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ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अप्रैल 2020

दिनांक 19.04.2020, रविवार को ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य-संध्या माह अप्रैल 2020 का ऑन लाइन आयोजन हुआ I इसके प्रथम चरण में ओज और आवेश के युवा कवि श्री मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ के निम्नांकित गीत पर परिचर्चा हुयी I

बुद्धि के चातुर्य  से आपत्ति का  करती  दमन,

आपके इस रूप का है अनुगमन शत-शत नमन।

            बालपन  से हठ,  निराशा की  सुखद  संजीवनी,

            घट अमिय यौवन ,भरा विश्वास,वाणी की धनी।

            श्रेष्ठ , ज्ञान चिंतन की सलिला मनोहर कामिनी,

            ओस की हो बूँद प्रिय नभ में कड़कती दामिनी।

वाटिका हो पुष्प की यश, मुक्ति का हो आचमन,

आपके इस रूप का है अनुगमन शत-शत नमन।

            अरुणिमा हो सूर्य  की, हो  पूर्णिमा  की यामिनी,

            तेज असि की धार सी, कोमल कली सी मानिनी।

            भक्ति में अनुरक्ति में हो राधिका सी श्याम की,

            त्याग में, तप शक्ति में श्री राम की हो जानकी।

पुण्य के शुभ द्वार पर जीवंतता का आगमन,

आपके इस रूप का है अनुगमन शत-शत नमन।

 

इस गीत पर सबसे पहले डॉ. अंजना मुखोपाध्याय ने अपने विचार प्रस्तुत किये उनका कहना था कि मेरी समझ से नारी की शांत समाहित शक्ति का कवि ने इस कविता में आत्मिक अभिनंदन किया है । उसकी कोमलता तथा कठिनता, भक्ति तथा त्याग का जीवंत रुप मनुज जी की लेखनी ने अपनी सृष्टि में अलंकृत किया है, अभिवन्दित किया है ।

कवयित्री नमिता सुंदर का कहना था कि मनोज की कविता जहाँ तक हम समझ पाये... स्त्री के अस्तित्व में समाहित विभिन्न आयामों का लेखा-जोखा है, जिसके सशक्त, सुकोमल, पहलुओं को अपनी क्लिष्ट शब्दावली में उन्होंने व्यक्त किया है I  

ग़ज़लकार आलोक रावत ‘आहत लखनवी ‘के अनुसार मनोज जी बहुत अच्छे छंदकार व गीतकार हैं और उनकी लेखनी सभी विषयों पर निरंतर और समान रूप से चलती है I  जो कविता यहाँ पर विचार विमर्श के लिए प्रस्तुत की गयी है,  सर्वप्रथम तो मैं उस कविता को यह समझ रहा था कि यह कविता माँ शारदे के लिए लिखी जा रही है किंतु अंत तक पढ़ने पर यह समझ में आया की यह कविता स्त्री के आंतरिक और बाह्य स्वरूप का निरूपण कर रही है और इसमें उन्होंने अपनी तरफ से नारी के सभी  गुणों को समाहित करने का प्रयास किया है, किंतु मुझे यह लगता है कि अभी इस कविता में विस्तार की और भी संभावनायें हैं । साथ ही यह भी है कि गीत की अपनी सीमा भी होती है  I

डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव के अनुसार मनुज की इस कविता में ‘घट अमिय यौवन’, ‘मनोहर कामिनी’ और ‘मानिनी’ जैसे विशेषण होने पर भी गीत प्रथमतः वाणी वंदना ही आभासित होता है I इसमें स्त्री के सौन्दर्य और गुणों का वर्णन हुआ है I कवि ने उपमा अलंकार की योजना की है I साथ ही विशेषण और विशेष्य का उपयोग भी किया है हालाँकि कर्मधारय की योजना नहीं बन पाई है I उपमा भी मालोपमा बनने की दिशा में बढी जरुर पर ठिठक कर रह गयी i इस प्रस्तुति में मनुज ने सममात्रिक चतुष्पद गीतिका छंद का प्रयोग किया है I

      मनुज ने इसमें 12,14 और 14,12 पर यति रखी है और दोनों ही मान्य है I हर चरण का विन्यास 2122 2122 2122 212 की तर्ज पर हुआ है I मगर छंद को गीत बनाने हुए मनुज ने टेक के चरणांत में लघु गुरु (IS) का पालन क्यों नहीं किया, यह बात समझ में नहीं आयी I इसके विपरीत मनुज ने छंद जिस कौशल से सिद्ध किया है उसकी सराहना करनी ही पड़ेगी I

डॉ. कौशाम्बरी के अनुसार प्रस्तुत गीत में नारी के दैदीप्यमान, बहुआयामी व्यक्तित्व से  प्रभावित कवि मंत्रमुग्ध सा उसे नमन करता, सराहता, अनुसरण करता दिखता है. कविता में प्रस्तुत तुलना एवं व्याख्यायें अद्वितीय हैं जिसमें नारी को गुणों का आगार बताते हुए मन प्राण से शक्तिस्वरूपा दर्शाया गया है I  

डॉ. अशोक शर्मा जो बड़े उपन्यास लिखते है वे प्रतिक्रिया देने में बड़े ही कृपण हैं I उनका कथन था कि मेरे लिए आदरणीय मनोज जी कविता अच्छी तो है, पर मुश्किल कविताओं  में है I

गजलकार भूपेंद्र सिंह ने कहा कि "मनुज" जी का पारंपरिक छंद-लेखन तथा गीत-सृजन, दोनों पर समानाधिकार है I प्रस्तुत गीत भी उनकी जटिल कल्पनाशीलता तथा कौतूहल-जनक शब्द-विन्यास का अनूठा उदाहरण है I  दो बन्दों के इस गीत में मनोज जी ने उस छवि का वर्णन पूर्णता से किया है जिसका वे अनुगमन करते हैं और जिसे वे शत-शत नमन करते हैं I ऐसी छवि जिसमें बालकों का हठ व सामयिक निराशा है, जिसमें यौवनामृत तथा उससे उपजा आत्मविश्वास है .. श्रेष्ठ वाणी है, चिंतन तथा ज्ञान है .. मनोहारी छवि है ये.      सूर्य की लाली या पूर्णिमा की रात्रि .. तेज़ तलवार या कोमल कली. राधिका तथा सीता के अवयवों से युत .. पुण्य के प्रताप से जीवंत. विविध तत्वों से परिपूर्ण इस देवी तुल्य अस्तित्व को पाठक स्वतः अनुभव तो कर लेता है पर एक सुनिश्चित रूप नहीं दे पाता. यह पाठक के लिए एक चुनौती है. सर्वांगीणता की प्रतिमूर्ति ये नवजात कन्या भी हो सकती है तो जीवन संगिनी या कोई देवी भी I गीतिका छंद में लिखी हुयी ये कविता मनोज जी की परिकल्पना,  अनुभूति तथा वैचारिक व्यापकता का सुन्दर उदाहरण है I

डॉ. शरदिंदु मुकर्जी का कहना था कि मनोज जी की कविता को मैं भी पहले माँ शारदे की उपासना समझ रहा था । फिर बात कुछ और हुई। गोपाल नारायण जी ने बड़े विस्तार से चर्चा की है। मैं अपनी ओर से केवल जानना चाहूँगा कि "निराशा की सुखद संजीवनी" से मनोज जी का क्या तात्पर्य है?  

रचनाकार ‘मनुज‘ ने ही इसका समाधान किया – ‘आपका प्रश्न बाजिब है I प्रयोग भ्रम उत्पन्न करता है ....निराशा में सुखद संजीवनी कर दूँगा । ये गीतिका छंद पर आधारित है । नायिका का ही स्पष्ट वर्णन है । कामिनी का अर्थ सुंदर स्त्री ही होता है ।गमन/नमन/चमन/दमन सभी तुकांत तुकांतता के नियमों के अनुसार ही हैं ।

कवयित्री संध्या सिंह के अनुसार मनोज जी छंद और गीत में बहुत प्रवीण हैं I  प्रस्तुत गीत में भी उन्होंने एक आदर्श स्त्री के मापदंड सामने रखे l यद्यपि मुझे ये समझने में बहुत समय लगा कि वो किसे संबोधित कर रहे हैं .... कई बार पढ़ने पर अर्थ खुले और एक वंदनीय स्त्री के आदर्श रूप ने मस्तिष्क पटल पर आकार लिया I

डॉ श्रीवास्तव -बात तुकांत की नहीं  चरण का अंत IS (लघु गुरु से होना चहिये I

मनुज- आदरणीय ये छंद नहीं गीत है । आधार मात्र लय के लिए होता है । गीत में ऐसी कोई शर्त नहीं  होती । गीत की शर्त तो लय और मात्रा भार बराबर रहने की ही होती है , जो पूर्ण है, कहीं छंद   का नाम इंगित भी नहीं किया । कोई बात नहीं हर रचना का अपना भाग्य होता है I

डॉ श्रीवास्तव- मनुज जी छंदाधारित गीत होते है, यदि आपने छंद का दामन थाम ही लिया तो फिर उसका निर्वाह तो बनता ही है I

मनुज -लय है तो छंद  है नाम बदल सकता है I कोई भी लय बद्ध पँक्ति किसी न किसी छंद  में ही निबद्ध होती है I

    इस बीच मृगांक श्रीवास्तव जी का विचार आया –‘सभी लोगों ने बहुत अच्छी अच्छी टिप्पणियां दी है। उसके आगे मेरा कुछ कहना पुनरावृत्ति ही होगी ।‘ मनोज शुक्ल जी को ऐसी उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई।

मनुज -जो लोग जादूगरी दिखाते कि अमुक गीतकार का अमुक गीत इस छंद पर वो केवल अपना ज्ञान बघारने की कोशिश करते हैं । लय बद्ध गीत में कोई न कोई छंद तो होता ही और लय नहीं तो गीत भी नहीं । आप लोगों का उत्साहवर्धन संवल प्रदान करता है I  

डॉ श्रीवास्तव - मनोज जी चर्चा में लेखकीय वक्तव्य भी शामिल है आप भी अपने रचना के बारे में अपना वक्तव्य दे , यह आवश्यक है I

कवयित्री आभा खरे ने अपने विचार रखे - मनोज जी के गीत चाहे वो शृंगार के हों या ओज के, हमेशा ही प्रभावित करते हैं ।....बस कुछ क्लिष्ट शब्दों के कारण मुझ अल्पज्ञानी को कुछ पंक्तियों को समझने में मुश्किल पेश आती है ...पर थोड़े से जतन से आसानी से ग्राह्य हो जाती हैं।

अंत में विवेच्य गीत के रचयिता  मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ ने लेखके वक्तव्य देते हुए कहा कि ये 2122 2122 2122 212 के मात्राभार पर एक छोटा सा श्रृंगार गीत है। छोटा इसलिए कि मैं दो बन्ध के गीत बहुत कम लिखता हूँ । गीत में नायिका के गुणों की कल्पना है, यदि ये देवी वंदना लगी आप सबको तो लिखना और सार्थक रहा क्योंकि प्रेम का उच्चतर रूप तो दर्शन ही है ।

                                                                                                        537 A /005, महाराजा अग्रसेन नगर

                                                                                                             फैजुल्लाह गंज, लखनऊ -226021  

  (मौलिक व अप्रकाशित )

 

 

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