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आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार कुछ तकनीकी समस्या के चलते गोष्ठी आयोजित करने में देरी हुई जिस कारण हम क्षमाप्रार्थी हैं अत: लेखों की सुविधा हेतु इस बार की गोष्ठी को विषयमुक्त रखा गया है। आप अपने मनपसंद विषय पर लघुकथा प्रस्तुत कर सकते हैं। तो आइए मिलजुलकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110
(विषयमुक्त) 
अवधि : 30-05-2024 से 31-05-2024 
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
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3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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अहसास (लघुकथा):


कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को ध्यान से देख रहा था। कबूतर के दोनों अण्डों से चूजे जन्म ले चुके थे और उनके माता-पिता उनकी विधिवत देखभाल कर रहे थे। कनिका घोंसले वाले तिनके और घासफूस जुटा कर लायी और धीरे से गमले में सरका दिए। कबूतरनी तुरंत उड़ कर भाग गई और कनिका के वहां से हटते ही लौट कर आ गई। घोंसले की सामग्री का न तो पालना या बिस्तर बनाया गया और न ही घोंसले जैसा कुछ भी।


"भैया, गमले की मिट्टी कितनी गर्म है। उसमें तो चूजे बेचारे मर जायेंगे। कुछ कॉटन के टुकड़े वगैरह वहां जमा दो चुपके से।" कनिका ने कन्नू से ऐसे अनुरोध किया कि कन्नू मना न कर सका। कॉटन के छोटे-छोटे टुकड़े कुछ उसी गमले में और कुछ पास के गमले में होशियारी से डाल दिए गये चूजों के माता-पिता की अनुपस्थिति में। पानी का इंतज़ाम तो पहले से ही था।


"भैया, ये लोग कितने बेवकूफ हैं, हमारी मदद को समझ ही नहीं पा रहे!" अबकी बार कनिका तनिक गुस्से में बोली।


"बेवकूफ वे नहीं हम हैं अपने मम्मी-पापा की तरह। तुम्हें याद है न जब मेरी तबियत बिगड़ी थी, तो साइकियाट्री और प्रिंसिपल मैडम ने मम्मी-पापा से क्या कहा था?" कन्नू ने कनिका को बालकनी से दूर ले जा कर कहा।


"क्या कहा था, भैया?"


"कनिका यह कहा था न कि बच्चों की पैम्परिंग करने से बच्चे लाड़ के लड्डू बन जाते हैं, ज़िद्दी भी! कन्नू टीचर की डांट-डपट और पिटाई से अपने मानसिक संतुलन बिगड़ने वाले दिन याद करते हुए बोला, "ये पक्षी अपने बच्चों को उतने ही सुख-सुविधा अपने चूजों को देते हैं, जितने ज़रूरी हैं। वे उन्हें जन्म से ही स्ट्रोंग और सेल्फ़-डिपेंडेंट बनाते हैं। पैम्परिंग नहीं करते। देख लिया न अपन लोगों ने!"


(मौलिक व अप्रकाशित)

आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।

आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया मेरे लिए और गोष्ठी सहभागिता हेतु बहुत महत्वपूर्ण है।

इस रचना पर अभी और काम करना चाहता हूं। सुझावों व खामियां जानने को इच्छुक हूॅं लघुकथा विधागत सटीकता हेतु।

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