जुलाई माह में जब ओबीओ लखनऊ चैप्टर की काव्य गोष्ठी आदित्य जी ने आयोजित की थी तो उसमें बहुत कम संख्या में प्रतिभागी उपस्थित हुए थे। उस आयोजन में केवल जी के भी न पहुँच पाने से हम सब बहुत हतोत्साहित हुए थे। यह एक चिंता का विषय बना हुआ था कि आगामी माह के आयोजन किस तरह से आयोजित किए जाएँ कि प्रतिभागियों की संख्या बढ़े।
इन परिस्थितियों में एक सुखद समाचार प्राप्त हुआ कि ओबीओ प्रबंधन सदस्या आदरणीया प्राची जी का लखनऊ आगमन हो रहा है। इस समाचार ने जैसे मुर्दे में जान डाल दी। हम सब फिर नए उत्साह के साथ आयोजन की तैयारी में लग गए। 03 अगस्त को आदरणीया कुंती जी के आवास पर आयोजन होना तय हुआ।
इस बार के आयोजन की एक विशेष बात यह थी कि आदरणीया प्राची जी के निर्देश पर काव्य गोष्ठी के साथ ही एक विचार गोष्ठी का भी आयोजन किया गया था। विचार गोष्ठी का विषय रखा गया था ‘साहित्य धर्मिता’।
नियत तिथि को आयोजन हेतु जो लोग उपस्थित हुए, वे थे- आदरणीया प्राची जी (मुख्य अतिथि), आदरणीया कुंती जी (अध्यक्षा), आदरणीय शरदिंदु मुखर्जी जी, आदरणीय आदित्य चतुर्वेदी जी (मंच संचालक), आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी, आदरणीय आशुतोष बाजपेयी जी, आदरणीय केवल प्रसाद जी, मैं (बृजेश नीरज), अन्नपूर्णा बाजपेयी, आदरणीय प्रदीप शुक्ल जी, आदरणीय समीर जी। अन्नपूर्णा बाजपेयी जी की संलग्नता हम सब के लिए उदाहरण है क्योंकि वे इस आयोजन में प्रतिभाग करने हेतु कानपुर से पधारती हैं। व्यस्तता के कारण प्रदीप शुक्ला जी की इन आयोजनों में कई महीनों से टलती आ रही प्रतिभागिता इस बार उनकी उपस्थिति से पूर्ण हुई।
आयोजन के आरंभ में आदरणीय शरदिंदु जी द्वारा बुके प्रदान कर आदरणीया प्राची जी का स्वागत किया गया। इसके उपरान्त विचार गोष्ठी प्रारंभ हुई।
शरदिंदु जी ने विचार गोष्ठी का प्रारंभ करते हुए 'साहित्य धर्मिता' विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उनका कहना था कि साहित्य मन के भावों को व्यक्त करने का साधन है। कुछ लोग वमन करते हैं, कुछ दिल से लिखते हैं। सार्थक साहित्य वही है जो दिल से लिखा जाए, संयत हो और समाज को एक दिशा देने वाला हो।
आदित्य चतुर्वेदी जी ने इस विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य का अर्थ है ‘सत सहित’ अर्थात् ‘साहित्य’ वह है जो सत्य को उद्घाटित करे। अनर्गल बात न करते हुए संदेश देती रचना ही साहित्य का अंग है। जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त आदि ने इसी परिपाटी का पालन किया।
अन्नपूर्णा जी का कहना था कि सच्ची अभिव्यक्ति ही साहित्य का धर्म है। जबकि केवल जी का मानना था कि साहित्य को सुसंस्कृत और विधा में ढला हुआ होना चाहिए। इस चर्चा में आशुतोष जी ने वेदों का उदाहरण देते हुए बताया कि वेदों में गद्य भी छंदबद्ध हैं।
विषय को स्पष्ट करते हुए प्राची जी ने कहा कि ‘साहित्य’ का अर्थ है स-हित अर्थात जिसमें हित समाहित हो। क्या कोई भी अभिव्यक्ति साहित्य है? हम सब रचनाकार साहित्य की ओर अग्रसर हैं। ‘साहित्य’ ऐसी अभिव्यक्ति है जिसमें जन जन का हित समाहित हो। प्राची जी ने आगे विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म अनुशासित जीवन जीने का मार्ग दिखलाता है- एक ऐसा संतुलित परखा हुआ मार्ग जिस पर चलकर बिना रुके अभीष्ट की प्राप्ति को । साहित्य में भी परखे हुए मार्ग पर चलना ही समीचीन है। जन जन के हित के लिए लेखन ही ‘साहित्य धर्मिता’ है। उन्होंने आगे कहा कि आज हम जो लिख रहे हैं वह हमारे युग की पहचान होने वाली है। आने वाला समय हमें जाने, इसके लिए आवश्यक है कि सत्य के लिए लिखें। रचनाकार का दायित्य सिर्फ सामाजिक या राजनैतिक मुद्दों को यथा प्रदर्शित करना नहीं होता बल्कि साहित्य तो ऐसा लिखा जाना चाहिये जो समाज के समक्ष दिग्दर्शक मशाल का कार्य करे। हम ऐसा लिखें जिससे आने वाली पीढ़ी कुछ सीख सके।
प्राची जी के सम्बोधन के साथ ही विचार गोष्ठी का समापन हुआ। विचार गोष्ठी के बाद काव्य गोष्ठी का शुभारंभ हुआ। आदरणीया प्राची जी द्वारा माता सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण तथा धूप दान के साथ काव्य गोष्ठी प्रारंभ हुई। सदैव की तरह आशुतोष बाजपेयी जी की सुमधुर वाणी में ईश वंदना प्रस्तुत की गयी-
//तुमने कर घोर कृपा मुझपे, गुण अद्भुत अम्ब प्रत्येक दिये।
उनका उपयोग नहीं करता, घुटने विधि सम्मुख टेक दिये।
बल साहस दिव्य दिया तुमने, कण क्यों न मुझे सुविवेक दिये।
बन याचक पुत्र खड़ा लख माँ, वर यद्यपि नित्य अनेक दिये।।//
काव्य गोष्ठी का प्रारंभ आयोजन में प्रथम बार उपस्थित हुए आदरणीय प्रदीप शुक्ल जी के काव्य पाठ से हुआ। प्रदीप जी को प्रथम बार सुनना एक सुखद अनुभव रहा। जीवन के संघर्षों और उस दौर में जीवन साथी के सहयोग को रेखांकित करती उनकी रचना की पंक्तियाँ देखें-
//इस जीवन की कविता में
जब कठिन अन्तरे आते हैं
मेरी क्षमता, मेरे पौरुष
संयम मेरा अजमाते हैं
और शब्द-समय के हाव भाव से
मैं विचलित हो जाता हूँ
तब शब्दों को तौल तौलकर
धैर्य अर्थ बतलाती हो
सहयोगी बनकर मेरी तुम
स्थायी मुझे बनाती हो।//
अब बारी थी समीर जी की। समीर जी का आयोजन में आना एक लंबे अंतराल के बाद हुआ इसलिए हम सब उनके मुख से काव्य पाठ सुनने को उत्सुक थे। उनकी रचना में लखनऊ शहर का बखान कुछ यूँ मुखरित हुआ-
//हुस्न का है गुलिस्ताँ, इश्क की नजर है ये।
दिलों को दिल से जोड़ता, लखनऊ शहर है ये।।//
केवल जी ने इस बार छंद रचना प्रस्तुत कीं। उनके सस्वर पाठ के प्रयास में छंद सुनना एक अलग अनुभव दे गया।
//मन प्रीत साँची राम के प्रति, राम हरिगुन कामना।
यह सोच जन-जन के मना नित राम पद की चाहना।।
कलिकाल में जंजाल में हिय धीर हो गंभीर हो।
नितदीन के अतिहीन के प्रति प्रेम की जंजीर हो।।//
आदित्य चतुर्वेदी जी ने अपनी हास्य की फुलझड़ियों से एक बार फिर हम सबको सराबोर किया।
//पहले वाह
फिर ब्याह
और अंत में
आह!//
कानपुर से पधारीं अन्नपूर्णा जी ने अपनी रचनाओं से हम सबको मंत्रमुग्ध किया।
//मेहा बार बार नीर बहाये
प्रियतम क्यों पीर बढ़ाए
सावन की अगन जिया जलाए
घेर घेर कर गरजे तड़पे भरमाए//
मैंने भी अपनी अतुकांत रचनायें इस आयोजन में प्रस्तुत कीं-
//जब जीवन के कमरे में
खुद को अकेला पाओ
तड़प उठो
किसी के संग को
तब तुम्हें
मेरी आवश्यकता होगी
तुम बुलाना
मैं आऊंगा।//
अस्वस्थ होने के बावजूद आदरणीय प्रदीप जी जिस तरह से हम लोगों का उत्साहवर्धन करते हैं और इन आयोजनों में शिरकत करते हैं, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। उनकी रचनायें संदेशपरक होती हैं, राह दिखाने का काम करती हैं। उनका स्वर अनूठा है। उनकी प्रस्तुत रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें-
//धरम जाजि पर सबका बटइले
लूटो, खाओ इनका दीन धरम है
त्रस्त जनता, पर टूटत न भरम है//
आशुतोष जी से छंदों का सस्वर पाठ सुनना हम सबके लिए हर आयोजन का आकर्षण होता है। इस बार भी उनके सस्वर पाठ ने ऐसा समां बांधा कि सब वाह-वाह कर उठे।
//न राष्ट्र की सुवन्दना न हो पवित्र आरती
मनुष्यता निरीह वृत्ति आसुरी निहारती
तपो सुयज्ञ अग्नि में समाज सुप्त भारती
उठो कि अग्रजन्मनों धरा तुम्हें पुकारती।।//
//लखो कि आये नारियाँ बनी हुई शिकार हैं
अधर्म के विरूद्ध युद्ध के नहीं विचार हैं
नपुंसकी कुराज्य में नपुंसकी प्रसार हैं
उठो कि ऋत्विजों! बढे़ छली यहाँ हजार हैं।।//
शरदिंदु जी की रचनाओं में जो अनुभूतियों का संसार है वह सदैव श्रोता को बरबस आकर्षित करता है, बांधे रखता है और फिर उसके रस में डूब जाने को मजबूर करता है।
//जब कभी क्षितिज में
चाँद ढले, औ लौट चले
डगमग-डग कदमों से
वो दीवाने-
टुकड़े- टुकडे़ मुझको तुम देना दफना
मधुशाला की मिट्टी में
कुछ मधु पाने।//
अब आहवाहन हुआ मुख्य अतिथि आदरणीया प्राची जी का। उनको सुनना हम सबके लिए उत्सुकता का विषय था। जब उन्होंने अपनी रचनाओं का सस्वर पाठ किया तो हम सब मंत्रमुग्ध रह गए। इच्छा थी कि यह सस्वर पाठ बस यूं ही चलता रहे।
यह झूलना छंद देखें-
//गुरु ज्ञान दो, उत्थान दो, वंदन करो स्वीकार
अनुभव प्रवण, उज्ज्वल वचन,हे ईश दो आधार
तज काग तन, मन हंस बन, अनिरुद्ध ले विस्तार
प्रभु के शरण, जीवन- मरण, पाता सहज उद्धार.....//
उनके नवगीत की कुछ पंक्तियाँ देखें-
//गूँज लें सारी फिजाएँ
युगल मन मल्हार गाएँ
चंद्रिकामय बन चकोरी
प्रेम उद्घोषण करूँ...
प्रीत शब्दातीत को शुचि भावना अर्पण करूँ...//
सबसे अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षा आदरणीया कुंती जी ने अपना काव्य पाठ प्रस्तुत किया। कुंती जी फ्रेंच भाषी होने के बावजूद जिस तरह हिंदी में सुगठित काव्य रचना करती हैं वह सबको आश्चर्यचकित भी करता है और प्रेरित भी। उनकी रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें-
//प्रकृति ने दूर तक फैलाया आँचल
मंदिरों में बज उठी घंटियाँ,
धरती के संतान अपने-अपने
कर्तव्य पथ पर उद्यत,
चल पडे़ जीवन की डोर थामे
एक नये दिन का करने स्वागत,
इस स्वर्णिम बेला में।//
केवल जी के धन्यवाद ज्ञापन के साथ यह कार्यक्रम समाप्त हुआ। हम सबके मन में यह कसक रह गयी कि काश, कुछ समय और मिलता और आदरणीया प्राची जी से कुछ और सुनने को मिलता।
- बृजेश नीरज
Tags:
मुझे लखनऊ चैप्टर पर गर्व है. मेरे युवा साथी मशाल जलाये हुए हैं . राष्ट्र को इनपर गर्व है.
वंदे मातरम
आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार! हम लोगों के इस प्रयास में आपका सतत मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है।
आदरणीय बृजेश जी कुछ ज्यादा ही अफ़सोस की बात है की कोई तीन बार मेरी जानकारी में आप आयोजन कर चुके हैं और मै एक बार भी अपनी उपस्थिति दर्ज नही करा पाया । इसके लिए तो माफ़ी मांगने के भी काबिल नही हूँ क्यों की माफ़ी भी एक बार की भूल पर ही मिलती है , पर आप के इस सफल और उत्कृष्ट आयोजन के बारे में जान कर बहुत ख़ुशी हुयी , मै बधाई देना चाहूंगा आपको केवल प्रसाद जी को आशुतोष जी को , अन्नपूर्णा जी को और समस्त प्रतिभागियों को जो इस समारोह में शामिल हुए और और दिली आभार प्रकट करना चाहूँगा आदरणीया डॉ० प्राची जी को जिनके आने से आयोजन में चार चाँद लग गए इतने उत्कृष्ट लोगों के बीच ना आ आने का बहुत दुःख है बृजेश जी आपके लिए शब्द नही हैं मेरे पास जो इतने भाग दौड़ के जीवन में भी साहित्य कारों को एक साथ जोड़ने में प्रयास रत रहते हैं , साहित्य के प्रति आप का ऐसा समर्पण मेरे लिए किसिस आदर्श से कम नही है ।
बस इतना ही
सादर ।
आदरणीय नीरज जी आपका हार्दिक आभार! बस, यही अपेक्षा है कि आप जल्द हम लोगों की टीम के सक्रिय सदस्य बनें।
सादर!
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!
वाह बहुत अद्भुत रहा होगा आयोजन , वे भाग्यशाली हैं जो शामिल हुए और हम रपट पध्कार धन्य हुए श्री ब्रिजेश जी , प्रदेश की राजधानी में ओ बी ओ का परचम लहराने के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें . इस आयोजन में आप सब की काव्य रचनाएँ उच्च स्तर की रही हैं डॉ प्राची सहिबा के प्रतिभाग ने आयोजन में चार चाँद लगाये सभी को साधुवाद और बधाई !!
आदरणीय अभिनव जी आपका हार्दिक आभार! हम लोग यह अवश्य चाहेंगे कि आपका भी सानिध्य हम लखनऊ वासियों को प्राप्त हो।
आ0 एडमिन सर जी, लखनऊ ओ0बी0ओ0 चैप्टर वास्तव में अपना कार्य बेहतर कर रहा है। हां एक बात जरूर है कि ओ0बी0ओ0 के पदाधिकारियों व सदस्यों के लखनऊ आने पर हमारा व इस आभासी मंच का हौसला और अधिक बढ़ जाता है। चूंकि इस मंच के कुछ नियम हैं कि हम चाह कर भी इसे वृहद रूप नहीं दे पाते हैं। इसका एक कारण यह भी हो सक्ता है कि हम,बृजेश भाई जी, आदित्य भाई जी, मैं स्वयं तथा हमारे अध्यक्ष श्री प्रदीप कुशवाहा सर जी सभी लोग सरकारी सेवा में संलग्न हैं इस कारण से भी व्यस्तता बढ़ जाती है। और हम अपनी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहें हैं। हम आशा करते हैं कि हमारे गृरूजन एवं वरिष्ठ सदस्यों से समय-समय पर मार्ग दर्शन मिलता रहें तो भी हमारी कार्य शैली में बेहतर सुधार व तीव्रता आ सकती है। इन्ही आशाओं के साथ साभार धन्यवाद। सादर,
इस विशद रपट को प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई.
लखनऊ की यह शलाका यों ही प्रज्ज्वलित रहे.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार!
उल्लासित करती हुयी ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर रपट प्रस्तुत करने के लिए बहुत सारी शुभकामनायें आदरणीय बृजेश जी!
आदरणीय साथी रचनाकारों का सफल सहयोग अत्यंत सराहनीय है। आदरणीया प्राची जी का सम्मिलित होना इसे उच्च आयाम की ओर ले जाता है। इस सुखद क्षण को हम सबसे साझा करके आदरणीय बृजेश जी ने बहुत नेक काज किया है। कभी सौभाग्य मिला तो मै भी ओबीओ लखनऊ चैप्टर की काव्य गोष्ठी का हिस्सा बनना चाहूंगी!
सादर !!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |