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Posted on August 19, 2017 at 1:08pm — 7 Comments
जैसे ही कई वर्ष पुरानी तलवार को उस वीर ने म्यान से बाहर खींचा तैसे ही उस जंग लगी तलवार के सोये अरमान फिर से जाग उठेऔर उसने चाहा कि उसे फिर एक बार पहले सा सम्मान,प्रेम प्राप्त हो जो पहले उसे राजा के हाथ में आने के बाद मिलता था। उसे याद हो आये वो दिन जब युद्ध में सिपाहियों को पाट पाट कर वो अचानक ही अपने राजा की प्रधान प्रेयसी बन जाती थी। उसके मुख पर एक कुटिल मुस्कुराहट छाई व मन में एक आकांक्षा जागी वही युद्ध, वही सम्मान! काश ! वीर ने उसे बुझे मन से देखा व सान धरने वाले के पास ले गया। उसने…
ContinuePosted on January 8, 2016 at 10:30am — 11 Comments
Posted on January 1, 2016 at 4:01pm — 8 Comments
सोच रही हूँ आज कौन सा गीत लिखूँ जी
आडी -तिरछी रेखाओं में भाव भरूँ जी।
मन उड़ भागा लेकर भाव के सारे पन्ने।
दिक करते हैं बोल पडौस में गव रहे बन्ने।
कभी किसी कोयलिया ने कुहु टेर लगाई ।
खुशबू पहले बौर की मुझ तक दौड़ी आई।
डाल पे झूले बैठीं सखियाँ झूल रही हैं।
मन की चिड़िया शब्द भी सारे भूल रही है।
काला कौवा बैठ मुंडेरी चीख रहा है।
आता दूर पथिक भी कोई दीख रहा है।
रात चाँदनी साज लिए लो बैंठ गई है ।
नई बहुरिया सास से…
Posted on August 19, 2015 at 3:30pm — 5 Comments
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Comment Wall (10 comments)
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सादर ममता
सादर ममता
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
अगर उसमें संशोधन किया जाए तो क्या पुनः प्रेषित की जा सकती है? कृपया शंका निवारण कीजिए।
सादर ममता
मुझे बहुत कुछ सीखना है आप सभी से।सो कृपा बनाए रखें इस अभिलाषा के साथ पुनः धन्यवाद!
सादर ममता
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
स्वागत है.
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आदरणीया ममता जी, रचना आपके पेज पर पोस्ट हो गई है. रचनाएँ ब्लोग्स के माध्यम से पोस्ट की जानी है, रचना भेजने के लिए लिंक
http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/new
आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ इस लिंक के माध्यम से पोस्ट कर सकती है. इस लिंक से रचना के विषय, रचना और टैग के बॉक्स आयेंगे. टैग बॉक्स में रचना की विधा यथा लघुकथा, गीत, ग़ज़ल, कविता आदि लिखने है सादर
सादर ममता
फैंसी ड्रैस का आयोजन था।वृद्धाश्रम के सभी वृद्ध तरह - तरह की वेशभूषा में सजे थे। कोई किसान,कोई सब्जी बेचने वाला,कोई पुजारी ,कोई माली तो कोई संत। उन्हीं में से एक वृद्धा ने कटोरा हाथ में लिया व अपनी वेशभूषा के अनुरूप वह भीख माँगने लगी।
फैंसी ड्रेस का माहौल ही बदल गया। सबके हाथ पीछे हट गए,आँखे पनीली हो गईं,ह्रदय करूण भाव से भर गया ।सभी के मन के एक कोने में एक बोध , एक पछतावा, एक पश्चाताप सा जाग गया।सब यही सोच रहे थे ओह! ये हमने क्या कर दिया।सबकी संवेदना ने विचारों पर ताला लगा दिया ये दृश्य सबकी बर्दाश्त के बाहर था । सब ये भूल गए कि वे फैंसी ड्रेस के आयोजन में बैठे हैं।अचानक से जज बनी यौवना उठी व वृद्धा के हाथ से कटोरा छीन कर केवल यही बोल पाई मुझे माफ कर दीजिए,मुझे माफ कर दीजिए! और अपनी सास के पाँवों में गिर कर वह बोली माताजी अब मैं आपको यहाँ नहीँ रहने दूँगी।
सादर ममता
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
स्वागत अभिनन्दन
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