सवैये का यह प्रकार जगण यानि जभान या लघु गुरु लघु (।ऽ। ) की आवृति पर चलता है. अर्थात -
सुमुखि सवैया = जगण X 7 + लघु + गुरु
या, इसे ऐसे भी समझ सकते हैं - मदिरा सवैया के प्रारंभ में एक लघु लगा देने से सुमुखि सवैया बन जाती है.
मदिरा सवैया का विन्यास = भानगा X 7 + गुरु
यानि ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ
इस पद का प्रारंभ यदि लघु से हो तो पद होगा -- लघु भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस गुरु
यानि । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ। । ऽ
इस क्रम को यदि पुनर्व्यवस्थित किया जाय तो -
। ऽ। / । ऽ। / । ऽ। / । ऽ। / । ऽ। / । ऽ। / । ऽ। / ।ऽ
। ऽ । या जगण यानि जभान हुआ. अतः, जगण जगण जगण जगण जगण जगण जगण + लघु गुरु
यही विन्यास सुमुखि सवैया का पद-विन्यास है. यानि सात जभान + लघु गुरु
उदाहराणार्थ निम्नलिखित छंद प्रस्तुत किया जा रहा है -
जु लोक लगैं सिय रामहिं साथ चलैं बन माँहिं फिरै न चहैं ।
हमें प्रभु आयसु देहु चलैं रउरे संग यों कर जोरि कहैं ॥
चलैं कछु दूर नमे पग धूरि भले फल जन्म अनेक लहैं ।
सिया सुमुखी हरि फेरि तिन्हें बहु भाँतिन तें समुझाय कहैं ॥
प्रथम पद -
जु लोक (लघु गुरु लघु) / लगैं सि (लघु गुरु लघु) / य राम (लघु गुरु लघु) / हिं साथ (लघु गुरु लघु) /
<-------------1----------> <-----------2-------------> <-----------3-------------> <----------4-------------->
चलैं ब (लघु गुरु लघु) / न माँहिं (लघु गुरु लघु) / फिरै न (लघु गुरु लघु) / चहैं (लघु गुरु)
<-------------5---------> <-------------6------------> <------------7-----------> <-----8----->
इस सवैया को मानिनी या मल्लिका सवैया भी कहते हैं
ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.
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ओह! जगण के साथ सवैया कुछ कठिन लगने लगा है. सिर्फ मदिरा सवैया के आगे एक लघु आया है. बहुत सुन्दर सवैया सुमुखि.क्षमा करें ऊपर मदिरा सवैया के साथ भानगा X 7 लिखा है ऐसा लिखने का अर्थ नहीं समझ पा रहा हूँ या कि शायद मात्र टंकन त्रुटी ही हो.कृपया मार्गदर्शन करे आदरणीय सौरभ जी सादर.
आदरणीय अशोकभाई, आप इन लेखों को ध्यान से देखें तो आपको दिखेगा कि कुछ सवैयों के नाम को हाइपरलिंक के साथ दिया गया है जिन पर मेरे लेख इस कड़ी में आ चुके हैं. ऐसा उद्धरण (रेफ़ेरेन्स) के लिये हमने किया है. यानि, जब किसी सवैया में (जो इस लेखमाला में पूर्व पोस्ट हो चुका है) में थोड़े परिवर्तन से ही विषयांतर्गत सवैया को व्यख्यायित किया जा सकता है तो मैं कोशिश करता हूँ कि पूर्व पोस्ट सवैया का हवाला (रेफ़ेरेन्स) देते समय उसे समझने के लिये हाइपरलिंक में कर दूँ.
अब आपकी प्रतिक्रिया पर -
//ऊपर मदिरा सवैया के साथ भानगा X 7 लिखा है ऐसा लिखने का अर्थ नहीं समझ पा रहा हूँ//
यह टंकण त्रुटि नहीं है. मुझे लगता है आप जल्दबाज़ी में इस लेख को देख गये हैं.
लेख में मेरे कहने का आशय यह है कि मदिरा सवैया के सूत्र को लिख कर उसके प्रारंभ में एक लघु रख दिया जाय तो वह सूत्र सुमुखि सवैया का हो जाता है.
इसी तथ्य को मैं क्रमबद्ध प्रस्तुत किया हूँ; कि, पहले मदिरा सवैया का सूत्र लिखा, फिर उसके विन्यास को लिखा, तब उस विन्यास के प्रारंभ में एक लघु लिख कर पूरे विन्यास को पुनः व्यवस्थित कर भगण (भानस या गुरु लघु लघु) से जगण (जभान या लघु गुरु लघु) के अनुसार कर लिया. ठीक अंकगणित के किसी सूत्र की तरह.
संभवतः आप पुनः इस लेख को ध्यान से पढें तो मेरी बात समझ में आये. यह भी सही है कि जहाँ आवश्यक प्रतीत हुआ, मैं स्वयं के संप्रेषण प्रयास को सहज करने की कोशिश करूँगा, आदरणीय. क्योंकि इस प्रस्तुतिकरण की सारी कड़ियाँ माननीय पाठकों और अभ्यासकर्ताओं के लिये ही हैं ; बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय..
सादर
आदरणीय सौरभ जी
सुप्रभात, सादर प्रणाम, बिलकुल बराबर है मै शब्द विन्यास और उदाहरणों से भलीभांति समझ पा रहा हूँ. आप जितने अच्छे से समझा रहे हैं उससे मै आसानी से समझ पा रहा हूँ.सादर.
आदरणीय अशोकजी, आप पाठकों का अनुमोदन या फ़ीडबैक मुझे अपने प्रयास के प्रति आश्वस्त करेगा और यथानुरूप सुधार की गुंजाइश बनी तो उसके लिए काम किया जायेगा. आपको आपके समर्थन के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सहयोग बना रहे भाई अजीतेन्दुजी.
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