आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
विषय : "आया मौसम दोस्ती का"
आयोजन अवधि- 15 फरवरी 2025, दिन शनिवार से 16 फरवरी 2025, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.
ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 फरवरी 2025, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार
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आया मौसम दोस्ती का
होती है ज्यों दिवाली पर
श्री राम जी के आने की खुशी में
घरों की सफाई
त्यों ही टोकरी भर-भर गिरा रहे
तरु पुराने पात
ज्यों स्वागत करना चाहते हों
यौवन भरते मदन का
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
रात छोटी
बड़े हो रहे दिन
रातों-रात दिनों-दिन
बुजुर्गों के चेहरे पर भी
मस्ती छाई ज्यों रंगों की झोली भरकर
गीत गाता फागुन आया
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
रंगीन हुए हैं गाल सभी के
खिले रंगीले बाग-बगीचे
गुलाब गेंदा जंगली झड़बेरी
लगती सबकी काया निखरी
सीटी बजाती बयार बहे
गेहूँ पर बालियां महकी
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
सूने पड़े थे जो तालाब तीर
फिर से रौनक लौट आई
दिन की गर्माहट से
पशु पानी में बैठने लगे हैं
कानों में शहद घोलती
जलमुर्ग की सुरीली आवाज़
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
हरे भरे इस खेत में
सरसों ने धारण किए
सुन्दर पीतांबर
अलसी चने ने बांधी पगड़ी
आम भी आज कर रहा
बौराने की तैयारी
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
वात में ज्यों घुली हरिगंध
श्वास में भरी सुगंध
मन में खिल रहे जलज़ात
निकल रहे कोमल नवल पात
कल-कल करती जीवन धारा सी
बलखाती बहती नदियाँ
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
पेड़ पात हिल-हिल
मधु पराग मिल-मिल
दे रहे सुन्दर संदेश
बीत गई शीतल रातें
होती अब वासंती बातें
पुष्प हँसते चमका चाँद अटारी
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
धूप के संग खिल उठे
जीव जगत के फूल से चेहरे
इक दूजे संग झूल
झूम रही हर डाल
भूल रहे सब वैर भाव
बने आपस में कंठहार
मन मचलकर कह रहा
आया मौसम दोस्ती का।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'
कैथल (हरियाणा)
आ. आपने कदाचित मंच की नियमावली नहीं पढ़ी। आपकी प्रस्तुति अमान्य है। "रचना पोस्ट करते समय सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं."!
आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण पर देखकर एक सुन्दर अतुकांत रचना की है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
गीत••••• आया मौसम दोस्ती का !
वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार भारती
कली गुँथी वो भँवरे से है, आया मौसम दोस्ती का !
सूरज के गरमाने पर वो
पर्वत पर पाला पिघला है
जमे दर्द को वाणी दें हम,
नयन प्रिया भी अँसुआए वो
ओस का मोती बह निकला
आया मौसम दोस्ती का•••!
पीले फूल खिले सरसों में
हर्षाया, तन-मन बरसों में
धूप खुले मन हँस बतियाती,
कृषक खिलखिलाता जलसों में
कि फूल स्वीकृति सर हिलाता
आया मौसम दोस्ती का•••!
कल-कल बहती अब गंगा है
लहरों का मन भी चंगा है
हुमक कमल-दल झील-तालाब,
किलकारी देता वो बच्चा है !
मुस्काता है मन सभी का
आया मौसम दोस्ती का •••!
अलसायी है रजनीगंधा
गंध बसी वन कहता अंधा
पलाश रक्ताभ खिला है आज,
खूब हुआ गंधी का धंधा !
जन-गण का मन साज़ कहता
आया मौसम दोस्ती का•••!
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।
दोहा सप्तक. . . . . मित्र
जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।
कदम -कदम विश्वास का ,होता है अवसान।।
सुख में हर जन साथ है, दुख में दीनानाथ।
दुख में जब सब छोड़ दें, मित्र थामते हाथ।।
मन को रोगी कर दिया, मित्र दे गया घात।
थामो मेरा हाथ प्रभु ,बन जाओ तुम तात ।।
मित्र मीत है मित्र का, मित्र, मित्र की प्रीत ।
विषम काल में मित्र की, मित्र निभाता रीत ।।
धोखा देते मित्र को, अक्सर सच्चे मित्र ।
झूठे से लगने लगे , सच्चे मित्र चरित्र ।।
किसको अपना हम कहें, किसको मानें गैर ।
मृदु शब्दों की आड़ में, मित्र निकालें बैर।।
अपने मन को जानिए, अपना सच्चा मित्र।
दिखलाता हर कर्म का, श्वेत श्याम वो चित्र।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर
दोहे
***
मित्र ढूँढता कौन है, मौसम के अनुरूप
हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।।
*
करने को जब दोस्ती, मौसम ढूँढें लोग
इस जीवन में सोचिए, कैसे होगा योग।।
*
कहते बनते मित्र हैं, जब किस्मत में रेख
सदा मिलेगा भाग्य से, मौसम को मत देख।।
*
मौसम संकट का करे, मित्रों की पहचान
किन्तु दोस्ती के लिए, मौसम है मत जान।।
*
सुख के मौसम में रहे, चाहे कितनी मंद
संकट में गतिशीलता, करता मित्र पसंद।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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