आदरणीय साथियो,
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सादर नमस्कार। ऐसे संयोग ईश्वरीय विधि-विधान.से होते हैं, सबको चौंकाते हैं। ऐसे उपहार से बेहतर कोई उपहार भी नहीं हो सकता। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब। चिरपरिचित कथानक और कथ्य। लेकिन प्रवाहमय बढ़िया रचना। लघुकहानी की श्रेणी में न आ सके, इस हेतु इसमें कसावट करते हुए बेहतरीन पंचपंक्ति से विचारोत्तेजक समापन दिया जा सकता है।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद जी।
ख. भाई तेजवीर जी अभिवादन। अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।
विजेता (उपहार शीर्षक के अंतर्गत)
तब वह अबोध था। किशोर हुआ। प्रौढ़ हुआ। इल्म हासिल कर ज्ञानी, फिर विज्ञानी हो गया। उसने नाना प्रकार के अविष्कार, ईजाद किये। फिर अविष्कार विस्तृत होते होते विस्तार की ओर बढ़ चला। विस्तारवादी प्रवृत्ति अब वृत्ति बन गई। गोले बारूद चलते, फूटते। आदमी करहता, चीखता, पर आदमी गोले बरसाता। मुस्कुराता। खिलखिलाता। विजय का तूर्य फहराता फिरता। डींगे हाँकता, क्योंकि अब वह आदमी है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बेहतरीन प्रस्तुति।
आपका आभार आ. तेजवीर सिंह जी।
आदाब। बढ़िया परिकल्पना और शैली से बढ़िया लघु.वाक्य युक्त लघु आकार लघुकथा बुनावट। हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह जी। 'क्योंकि तब वह अबोध था और.क्योंकि अब वह आदमी है!' ... क्योंकि एक आदमी कराहने चीखने की स्थिति में आ जाता है और एक आदमी गोले बरसाने की स्थिति में आकर मुस्काने से लेकर डींगें हाँकने की स्थिति को पाता है....इसलिए ऐसी विचारोत्तेजक सृजन करती है लेखनी। आदमी ख़ुद को क्यों ऐसा विजेता मान बैठता है? गहरी बात है... जितना गंभीर कथानक और कथ्य है...उतना समय अभी रचना को नहीं दिया गया... ऐसा भी लगता है। टंकणत्रुटियाँ भी रह गई हैं। सादर।
तब वह अबोध था.....। आपका हार्दिक आभार आ. उस्मानी जी। नमस्ते।
आ. भाई मनन जी, अभिवादन। अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।
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