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बहुत बहुत आभार आ नीता कसार जी
बहुत भावनाप्रधान लघु कथा हुई विनय जी ,सच कहा कुत्ता सच में बहुत अच्छा साथी होता है इंसान की तरह उसमे संवेदनाएं होती हैं इंसान को वो बखूबी समझता है | संवेदनहीन अपनों से संवेदनशील जानवर बेहतर ,,प्रतीकों के माध्यम से यही सन्देश दे रही है प्रस्तुति बहुत खूब हार्दिक बधाई स्वीकारें
कथा के मर्म को समझने और रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार आ राजेश कुमारी जी
रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार आ अर्चना त्रिपाठी जी
कथा के मर्म को समझने और रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार आ कान्ता रॉय जी
सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें
"बिदाई /विषय : साथी"
" सहकर्मी कभी भी आपके बहुत अच्छे दोस्त नहीं हो सकते। " ये बात अपनी जगह सही हो सकती है। लेकिन उनसे दोस्ती निभाना भी उतना ही ज़रूरी है ,जितना उनके साथ रहना। ये बात एम के शर्मा को जब पता चली जब उनका बिदाई का समय नज़दीक आने लगा। यकायक उनके स्वभाव में परिवर्तन आने लगा। अपने समकक्ष सहकर्मियों से दोस्ताना बात करते ,और अपने अधीनस्थ से बड़प्पन के साथ हमदर्दी दिखाते। लेकिन अब वक़्त बहुत आगे निकल चुका का था। उनकी ये सारी बातें लोग सहज स्वीकार नहीं कर रहे थे।
कॉन्फ्रेंस हॉल में एम के शर्मा के बिदाई के सम्मान में आयोजन किया गया था। बारी बारी से सभी वक्ताओं ने उनकी तरक़्क़ी और कर्तव्य निष्ठां की मुक्त कंठ से प्रशंशा की। पूरा हॉल भर गया था। केवल पीछे की सीटें खाली पड़ीं थीं ,जो उन लोगों के लिए रखी गईं थीं जिनके साथ काम करके ,शर्मा जी ने पदोन्नतियाँ पाईं थीं। और फिर मुड़ कर कभी पीछे नहीं देखा था। लेकिन आज वह चाहते थे कि उनके सभी साथीगण इस पार्टी में उपस्थित हों। और इसे गरिमामय बना दें।
अब तक पार्टी ख़त्म हो चुकी थी। उन्हें ऑफिस से लेने के लिए ,उनके बेटे बग्गी की सवारी और डी जे लेकर आये थे। शाम को भी घर पर एक भव्य पार्टी का आयोजन था। जिसमें उन्होंने अपने चिर परिचित लोगों को आमंत्रित किया था।
शर्मा जी जैसे ही बग्गी पर बैठे ,डी जे ने भी शोरगुल मचाना शुरू कर दिया। लेकिन शर्मा जी के मनः पटल पर तो वह खाली कुर्सियां और उन सहकर्मियों के चेहरे याद आ रहे थे। जिनके महनतों ने उनके तरक़्क़ी के रास्ते हमवार किये थे। जिन्हें उन्होंने बड़े चाव से बुलाया था। अब आत्मावलोकन का समय भी गुज़र चुका था। शर्मा जी सोच रहे थे , "मैं अपनी तरक़्क़ीयों के नशे में अपने उन साथियों को कैसे भूल गया ?"
"मौलिक व अप्रकाशित"
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