आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.कल्पना जी उत्तम लघु कथा हुई है. बधाई आपको
विषय : "प्रायश्चित"
~ग्लानी ~
"अच्छा हुआ बेटा जो तू आ गया | देख तेरे बाबा शहर से जब से लौटे है गुमसुम रहते हैं| बस रोज-रोज जितनी हिम्मत होती है, बगल के खेत में जाके आम-नीम का पेड़ लगाते रहते हैं| गाँव वालों से भी उस सुख गए गड्ढे को खोद कर फिर से तालाब बनाने की गुजारिस करते फिर रहें | क्या हुआ ऐसा वहाँ?"
"कुछ नहीं अम्मा, बस सुशिल बड़ा हो गया है न|"
"कुछ तो हुआ है! उसने कुछ कहा क्या ? तूने उसे कुछ बोला नहीं? कुछ तो चुभती बात कह दी है उसने ! वरना जो आदमी एक तुलसी का पौधा न रोपा कभी, वह दिन में दो-चार पेड़ लगा दे रहा !!"
"उसने कुछ गलत न बोला अम्मा, तो उसे क्या कहता मैं | बल्कि मैं खुद बदलते वातावरण से परेशान हो, रिटायर होते ही इस ओर ध्यान दूंगा|"
"बात तो बता बेटा, पहेलियाँ काहे बुझा रहा ?"
"उसने बाबा को फालतू पानी बहाते देख टोंक कर कह दिया कि 'पानी की बर्बादी नहीं करिए| दादा-परदादा के लगाये पेड़ पौधे तो उजाड़ दिए आपने ! तालाब भी पाट डाले ! पानी की बर्बादी भी मन माफ़िक किए| अब इन सब का खालियाजा हम नयी पीढ़ी को तो भुगतना ही होगा| और..!"
"और ...कुछ भी ! इतना बड़ा हो गया क्या ?" विस्मित हो अम्मा बोली
"और कह दिया कि आपके दादा-परदादा ने पेड़-पौधे लगा वातावरण हरा-भरा रखा | आप की पीढ़ी ने खूब मजे लुटे | अब आपकी पीढ़ी की निष्क्रियता के दंड हम भुगतेंगे ही| उसकी बात से बाबा क्रोधित हो वहां से अकेले ही चले आए|"
"मेरे कहने से तो सुने न कभी ! अच्छा हुआ जो पोते ने चोट दी! अब उसकी दी हुई चोट की ओट में जमीन की खोट दूर हो जाएँगी | कितनी बीघे जमीन बंजर होने को थी|"
मौलिक एवं अप्रकाशित
//चोट की ओट में जमीन की खोट दूर हो जाएँगी// बहुत ही बढ़िया बात कही है आदरणीया सविता मिश्रा जी| इस रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें| कहीं-कहीं टाइपिंग की त्रुटियाँ रही गयी हैं, जैसे, खालियाजा,खोट दूर हो जाएँगी|
आभार आपका | इत्ती कोशिश किये न रहे त्रुटी पर अपना तो जैसे त्रुटियों से ही नाता है ..आभार पुनः आपका
मेरा मानना है कि, टाइपिंग तो बिल गेट्स से करवाएं तो उनसे भी कहीं न कहीं गलती रह जायेगी, यह त्रुटि होना सामान्य बात है|
कुछ अज्ञानता बस भी होती :) :)
आदरनीय सविता मिश्र जी आप ने बहुत ही सामयिक विषय उठाया है.
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