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आभार आदरणीय जानकी जी ।
आपकी शिक्षा और संस्कार इतने गहरे पैठ किये हैं कि,मुझे कोई सुनहरा मृग ललचा ही नहीं सकता।"
पापा मैं सीता तो नहीं,पर लक्ष्मण रेखा मुझे दिखाई देती है।-- सारा कथासार यहा आ गया रचना मे.बधाई आपको इस उत्कृष्ठ रचना के लिये
बहुत बहुत आभार आदरणीय नयना जी।सुंदर समीक्षा हेतु ,टिप्पणी हेतु पुनः धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आदरणीय शहजाद जी,कथा पर समय देने एवं सुंदर समीक्षा हेतु ।
बहुत सुंदर
धन्यवाद आदरणीय ।
आभार आदरणीय,आपके प्रोत्साहन का परिणाम।पुनः बहुत बहुत धन्यवाद।
जनाब पवन जैन साहिब , रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
तहेदिल से शुक्रिया जनाब।
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