आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आभार आदरणीया
शुक्रिया जनाब समर कबीर साहिब
आदरणीय सुधीर जी, अपने शीर्षक को सार्थक करती बहुत अच्छी लघुकथा लिखी है आपने. हार्दिक बधाई
हार्दिक आभार आ. मिथिलेश जी
सुधीर भाई आपकी रचनाएँ मुझे हमेशा आश्व्स्त करती हैं,इसने भी किया। हमारे हरियाणा की एक कहावत याद आ गई आपके दोनों पात्रों से मिलकर " तू स्याणी , मैं डेढ़ स्याणी। " आपके कथा शिल्प , शब्द चयन ने मेरी आशा को कमज़ोर नहीं होने दिया। बधाई
आदरणीय सुधीरजी, कहते भी हैं कि बिल्ली शेर से कोई न कोई एक गुण छुपा लेती है. आपकी लघुकथा एक आम सी कार्यालयी घटना को अपने शब्दों और विन्यास से अवश्य पठनीय बना दिया है. हार्दिक बधाइयाँ ..
गज़ब गज़ब, क्या पंच लाइन है, बहुत बढ़िया, गुरु गुरु होता है और चेला चेला ,,,,,अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है बधाई आदरणीय सुधीर द्विवेदी जी.
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