विस्तार से मार्गदर्शन हासिल करना चाहता हूँ सोदाहरण।
वक़्त का तक़ाज़ा - लघुकथा -
आज का दिन अमोल के जीवन का अनमोल दिन था। आज उसकी सुहागरात थी। वह खुशियों के ऐसे रथ पर सवार था जिसमें सूरज की तरह सात घोड़े जुते हुए थे। उसे लग रहा था जैसे उसे पंख उग आये हैं और वह सबसे ऊपर आसमान पर उड़ रहा है।
उसकी इस मधुर मिलन के लिये व्याकुलता इसलिये भी अधिक बढ़ चुकी थी क्योंकि सगाई के बाद बार बार शादी की तारीख खिसकती रहती थी। यह देरी नंदिनी के परिवार की ओर से हो रही थी। जिसके मूल कारण का ज्ञान तो उसे नहीं था| परंतु मन आशंकित था।
वह बड़ी बेचैनी से उस पल का इंतज़ार कर रहा था जब वह अपनी खूबसूरत पत्नी का घूंघट उठायेगा। उसके कोमल अधरों का चुंबन लेगा।उसके साथ अपने भावी जीवन की कल्पनाओं को साकार करने के सपने बांटेगा।
आखिरकार वह घड़ी आ ही गयी जब घर की महिलाओं द्वारा उसे वधु के कक्ष में जबरन धकेल दिया गया। मन तो उसका भी यही चाह रहा था मगर झूठ मूठ को दिखावे के लिये ना नुकर कर रहा था।
जैसे ही अमोल ने वधु का घूंघट उठाया, वह बदहवास बाहर भागा,"माँ मेरे साथ धोखा हुआ है। यह वह लड़की नहीं है जिसकी फोटो मुझे दी थी।"
"नहीं अमोल, यह वही लड़की है।"
"कैसी बात कर रहे हो माँ। यह देखो उसकी फोटो। अभी भी मेरे पर्स में रखी है।"
"यह फोटो उसके चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी से पहले की है।"
"क्या मतलब?आप क्या कह रहे हो? स्पष्ट करो?"
"यह वही नंदिनी है जिससे तुम्हारी सगाई हुई थी। सगाई के बाद एक लड़के ने अपने दोस्तों की मदद से शाम के धुंधलके में नंदिनी के चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया था क्योंकि वह उससे एक तरफ़ा प्यार करता था।"
"तो नंदिनी के परिवार को उनके खिलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिये थी।"
"वे लोग यही करने वाले थे लेकिन नंदिनी ने उन्हें रोक दिया था।"
"पर नंदिनी ने ऐसा क्यों किया? अपराधी को सज़ा तो मिलनी ही चाहिये थी।"
"क्योंकि उन लड़कों के साथ तुम भी थे।"
"माँ, इतनी बड़ी बात हो गयी और मुझे किसी ने कानों कान भनक तक नहीं लगने दी?"
"अगर तुम्हें सब कुछ बताया जाता तो क्या तुम इस शादी के लिये तैयार होते?"
"माँ, यह तो मैं अभी भी जानना चाहता हूँ कि इस हादसे के बाद भी आप लोगों ने मेरी शादी उसी लड़की से क्या सोच कर करा दी?"
"बेटा, हम लोगों ने गूढ़ मंत्रणा के पश्चात यही निष्कर्ष निकाला कि तुम्हारी इतनी बड़ी भूल का प्रायश्चित करने का एक अवसर तो तुम्हें अवश्य ही मिलना चाहिये।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
आ. भाई तेजवीर जी , सादर अभिवादन। बेहतरीन कथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
आदाब। सबक़ सिखाती बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब। एक तरफ़ा प्यार करने वाले उस निर्दयी लड़के के साथियों में शामिल होने की बहुत बड़ी सज़ा के रूप में प्रायश्चित अमोल से करवाया गया... विवाह और वैवाहिक जीवन जैसे मसले में ऐसा करवाना. कितना उचित है दो युवाओं के जीवन को दांव पर लगाकर? वक़्त का तक़ाज़ा है। समाज में परिवारजन वास्तव में ऐसे फैसले भी कर लिया करते हैं। मेरे एक परिचित सहपाठी के पंडित सैनिक मित्र ने वर्षों पुराने अपने वचन को निभाते हुए बिना लड़की दिखाये अपने परास्नातक होनहार बेटे की शादी बाप-बेटे के पारंपरिक विश्वास के आधार पर एक मानसिक रूप से विक्षिप्त युवती से करा दी। इस रिश्ते को वह अभी भी निभा रहा है संतानों के साथ। ऐसा उसने एक मुलाकात में मुझे बताया अभी कुछ महीने पहले ही। उपरोक्त रचना में संपादन व कसावट की गुंजाइश लग रही है मुझे। सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।
बहुत बढ़िया लघुकथा कही है आ० तेजवीर सिंह जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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