आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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स्त्री को अपना जमीर मारने के लिये कब तक स्त्री ही प्रेरित करती रहेगी ।कब जागेगी बेटी की माँ ।बधाई प्रश्न खड़े करती हुई कथा हेतु आदरणीय सीमा जी ।
कई बार कितना कुछ सहना पड़ता है । आपकी कथा मुझे पसंद आई आदरणीया सीमा सिंह जी । बधाई स्वीकारें ।
आभार कल्पना जी
आभार जानकी जी
अच्छी लघु कथा - जब अपने माँ बाप ही सिद्धन्तों से समझौता करते हुए ससुराल में तमाशा न बन परिस्थिति से समझौता करने की सलाह दे तो बेटी को निर्णय लेना होगा कि मैं तमाशबीन बन ऐशो आराम से रहूँ या नहीं | ये अहम प्रश्न पर सोचने को मजबूर करती लघु कथा के लिए बधाई
माता पिता अपने अनुभवों के आधार पर सलाह ही दे सकते हैं .. कई बार वो स्वयं गलत भी हो सकतें हैं. संतान को निर्णय तो स्वविवेक से ही लेना होगा. आभार आदरणीय कथा पर उपस्थिति के लिए.
बहुत बधाई दीदी !! अपने बेटी के भविष्य के प्रति चिंतित माँ उसे सहनशीलता का पाठ पढ़ा रही है | माँ की नजर से देखे तो उसका कहना उसकी नजर में ठीक है . भारतीय परिवेश में अधिकाँश माये अपनी बेटियों को यही सीख देती आई है .. वह सोचती है कि शायद कुछ समय बाद हालात सामान्य हो जाए . और बेटी का घर उजड़ने से बच जाए .. हालांकि पत्नी का सबसे बड़ा सुख पति ही होता है पर सुधार कि गुंजाइश तो होती ही है . जल्दबाजी में कोई निर्णय जीवन भर का त्रास न बन जाए बेटी के लिए .. माँ की यही सोच है . दूर से देखने वाले इसे तमाशबीन कि संज्ञा दे सकते है परन्तु .. माँ .... सादर |
आभार सुधीर भैया कथा का मर्म और माँ का मन समझने के लिए.
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