आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आ.तेजवीर जी आभार आपका
आ.योगराज सर रचना पर आपकी समिक्षात्मक टिप्पणी से मन हर्षित हुआ.आपके सुझाव सर आँखो पर . वाकई पहली पंक्ति एकदम से पढने पर थोडी बोझिल हो गई है .सरल भाषा मे लिख्नने के बजाए साहित्यिक टच देने के चक्कर मे ये हुआ शायद.संकलन मे इसे ठीक करती हूँ.
//किंतु उसकि की जिव्हा तो चिरपरिचित स्वाद के लिये व्याकुल थी.// १५ मिनट के एडिट टाइम मे इसे सुधारने का २-३ बार प्रयास किया लेकिन पाप अप होकर फ़िर से वही आ रहा था.शायद नेट की कोई समस्या थी.
आपने रचना पर समय देकर सराहा इस हेतु धन्यवाद
माँ से ही मायका होता है इस बात को सार्थक करती आपकी ये लघुकथा एक महीन मानसिकता को विश्लेषित करती है .जहां एक ओर भाभी अपनी सास की मृत्यु को भुलाकर विविध पकवान सजाती है ननद के लिए वहीँ दूसरी ओर भाई कागजों पर बहन से संबंधों का लेखाजोखा करने के फिराक में है .
आज भी भारतीय समाज की मानसिकता बेटियों को उनके माता - पिता की संपत्ति पर हक़ नहीं देना चाहती . बात तो बेटा और बेटी की बराबरी की जरूर करते है लेकिन सब कुछ अभी सतही या यूँ कहे सब दिखावे और भुलावे के तौर पर ही है .
यहाँ दस्तखत का अधूरा रहना और कार का अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाने में आपने एक और अनकहे को बहुत लम्बी जुबान दे दी है .घर -परिवार में षड्यंत्रकारी मनोविज्ञान को आपने हमारे ही जीवन से जिस तरह खींच निकाला है आदरणीया नयना जी वो सराहनीय है . बहुत -बहुत बधाई आपको .
आ.कांता जी आज तो आपकी समिक्षा से मेरा मन मृदंग हो उठा.आपने भावो को बडी गहराई से पकडा है. आपका उत्साहवर्धन ही मुझे ओबीओ मे लेकर आया.शतश: धन्यवाद आपका. कार्यशाला समान यह मंच मेरे लिये अपने विचारो को रखने का एक श्रेष्ठ माध्यम है.मे सतत प्रयत्न रत रहूँगी.
माँ के लिए बेटी के दर्द का वर्णन दिल छू गया ,और उसके बाद की दुनियादारी दिल चीर गई , बधाई प्रेषित है इस कथा पर आपको आदरणीया नयना जी
आ.प्रतिभा जी आपने कथा का मर्म बखूबी समझा. आभार आपका
आ.समर कबीर जी आप हमेशा प्रोत्साहित करते है. ध्न्यवाद आपका
आदरणीया नयना जी आपकी लघुकथा पढ़ी एक नया पाठक होने के नाते ये कहने में हमें कोई हिचक नहीं कि पहली बार में आपकी कथा के गुढ़ अर्थ संदेश तक नहीं पंंहुच पाये किन्तु उस पर हुई चर्चा के बाद कुछ समझ में आया । खैर लघु कथा के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर
आ.रवी शुक्ला सर धन्यवाद.आगे सहजता का प्रयास रहेगा
रचना का भाव बहुत बढ़िया है और अंत भी बढ़िया है| थोड़ी और स्पष्टता चाहिए थी, बधाई आपको
आ.विनय सर आप से समिक्षात्मक टिप्पणी का इंतजार रहता है.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |