आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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अच्छी रचना... //मधुर किसी से 'अस्सलामालैकुम' कहता, तो किसी से 'जय सिया-राम' और लोग उसी तरह जवाब देते और उस परिवार से घुल-मिल जाते! लेकिन लोग सुभाष बाबू को 'नमस्ते साहब' या 'नमस्कार साहब' कहकर किनारा कर जाते। // यहाँ थोड़ी कसावट की ज़रूरत है
बहुत ही सुन्दर मार्मिक विरासत का ताना बाना रच है आपने
दौलत की विरासत तो अधिकतर छोड़ते हैं संस्कार प्यार की विरासत कम लोगों को नसीब होती है अंतिम पंचलाइन जबरदस्त हुई |
आपको बहुत बहुत बधाई इस सार्थक लघु कथा के लिए आद० उस्मानी जी |
व्यवहार और प्रेम के संस्कारों की विरासत कोई सम्भाल लेता है तो कोई नहीं सम्भाल सकता| हालाँकि कई बार परिस्थितियाँ भी विपरीत होती हैं| हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब इस संदेशप्रद लघुकथा के सृजन हेतु|
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