आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 111 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-112
विषय - "विषय मुक्त" (अर्थात इस बार का आयोजन विषय से मुक्त रखा गया है)
आयोजन की अवधि- 08 फरवरी 2020, दिन शनिवार से 09 फरवरी 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 08 फरवरी 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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बहुत सुन्दर एवं विषय मुक्ति को लेकर लिखी गई विषयानुसार लाजवाब प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय.।
आ. भाई छोटेलाल जी, सादर अभिवादन । विषय मुक्ति को लेकर सुन्दर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई ।
#गजल#
***
छीन लेंगे वे आजादी, आजकल चर्चा बहुत है
बेधड़क कुछ भी कहने की, आजकल चर्चा बहुत है।1
राह में भटके हुए जो,रास्ते बतला रहे अब
आंख मूंदे चल रहे कुछ,आजकल चर्चा बहुत है।2
कुछ न हो सकता अगर तो भांड़ ही कह दो किसीको
फूटते भांडे यहां पर,आजकल चर्चा बहुत है।3
आदमी आवाज औरों की उचारे, आदमी है
हंस रहे उड़ते पखेरू,आजकल चर्चा बहुत है।4
बस्तियां खाली हुईं गुलजार शहरों के मुहल्ले
ढोर करते स्वांग भरसक,आजकल चर्चा बहुत है।5
रास्तों को जोड़ते बढ़ते गए कितने मुसाफिर,
' तोड़ देंगे ' कह रहे कुछ,आजकल चर्चा बहुत है।6
'मौलिक व अप्राका शि त '
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, इस ग़ज़ल के क़वाफ़ी क्या हैं?
इसे अभी कविता ही कहें,आदरणीय।
आपने शीर्षक ग़ज़ल दिया था इसलिए इंगित करना पड़ा, ख़ैर ।
शुक्रिया,गजल वाले फोल्डर में संचित हो गई थी,इसीलिए।
आदरणीय समर जी,अब रचना गजल रूप में पेश है:
***
छीन लेंगे वे आजादी, आजकल चर्चा बहुत है
बेधड़क कुछ भी कहने की, आजकल चर्चा बहुत है।1
राह में भटके हुए जो,रास्ते बतला रहे अब
हो भले जितनी हंसाई ,आजकल चर्चा बहुत है।2
कुछ न हो सकता अगर तो भांड़ ही कह दो किसीको
हांडियां फूटीं सभी भी,आजकल चर्चा बहुत है।3
आदमी आवाज औरों की उचारे, आदमी है
ढूंढता फिरता कवाफी,आजकल चर्चा बहुत है।4
बस्तियां खाली हुईं गुलजार शहरों के मुहल्ले
हो रही आकाशवाणी,आजकल चर्चा बहुत है।5
रास्तों को जोड़ते बढ़ते गए कितने मुसाफिर,
' तोड़ने ' की बात बढ़ती,आजकल चर्चा बहुत है।6
"मौलिक व अप्रकाशित"
रास्तों को जोड़ते बढ़ते गए कितने मुसाफिर,
' तोड़ने ' की बात बढ़ती,आजकल चर्चा बहुत है।6//वाह...शानदार सामयिक तंज। हार्दिक बधाई इस सृजन पर आदरणीय मनन जी
बहुत बहुत आभार आदरणीया।
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन ।वर्तमान संदर्भ में अच्छी समसामयिक गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन बहुत अच्छी भावपरक गजल पढ़कर मन प्रसन्न हुआ,बहुत बहुत बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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