आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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वाह क्षत्रिय जी , छोटा तो खोटा निकला मगर बड़े मियां भी सुभान अल्लाह। भैया के दो ही कान थे , एक एक काट ले गए दोनों।
कम से कम शब्द , रोचकता और आखिर में झटका। बहुत खूब। झगड़ा इतना बड़ा ... टंकण की त्रुटि --बढ़ा कर लें।
पारिवारिक सम्बन्धों में सदस्यों के बीच घृणित व्यवहार कोई नयी बात नहीं रह गयी है. लेकिन विन्यास की ताकत के कारण यह आम-सा कथ्य अत्यंत प्रभावी ढंग से सामने आया है, आदरणीय ओमप्रकाश जी. आपकी किस्साग़ोई अत्यंत प्रभावी है. इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
ओहो ये तो बडा भयानक षडयंत्र हुआ भाईयो के बीच और उसमे घर की बेटी भी हिस्से से हाथ धो बैठी.बधाई इस सार्थक रचना के लिए
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी !आर्थिक कारणों से उपजी पारिवारिक कलह को बड़े सुंदर तरिके से उजागर करती बेहतरीन प्रस्तुति !
बाबा रे , बड़े -बड़े शातिर है यहाँ तो षड़यंत्र करने में सबके सब माहिर , अक्सर इस तरह के षडयंत्र हमारे परिवारों में देखने को मिल ही जाते है . कथा का सम्प्रेषण बहुत ही अच्छा रहा है आपका और कथ्य भी भर कर आया है . बहुत -बहुत बधाई आपको आदरणीय ओमप्रकाश जी इस सार्थक लघुकथा के लिए .
बेहतरीन लघुकथा प्रस्तुत हुई है आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय सुनील वर्मा जी सुरक्षा के लिए षडयंत्र. बहुत सुंदर . बधाई .
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