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विषय आधारित-रंग
||लालकिला ||
मैंने हर दौर को, इन आँखों से देखा है।
'मेरी गोद में बैठकर कईं बादशाहों ने दिग्विजय के सपने देखे है!'
'कई बेगमों की ख़ुशियों का साक्षी हूँ। मैंने डोलियों में बेटियां बिदा की हैं, और बहुओं का मंगल प्रवेश किया।'
" कई सूरमाओं के कारण कभी शर्म से सर झुका तो, कभी गर्व से सिरमोर्य हुआ है। मेरी पथराई आँखों ने जीवन के अनेक रंग देखे हैं। परन्तु मैंने यहाँ राग रंग से अलिप्त सदियाँ गुजार दी।"
'अंतिम मुग़ल शासक बहादूर शाह जफर की गलतियों पर भी मैं लाल-पीला नहीं हुआ।'
मैंने इसे अपनी नियति मान लिया।
कई दीवाने मेरी आज़ादी के लिए हँसते-हँसते सुली पर चढ़ शहीद हो गए।
परन्तु , ओ मेरे लाल ! मैंने उस शहीद लाल की बेवा के साहस से द्रवित हूँ। जिसे मेरे ही आँगन में आज शैलानियों को तमाशा दिखाकर, अपना जीवन यापन करना पड़ रहा। शहादती घोषणा में मिला, मकान डबल गोला सड़क लील गई। और मंत्री जी कहते है- "एक बार लाल किले से सम्मान कर तो दिया। और क्या चाहिए? " रोज हजारों शहीद होते हैँ। क्या जीवन भर सबको पालने का ठेका ले रखा है।"
सुनते ही, मैं दिल्ली का किला क्रोधाग्नि में रक्त-तप्त लाल हो गया हूँ। और तुम मुझे लाल पत्थरों का 'लाल किला' कहते हो।
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मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय विजय जी लाल किले के लाल रंग को प्रतीक बनाकर आपने बहुत गहरी बात लघुकथा के माध्यम से अभिव्यक्त की है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका.
"एक बार लाल किले से सम्मान कर तो दिया। और क्या चाहिए? " रोज हजारों शहीद होते हैँ। क्या जीवन भर सबको पालने का ठेका ले रखा है।"- असली मर्म रंग बदलती दुनिया का
जनाब विजय जोशी साहिब , ऐतिहासिक रंग पर आधारित अच्छी लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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