आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 43 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
21 नवम्बर 2014 से 22 नवम्बर 2014, दिन शुक्रवार से दिन शनिवार
इस बार के आयोजन के लिए जिस छन्द का चयन किया गया है, वह है – हरिगीतिका छन्द
एक बार में अधिक-से-अधिक तीन हरिगीतिका छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है.
ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.
हरिगीतिका छन्द के आधारभूत नियमों को जानने हेतु यहीं क्लिक करें.
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 21 नवम्बर 2014 से 22 नवम्बर 2014 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.
[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
Replies are closed for this discussion.
छंदोत्सव - 43 (हरिगीतिका)
.........................................
माँ है धरा है गाय माता और माँ गंगा कहें।
जो माँ हमें सुख दे सदा उसके बिना कैसे रहें॥
हे जन्मदात्री माँ विधाता हो तुम्हीं तकदीर के।
मैं बीच में हूँ माँ तुम्हारी मोहनी तस्वीर के॥
आँसू बहे दिन रात तेरी याद में ममतामयी।
पर तू न आई देख मेरा हाल क्या करुणामयी॥
दिन रात भी हर बात भी हर श्वाँस भी लगती सज़ा।
धिक्कारते , दुतकारते , माँ तू नहीं तो क्या मज़ा॥
जो माँ बड़े दुख झेलती है पालती है प्यार से।
वो छोड़ के जाये नहीं भगवान इस संसार से॥
माँ थी यहाँ अब है वहाँ सच है कि तेरे पास है।
करुणा करो भगवान दे दो मातु की बस आस है॥
.............................................
मौलिक व अप्रकाशित
आदरनीय बड़े भाई , लाजवाब हरि गीतिका छंद के लिये दिली बधाइयाँ ।
प्रिय छोटे भाई गिरिराज
हरिगीतिका छंद को पसंद करने के लिए हृदय से आभार ।
जो माँ बड़े दुख झेलती है पालती है प्यार से।
वो छोड़ के जाये नहीं भगवान इस संसार से॥
मार्मिक छंद रचना आदरणीय अखिलेश सर
आदरणीया वंदनाजी
रचना आपको पसंद आई, हरिगीतिका छंद पर मेरा प्रथम प्रयास सार्थक हुआ , हृदय से धन्यवाद आभार ।
मन-मोहिनी हरिगीतिका सुख दे रही अखिलेश जी
माँ , विविध रूपों में दिखाई दे रही अखिलेश जी
सुस्वागतम शुभकामना यूँ ही लिखें लिखते रहें
आनंद रस के छन्द निशिदिन भ्रात-श्री दिखते रहें ||
सादर......
"आदरणीय अरुण भाईजी
सुंदर छंद के माध्यम से छंद की प्रशंसा उत्साहवर्धक है। रचना आपको पसंद आई, हरिगीतिका छंद पर मेरा प्रथम प्रयास सार्थक हुआ , हृदय से धन्यवाद , आभार । "
हे जन्मदात्री माँ विधाता हो तुम्हीं तकदीर के। ------माँ के लिए है तो तकदीर की होना चाहिए
आँसू बहे दिन रात तेरी याद में ममतामयी।
पर तू न आई देख मेरा हाल क्या करुणामयी॥
दिन रात भी हर बात भी हर श्वाँस भी लगती सज़ा।
धिक्कारते , दुतकारते , माँ तू नहीं तो क्या मज़ा॥ -----बहुत सुन्दर
बहुत अच्छी हरिगीतिका लिखी है ...वैसे तो चित्र ही हृदय स्पर्शी है तो छंद भी हृदय स्पर्शी ही होंगे
बहुत- बहुत बधाई आपको
आदरणीया राजेशजी
आपके द्वारा की गई प्रशंसा व सुझाव दोनों उत्साहवर्धक हैं। रचना आपको पसंद आई, हरिगीतिका छंद पर मेरा प्रथम प्रयास सार्थक हुआ , हृदय से धन्यवाद , आभार ।
तकदीर / तस्वीर ... के अतिरिक्त कोई और तुकांतता बता देती तो संशोधन में मदद मिल जाती ।
सादर
प्रदत्त विषय पर बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई! आदरणीय अखिलेश जी
आदरणीय सत्यनारायणजी
रचना आपको पसंद आई, हरिगीतिका छंद पर मेरा प्रथम प्रयास सार्थक हुआ , हृदय से धन्यवाद आभार ।
आँसू बहे दिन रात तेरी याद में ममतामयी।
पर तू न आई देख मेरा हाल क्या करुणामयी॥
जो माँ बड़े दुख झेलती है पालती है प्यार से।
वो छोड़ के जाये नहीं भगवान इस संसार से॥
माँ थी यहाँ अब है वहाँ सच है कि तेरे पास है।
करुणा करो भगवान दे दो मातु की बस आस है॥
आदरणीय अखिलेशजी, आपके शब्दों में इतनी भावुकता, इतना नमी पाकर मन द्रवित हो गया है. चित्र के अनुरूप जब शब्द मिलें तो भावदशा रचनाकार की क्षमता के उच्चतम विन्दु पर होती है.
आपके छन्द ने, आदरणीय, मोहित किया है. दूसरे, इतनी भावमय छन्द प्रस्तुति से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है इस हेतु सादर धन्यवाद.
सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |