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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-18 में स्वीकृत सभी रचनाएँ (विषय पर्दे के पीछे)

(1). श्री समर कबीर जी
"आँचल"


सरकारी अस्पताल के परीक्षण कक्ष के बाहर दोनों पक्षों के लोग इकट्ठा थे, पुलिस भी वहाँ पहुँच चुकी थीI दरअसल आमिर और फ़रज़ाना ने घर से भाग कर एक छोटे शह्र की मस्जिद में दो अन्जान गवाहों की मौजूदगी में निकाह कर लिया थाI हालाकि दोनों बालिग़ थे लेकिन दोनों खानदानों में पुश्तैनी दुश्मनी थीI दोनों तरफ़ से इस घटना की रिपोर्ट पुलिस में की गई थी और पुलिस ने उन्हें बहुत जल्द एक छोटे से होटल के कमरे से गिरफ़्तार कर लिया थाI आमिर और फ़रज़ाना के पास निकाह का कोई दस्तावेज़ी सुबूत नहीं था, हालाकि उन्होंने ने जो निकाह किया था वह शरीअत में रहकर ही किया थाI आमिर के वालिद इस मुआमले को रफ़ा दफ़ा करने हेतु पुलिस पर दबाव डाल रहे, क्योंकि उन्हें अपनी इज़्ज़त ख़तरे में नज़र आ रही थी। इसके विपरीत फरज़ाना के वालिद चाहते थे कि आमिर पर धोखे से बलात्कार करने का केस दर्ज होI
आमिर अपने बाप से बोला - "अब्बू! हमने कोई नाजाइज़ काम नहीं किया हैI"
मगर वालिद ने उसे डाँटकर चुप करा दियाI
पुलिस ने दोनों पक्षों की नहीं सुनी और क़ानूनी कार्यवाही पूरी करने के लिये फ़रज़ाना का मेडिकल चेकअप करवाने के लिये सरकारी अस्पताल ले आये। फ़रज़ाना को परीक्षण कक्ष में भेज दिया गया । फ़रजाना के वालिद पास खड़े अपने भाई से कह रहे थे:
"अभी कुछ देर बाद ही मेरे दुश्मन की नाक कट जायेगीI"
आमिर जानता था कि परीक्षण के बाद ये पता चल जायेगा कि वो दोनों हम बिस्तर हुए थेI अत: वह मन ही मन में ख़ुदा से दुआ मांग रहा था:
"परवरदिगार, तू जानता है कि हम ने कोई गुनाह नहीं किया है, हमारी हिफ़ाज़त फ़रमा।"
परीक्षण कक्ष में तेयारी कर रही लेडी डॉक्टर ने फ़रज़ाना की तरफ देखा तो फ़रज़ाना ने उसका हाथ थाम लिया, और भरे गले से बोली:
"हमें बचा लो माँI"
(और सारी बात बता दी )
माँ शब्द सुनते ही उस लेडी डॉक्टर के सख्त चेहरे के भाव एकदम बदल गए, उसने फ़रज़ाना के सिर पर हाथ फेराI खिड़की से बाहर झाँक कर देखा तो दोनों तरफ के लोग मरने मारने को तैयार नज़र आ रहे थेI वह अचानक बाहर आई और पुलिस अफ़सर से बोली:
"फरज़ाना को माहवारी का स्राव शुरू हो गया है, इसलिए उसका मेडिकल चेकअप करना संभव नहीं हैI"
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(2). श्री शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी
'हरने' पर प्राण 'धरने' पर 

अस्पतालों में मरणासन्न अवस्था में पड़े हुए तीन मरीज़। पहला एक बड़ा नेता, दूसरा धनी बाप का 'उच्च शिक्षित' बेटा और तीसरा एक बहुत ही ग़रीब बाप! तीनों के प्राण क्रमशः हरने यमदूत उपस्थित हुआ, लेकिन अपनी मांगों के साथ तीनों धरने पर थे।
यमदूत ने नेताजी से कहा, "पापी, तेरा तो सारा शरीर छलनी हो चुका है! छोड़ इसको और चल मेरे साथ !"
बहुत ही भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले पाशदण्ड धारक यमदूत को देखकर डरते हुए नेताजी बोले, "ठहरो, मुझे और जी लेने दो! देखते नहीं, इस समय भी मेरी जय-जयकार हो रही है! मीडिया कवरेज मिल रहा है! मेरा शरीर दुरस्त कर चिकित्सक मुझे नया जीवन देने वाले हैं! अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धतियों से मैं धन्य हो रहा हूँ! मेरे कमाये धन और नाम का लाभ मुझे मिल रहा है! मेरे लिए तो स्वर्ग धरती पर ही है! वहाँ यह सब दिला सको, तो चलूं!"
उलझन में पड़े यमदूत ने अगले अस्पताल में धनी बाप के बेटे से कहा, "पापी, अपना शरीर व्यसनों से, दुर्घटनाओं से, दवाओं से सड़ा लिया है अल्पायु में ही! छोड़ इसको और चल मेरे साथ!"
डरते हुए उसने उत्तर दिया, "चलूंगा! मैं ख़ुद यह सड़ल्ला शरीर त्यागना चाहता हूँ। लेकिन चलूंगा तभी, जब मेरी एक माँग पूरी हो!"
"क्या माँग है तेरी?"
"मैंने अपने बाप की तरह यहाँ अपनी पसंद की हर चीज़ धन-दौलत के बूते पर या आरक्षण नीति से हासिल की है! क्या सीधे स्वर्ग में स्थान पाने के लिए कोई 'जुगाड़' है!"
"जुगाड़ मतलब?"
" मतलब यह कि यमराज के मुंशी साहब के लेखा-जोखा में फेरबदल करा कर या आरक्षण करा कर स्वर्ग सुनिश्चित करा सको, तो चलूं!"
उलझन में पड़ा यमदूत आगे बढ़ा और एक सरकारी अस्पताल में मरणासन्न उस ग़रीब मरीज़ के पास पहुँचा, तो वह यमदूत को देख मुस्कराने लगा।
हैरान हो कर यमदूत बोला, " मुझे देखकर डर नहीं लगता तुझे!"
उसने जवाब दिया, "तुमसे भी ज़्यादा भयानक रूप इन्सानों में देख चुका हूँ हर रोज़ मर-मर के और मेरे जैसों को मरते देख-देखकर! ग़रीबी की तरह तुम मुझे परेशान थोड़े न करोगे!"
"फिर तो तू स्वर्ग का सच्चा हक़दार हो सकता है! अब मत भोग यहाँ का नरक! छोड़ यह शरीर और चल मेरे साथ!"
यह सुनकर वह ग़रीब यमदूत से बोला, "चलूंगा, लेकिन तभी, जब मेरी माँग पूरी हो!"
"क्या माँग है तेरी?"
"मैं नहीं चाहता कि मेरे मरने के बाद मेरे परिवारजन मेरे शव को पैदल, साइकल पर या हाथ ठेले पर घर ले जाने को मजबूर हों! लकड़ी वग़ैरह जुटाने को तरसें और अंतिम संस्कार में देर हो!"
"क्या मतलब?" चौंकते हुए यमदूत बोला।
"मतलब यह कि मेरे मृत शरीर को भी स्वर्ग पहुंचा देना! सिर्फ़ इसने ही तो हमेशा मेरा साथ दिया है हर हाल में! मैं नहीं चाहता कि मेरे शव पर अत्याचार हो, परिवार परेशान हो! " बड़ी विनम्रता से यह कहकर वह ग़रीब बोला, "यदि पुष्पक विमान जैसा कोई इन्तज़ाम हो, तो देह संग चलूं!"
हैरान व परेशान यमदूत वापस यमराजपुरी गया और 'अपनी माँगों' के साथ धरने पर बैठ गया।
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(3). सुश्री कांता रॉय जी
पर्दे के पीछे

"तुम छुट्टी कर लो, आज मेरा ऑफिस जाना जरूरी है।"
" शानू बीमार है तो तुम्हारा रहना जरूरी है मेरा नहीं। मैं रहकर क्या करूँगा?" अनंत की दो टूक सुनकर मन कडुवाहट से भर गया।
" तुम वक्त पर दवाई दे देना। मैं जल्दी लौटने की कोशिश करूँगी।" अपने को घुटककर फिर से कोशिश की।
"देखो ,ये चें चें पें पें सम्भालना मेरे वश की बात नहीं।"
" चें चें पें पें ? शानू के लिये ऐसा कैसे कह सकते हो तुम?"
" मेरे लिये चें चें पें पें ही है।" वह चौंकी।
" यह हम दोनों की जिम्मेदारी है जिसे मिलकर बाँटना हैं। जानते हो ना,मैं पिछले हफ्ते से छुट्टी पर हूँ।"
" बच्चे पालना मेरी जिम्मेदारी नहीं है समझी ना! तुम नौकरी छोड़ दो।"
"जीवन के संघर्ष में भागीदारी करते- करते आज रास्ते अलग कर लिये तुमने!" वह बहस और शायद रिश्ते में भी हार चुकी थी।
शानू सो चुका था पर उसकी आँखों से नींद गायब थी।
कुर्सी पर अधलेटी-सी हो आँखें मूँद ली। जरा देर अकेले रहना चाहती थी। शादी से पहले किये हुए अनंत के वादे कानों में अब तक गूँज रहे थे।
" मैं दूसरों सा नहीं हूँ ईरा। मेरी सोच आधुनिक है। बहुत चाहता हूँ तुमको। सही मायनों में तुम्हारा साथी और शानू का पिता बनना चाहता हूँ।"
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(4). सुश्री नयना(आरती)कानिटकर जी
महाराज की गादी


पुलिस  के गाड़ियों की आवाज़ व शोरगुल से उसकी नींद टूटी। जल्द से खिड़की के बाहर झांका तो वहाँ कोई नहीं था अलसाई सी पिछे के आँगन का द्वार खोलते ही शोरगुल व रोने चीखने की आवाज़ से समझ गई पीछे वाले महाराज जी के यहाँ कुछ लोचा हुआ है।  मुँह पर पानी के छिंटे मारते ही पिछले गुजरे दिनों के संवाद याद आ गये.तब नये नये ही तो इस घर मे आये थे वो लोग।
"प्रणाम बहन जी!  लगता है आप नये-नये आए है क्या हुआ. इतने दिनो मैं आज ही देख रही हूँ आप को यहाँ काम करते हुए वर्ना तो सुबह-सुबह कुछ आवाजें आती है और फिर दिन भर सन्नाटा पसरा रहता हैं। "--शुक्लाइन ने सुजाता  से पूछा था।
" जी ,जी बस कुछ ही दिन हुए है धीरे-धीरे स्थिर हो रहे हैं. "सुजाता ने कहा था ।
" आपको भजन संगीत का शौक हो तो आइए ना , हर शुक्रवार को  महाराज की गादी लगती है हमारे यहाँ. बडे पहुँचे हुए है,उन पर  देवी माँ की बडी कृपा है। सुना है आप के बच्चा नही हो रहा. बार-बार गर्भपात हो जाता है।   क्या समस्या है।  जब धरती पर गिरने वाला बीज खराब हो ना तो... एक बार आओ उपासना में।  माँ ने चाहा तो जल्द ही गोद भर जाएगी  महाराज साहब के आशीर्वाद से। "
सुजाता हतप्रद रह गई ये तो सारी जन्मकुडंली जानती है। अपने आप को संयत करते हुए बोली थी , "कुछ नही बहन  जी सब ठीक है आगे प्रभु इच्छा हमे कोई जल्दी नहीं है। "
सुजाता मन ही मन ग्लानी से  भर गई थी । उसे अपने आप से शर्म महसूस होने लगी की वह माँ नही बन             और सारी कहानी सासू माँ के सामने उडेल दी थी।  यह कहते हुए कि माँ हम लोग जल्द से जल्द चलेगे उनके यहाँ।  मुझे भी लालसा है कि मेरी भी गोद हरी हो जाए
सासू माँ पढी-लिखी सुलझी हुई महिला थी।  उसे समझाते  हुए बोली थी, "देखो बेटा तुम समझदार हो अपने मन पर काबू रखो।  ये लोग हमारी भावनाओं से खेलते है जब मेडिकल जाँच मे सब पता चल गया है तो इनके बहकावे मे मत आना।  हम जल्द ही घर मे सबसे सलाह कर एक बच्चा गोद ले लेंगे।
सुजाता ने कई बार चाहा था कि एक बार कोशिश करने  मे क्या हर्ज है पर घर मे सबने उसकी ना सुनी।  सासू माँ से तो कई बार बहस भी हो गई थी पर वे  जरा ना डिगी अपने निर्णय पर अडी रही.
"क्या हुआ सुजाता! ये शोर कैसा। " माँ ने पूछा
"मम्मा! वो पिछे वाले गादी वाले महाराज को पुलिस..सुजाता बोलते बोलते अचानक माँ के चरणों मे झुक गई।
मेरी असली पूज्य  माँ तो आप है।
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(5). सुश्री जानकी वाही जी
जोंक 

" हैलो..." राजश्री ने फ़ोन आने पर बोला।
"मैडम ! मेरा नाम चाँदनी है ।हमारी कम्पनी बहुत ही कम ब्याज दर पर कार लोन दे रही है।"
" कितने प्रतिशत ब्याज दर पर ।" राज श्री ने यूँ हीं पूछ लिया।
" मैम ! ग्यारह प्रतिशत महीने की दर से। ये बहुत आकर्षक योजना है।और आपको इससे बहुत लाभ होगा।आपके घर के आगे आपकी पसन्द की कार दूसरों की ईर्ष्या का कारण बनेगी।" चाँदनी की आवाज़ में गज़ब की मिठास थी।
" आप लोग इतने सस्ते ब्याज दर पर क्यों लोन दे रहे हैं हैं ?"
" मैडम ! हमारी कंपनी चाहती है कि देश के हर नागरिक के पास अपनी कार हो ,जीवन का स्तर ऊँचा हो।"
" ठीक है, आप कल फ़ोन करियेगा,मैं अपने पति को इस बारे में बताऊंगी।"
"लगता है एक मुर्गा फंसा लिया तुमने।"
पायल ने हँसते हुए चाँदनी से कहा।
" क्या बताऊँ पायल! दिन भर ये सब झूठ बोलते हुए बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता,पर क्या करें नौकरी तो करनी है ना।"
" हाँ चाँदनी ! कार लोन,फ़्रिज़ लोन, टीवी लोन,घर लोन,अलाना लोन, फ़लाना लोन, ये सब जो चल रहा है परदे के पीछे ? उसे आम आदमी क्या समझे।... देश के ज़र्रे-ज़र्रे को क़र्ज़ में डुबोने की साजिश है ये ?जोंक हैं ये मल्टीनेशनलन कम्पनियां, खून पीकर ही आदमी को छोड़ती हैं।"
" शी...शी...धीरे बोल पायल ! दीवारों के भी कान होते हैं।हम तो कठपुतलियां हैं।अगर देश की पढ़ी -लिखी जनता ही धृतराष्ट्र बनी हुई है तो, उसे कौन सजंय राह दिखाए।"
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(6). डॉ टी आर सुकुल जी
गुरु दक्षिणा
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रात के ग्यारह बजे अचानक बिजली चली गयी । पंडित हरिहर दरवाजा बंद कर, सोने की तैयारी करने लगे । अचानक पीछे की ओर से किसी के कूदने की आवाज आई।
‘‘ कौन है? कौन है? .. .. अरे बिजली को भी अभी ... ...‘‘
टार्च लेकर ढूॅंडने निकले हरिहर जी ने ज्योंही कौने की ओर टार्च से उजेला फेका उन्हें दो युवक अपना मुॅंह काले कपड़े से ढाॅंके दिखाई दिये।
‘‘ कौन हो तुम लोग? यहाॅं क्यों घुसे हो? जल्दी से बताओ नहीं तो अभी पुलिस को बुलाता हूँ । हमारा पढ़ाया हुआ छात्र ही यहाॅं का पुलिस इंस्पेक्टर है, बचोगे नहीं समझे?‘‘
उन लोगों ने हरिहर जी के पास आकर ज्यों ही अपने मुॅंह से कपड़ा हटाया, टार्च की रोशनी में चेहरा पहचान कर बोले,
‘‘ अरे! सित्तू तू है ? यहाॅं क्यों आया है, और ये कौन है ?‘‘
‘‘ हाॅं पॅंडज्जी ! मैं सीताराम और ये है भगवानदास, वही भग्गू जिसे आप रोज मुर्गा बनाते थे‘‘
‘‘ अरे गधो! क्या पढ़ाते समय मुर्गा बनाने का बदला लेने आये हो? मैं ने तो तभी कह दिया था कि तुम लोग किसी काम के लायक नहीं निकलोगे, बन गये न डाकू? और अब अपने शिक्षक के घर पर ही अंधेरे में डाॅंका डालने आये हो?‘‘
‘‘ सही कहा पॅंडज्जी , आपने पूरा आशीर्वाद तो रज्जू यानी राजेश को दिया इसलिये वह पुलिस इंस्पेक्टर अर्थात् लाइसेंसी चोर है और हमें आशीर्वाद देने में हमेशा कंजूसी की , फिर भी आपके अभिशाप से ही सही, अब हम हैं इनामी चोर ‘‘
‘‘ ठहरो मैं अभी राजेश को बुलाता हॅूं‘‘
‘‘ बुला लेना, पहले माल निकालो क्या क्या जोड़ रखा है, तुम्हारे किस काम का है, अकेले तो हो, हमें दे दो सब ‘‘
‘‘खट खट ! खट खट !‘‘
‘ देखो पॅंडज्जी ! कोई दरवाजे पर आया है, शायद राजेश ही होगा, बिलकुल चुप रहना नहीं तो ...‘‘
‘‘ अरे ! राजेश?‘‘
‘‘ हाॅं पंडित जी ! बिजली देर में आयेगी, अभी खबर मिली है कि दो चोर जेल से निकल भागे हैं और कुछ आतंकी भी इस इलाके में घुस आये हैं इसलिये सतर्क रहना, अंधेरे में कोई भी दुर्घटना घट सकती है, कुछ भी हो तो हमें तत्काल बताना‘‘ कहते हुए राजेश चला गया।
‘‘ ठीक किया पॅंडज्जी । हमें बचा लिया , इसे आपका आशीर्वाद मान कर अब हमें कुछ नहीं चाहिये, चिंता मत करो हम अभी चले जाते हैं।‘‘
‘‘ लेकिन तुम लोग इस समय कहाॅं जाओगे? इस गंदे काम को छोड़कर कोई अच्छा काम करो, कब तक छिपे रहोगे, पुलिस के सामने समर्पण कर दो, मैं राजेश से कहकर तुम्हारी सजा माफ करवा दूॅंगा‘‘
‘‘ पंडज्जी! स्कूल से हमारी और तुम्हारी छुट्टी हो चुकी है, पाठ पढ़ाना बंद करो और ....‘‘
वाक्य पूरा हुआ ही नहीं था कि फिर से दरवाजे पर खट खट की आवाज आई।
‘‘ देखो ! शायद राजेश को हमारी भनक लग गई है, सावधान रहना समझे? जाकर देखो कौन है?‘‘
दरवाजा खोलते ही एक आतंकी गन आगे किये हरिहर जी को धक्का देकर नीचे गिराते हुए भीतर घुस आया और बोला,
‘‘बता, कौन कौन हैं घर में, हमें यहाॅ कुछ दिन रुकना है, हमारे दो साथी और हैं‘‘
‘‘ मैं तो अकेला ही रहता हॅूं, लेकिन भैया! आप हैं कौन और इस अंधेरे में ही क्यों आये?‘‘
‘‘ देेख रे बुड्ढे ! ज्यादा सवाल न कर, बस चुपचाप रह , मैं तब तक अपने साथियों को बुलाता हॅूं‘‘ कहते हुए पास में पड़ी एक बेंच पर बैठ कर अपने साथियों को मोबाइल से संदेश भेजने लगा। इधर सित्तू और भग्गू को समझने में देर न लगी । चुपचाप पीछे से आकर सित्तू ने उसकी गन को और भग्गू ने उसकी गर्दन को जकड़ लिया और झटके से बेंच पर से नीचे पटक कर उसकी छाती पर चढ़ वैठे।
‘‘ बोल.. तू कौन है और तेरा टास्क क्या है? बोल.. नहीं तो तेरी ही गन से तुझे यहीं खत्म कर दॅूंगा।‘‘
‘‘ क्या तुम लोग भी... ..? ‘‘
‘‘ हाॅं, हम लोग भी ... ... ? अपना पासवर्ड बताओ ‘‘
‘‘ पुलिस स्टेशन‘‘
‘‘ अबे साले! झूठ बोलता है। यह पासवर्ड तो फर्जी है। भग्गू! इसके हाथ पैर बाॅंध दे , इसका बैग और मोबाइल छुड़ा ले । और, पॅंडज्जी आप रज्जू को ... ‘‘
‘‘ लेकिन तुम लोग ? ‘‘
‘‘हमारी चिंता न करो , रज्जू के साथ ही हम लोग भी जहाॅं से आये हैं वहीं चले जायेंगे। हमारे इस काम को अपनी गुरुदक्षिणा समझो, लेकिन अब केवल किताबी ज्ञान से किसी की योग्यता या अयोग्यता का मूल्याॅंकन कभी नहीं करना।‘‘
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(7). श्री तसदीक़ अहमद खान जी
सुख़नवर
 
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शहर के सुचना केंद्र हाल में आज अखिल भारतीय मुशायरे का एहतमाम किया गया है ,देश के कोने कोने से मशहूर शोरा और ग़ज़लकार तशरीफ़ ला चुके हैं ,भीड़ इतनी कि लोग हाल के बाहर खड़े हुए हैं , प्रोग्राम की  खास बात यह है कि दिए गए मिसरा तरह पर ग़ज़ल पढ़नी है , जिसकी ग़ज़ल नंबर एक पर आएगी उसे एक लाख रूपए का इनआम और संगीत कंपनी द्वारा दो साल का कॉन्ट्रैक्ट । एक ज़माना था जब मुशायरों में मंच पर शायर ही अपना लिखा कलाम पढता था , मगर आज कल तरन्नुम वालों का ज़ोर है , मंच पर असली शायर कम गाने वाले ज़्यादा दिखाई देते है , वह अच्छे शायरों से कलाम लिखवा कर पढ़ते हैं और दौलत , शोहरत हासिल करते हैं ।
मुशायरा शुरू हुआ ,एक से एक बेहतरीन ग़ज़लें शोरा और ग़ज़ल कारों द्वारा तहत और तरन्नुम में पेश की गयीं ------
संचालक ने जैसे ही जजों द्वारा दिए गए नतीजे का एलान किया , मंच पर मौजूद शोरा और ग़ज़लकार दंग  रह गए मगर हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा , माइक  पर अख्तर हुसैन अख्तर को आने की दावत दी गयी । अख्तर किसी बुज़ुर्ग को लेकर माइक पर आगया और शुक्रिया अदा करते हुए कहने लगा ,इस इनआम के असली हक़दार यह मेरे मोहतरम उस्ताद शकील साहिब हैं यह कभी मुशायरों की जान हुआ करते थे मगर अब परदे के पीछे रहते हैं और हम जैसे शागिर्द परदे पर दिखाई देते हैं ----- यह मंज़र देख कर  शकील साहिब के होंटों पर फख्र और कामयाबी की मुस्कराहट और आँखों में ख़ुशी के आंसू साफ़ साफ़ कह रहे थे कि कौन कहता है वह परदे के पीछे हैं
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(8). सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी
तमाचा

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सड़क की तरफ खुलने वाली खिड़की कम्मो आजकल  कम ही खोलती थी  क्योंकि  उस तरफ दीवार पर चिपके कल्याण के पोस्टर पर  खिड़की खुलते ही नज़र पड़ जाती थी और कम्मो का मन गुस्से से भर जाता था I बाहर को फट पड़ रहीं बड़ी बड़ी आँखों से घूरता ,मूँछ उमेठता कल्याण , पोस्टर के नीचे लिखा था ‘पीड़ित और कुचले लोगों  की एक ही आस ‘I
कम्मो की मुट्ठियाँ भिंच जाती थीं  ये सोचकर कि कैसे कल  का गुंडा, आज  उनकी जाति वालों का  नेता बन गया था I वो दिन भी उसे याद था जब सूरज के बापू ने कल्याण को जोरदार  तमाचा जड़ा था , मोहल्ले की लडकी पर गलत नज़र डालने पर I  उस तमाचे की गूँज अब भी बहुत दिलों में बाकी थीI
आज कल्याण खुद को बहन बेटियों का रक्षक बताता  था I एक बलात्कार पीडिता को न्याय दिलाने के लिए चल रहा उसका आन्दोलन  सुर्ख़ियों में था I अलग अलग रंग के नेता मिलने आते रहते थे उससे I
“ अम्मा आज भर्ती है पुलिस में ,मै जा रहा हूँ I   तीन चार दोस्त  और हैं  साथ में “I  सूरज ने धीरे से कम्मों के कंधे पर हाथ रख दिया I
“  कल्याण के गुंडे होने देंगे भर्ती ? वो तो नाराज़ हैं पुलिस से I  पता नहीं कब तक चलेगा ये सब “I
“ जब दाम मिल जाएगा तब रुक जाएगा  अम्मा i   शुरू करने और रोकने ,दोनों के दाम लेता है ये पीछे से I  हमारे लिए कुछ नहीं कर रहा है I तू तो जानती ही है ना इसका नाटक  “ I सूरज ने माँ का हाथ अपने हाथ में ले लिया I
“ देखो i  बेटा  कितना बड़ा और समझदार हो गया “ दीवार पर लगी पति की तस्वीर की तरफ देख कम्मो बुदबुदाई I
“ क्या ..क्या बोल रही है ?”
“कुछ नहीं “  बेटे से छिपा  कर आँखें पोंछ लीं  उसने  “  खडा क्या है ,अब जा जल्दी “I
  बंद खिड़की  पूरी  खोल दी कम्मो ने  I सूरज दोस्तों के साथ  मोटर साइकिल का धुँआ  उड़ाता पोस्टर के आगे से निकल रहा था I  खिड़की के पास खड़े होकर  कल्याण की आँखों में अब वो सीधे झाँक रही  थी I अचानक  उसे लगा कि मूँछ उमेठता कल्याण का हाथ अब मूँछ छोड़कर अपना गाल सहला रहा है  धीरे धीरे I  
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(9). सुश्री राजेश कुमारी जी
अधखिले
 
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“माँ ! तुम बात करो न  पापा से पता नहीं कुछ दिनों से क्या भूत सवार है बगीचे में पौधों को उखाड़ने में लगे हुए हैं कहते हैं कुछ अनचाहे पौधे अधखिले फूलों को निगल रहे हैं ” कहते हुए  वचन ने अखबार माँ के हाथ में पकड़ा दिया|
“देखिये जी अखबार में अपने वचन का फोटो आया है देखो जो अपने सोनू के  स्कूल में मौत बाँटते थे उन पांच मौत के सौदागरों को धर दबोचा है हमारे बेटे की टीम ने अब अपने सोनू की आत्मा को शान्ति मिलेगी ये देखो आशीर्वाद नहीं देंगे अपने बेटे को” ? माँ ने चिहुक कर वचन के पापा को अखबार दिखाया |
पापा ने एक नजर अखबार पे डाली और अपने काम में लग गए |
वचन पापा के पास उकडूँ बैठ गया और कुछ देर उनको देखता रहा पापा उखड़े हुए पौधे की जड़ को घूरते हुए  ढेर में रख ही रहे थे कि वचन  अचानक उनके हाथ को पकड़कर बोला-
“पापा मैं समझ गया, मैं अभी यही तक पँहुचा हूँI" पौधे के जड़ से ऊपर वाले भाग को छूकर वचन आगे बोला"
"मैं कसम खाता हूँ जब तक इस छुपे हुए भाग तक न पंहुच जाऊँ तब तक मैं कोई पुरस्कार ग्रहण करने का हकदार नहीं हूँ”
पापा की  आँखों से लुढकते हुए दो आँसू नीचे मिटटी में समा गए और  बगीचे के अधखिले फूल मुस्कुरा उठे|
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(10). श्री आशीष कुमार त्रिवेदी जी
असहजता


दरवाज़ा खोलते ही सोनल ने सामने पापा को देखा तो उनकी छाती से लग गई. पापा उसके इस नए फ्लैट में पहली बार आए थे. चाय नाश्ते के बाद वह उन्हें पूरा फ्लैट दिखाने लगी. फ्लैट दिखाते हुए वह बड़े उत्साह के साथ सभी चीज़ों का बखान कर रही थी . फ्लैट दिखा लेने के बाद उसने मेड को डिनर के लिए कुछ आदेश दिए फिर बैठ कर पापा के साथ बातें करने लगी. बातें करते हुए उसके पापा ने पूंछा "अभी तक दामाद जी घर नही आए."
"पापा बिज़नेस इतना बढ़ गया है कि कई बार ऑफिस में ही रुकना पड़ता है." सोनल ने सफाई दी.
उसके पापा ने आगे बढ़ कर उसके सर पर हाथ रख दिया. कुछ क्षणों तक पिता पुत्री खामोश रहे.
"अभी तुम्हारे पापा हैं." उसके पापा ने स्नेहपूर्वक कहा.
सोनल की आंखें नम हो गईं.
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(11). श्री मनन कुमार सिंह जी
निश्चय

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बुधिया चुपचाप खड़ी थी।केसरी के बंगले के बाहर चार-पाँच गुर्गे जमे हुए थे,हमेशा की तरह।एक ने फोन पर बात खतम की, उसे देखकर मुस्कुराया।जैसे कह रहा हो कि उसने बुधिया के आने की खबर कर दी है।वह सोच रही थी कि अबतक तो वही बुलाया जाती थी यहाँ।अब कौन लोग उसकी बेटी को न्योता देने गये थे और किसके कहने पर।सब कुछ आँखों के सामने से जैसे गुजर रहा हो।कभी इज्जत बचाने के नाम पर,तो कभी बची-खुची इज्जत के नाम पर अँधेरी रातों सिलसिला चलता रहा।पर आज तो जैसे सबकुछ ही नीलाम होनेवाला था।उसका कलेजा तक धक से रह गया था, जब रात उन अनजान लोगों के द्वारा अपना नाम रखकर पुकारे जाने पर रागिनी ने उनके बारे में उससे पूछा था।क्या जबाब देती?वे कौन थे,किसके लोग थे,पता न था।पर्दा उठना शेष था।
हठात वह यादों की दुनिया से बाहर आ गयी।उसने देखा तीन छँटे-से लोग केसरी की बैठक से बाहर आ रहे हैं,उसे देखकर शातिर हँसी हँस रहे हैं।ये वही तीनों हैं जो रागिनी को बुलाने गये थे।सब कुछ साफ हो चुका था।ये विधायक के आदमी हैं।पर्दे की पीछे कौन है,यह पता लगाना अब जरूरी कहाँ? उन्हें देख वह भी मुस्कुरायी।चादर के अंदर उसके हाथ चाकू पर कस गये ।वह विधायक की बैठक की तरफ बढ़ गयी।दिमाग में सुबह का अखबार घूम गया,खून से सना अखबार!
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(12). श्री सुनील वर्मा जी
धारा विरुद्ध


अखबार पढ़ते हुए अचानक कमला ने उसे समेटकर रखा और आवाज लगाई "ए शब्बो..चल ढोलकी उठा, चौधरी के घर चलना है।
"हैंss...पर जिज्जी चौधरी के घर तो लड़की हुई है न।" अपने बालों में कंघा फेरती हुई शबनम चौंकते हुए बोली।
"हाँ, मुझे पता है। पर मैं सोच रही थी, कि समाज में परदे के पीछे रहने वाले हम लोगों ने अकारण ही जिस तरह बेटे के जन्म को उत्सव का पर्याय बना दिया है, अब उसे बदलने का वक्त आ गया है।" कमला ने खुद ही खूँटी से टँगी ढोलकी उतारते हुए कहा।
"पर जिज्जी क्या लोग हमें बेटी के जन्म पर बधाई देंगे ?" शबनम ने बाल के साथ साथ पहली बात सुलझते ही अगला सवाल किया।
"इस बार हम बधाई लेने नही, देने जायेंगे।" कमला ने प्यार से शबनम की ठुड्डी पकड़ते हुए जवाब दिया।
"हाय दइया..बधाई देने जायेगें !! क्या दूसरी टोली वाले हमें ऐसा करने देंगे।" डर से शबनम की आँखों की पुतलियाँ चौड़ी हो गयी।
"क्यों नही करने देंगे? हम कुछ गलत थोड़े ही कर रहे हैं बल्कि हम तो एक सही शुरुआत कर रहे हैं।" कमला ने बेफिक्री से कहा।
और नियत समय पर कमला अपनी टोली के साथ चौधरी जी के घर पहुँच गयी। उसे देखकर चौधरी जी ने पूछा "तो क्या अब लड़की के जन्म पर भी बधाई लोगी ?"
कमला ने मुस्कुरा कर साथ आयी मंडली को नाचने गाने के लिए कहा और खुद बहू के कमरे के दरवाजे पर पोती को गोद में लिए खड़ी चौधराइन के पास पहुँच गयी।
ब्लाउज में रखे सौ रूपये निकालकर उसने लड़की के हाथ में रखते हुए चौधरी जी से कहा "घर में लक्ष्मी आयी है चौधरी साब, इस बार बधाई लेने नही बल्कि देने आयी हूँ।"
आश्चर्य से भरे चौधरी साहब जब कमला की तरफ देखने लगे तो उसने अपनी नजर चौधरी से हटाकर लड़की के चेहरे पर टिका दी। धन्यवाद स्वरूप लड़की ने अपनी हथेली में नोट फँसाने के लिए डाली कमला की अँगुली को कसकर पकड़ लिया।
"जीती रह मेरी बच्ची।" कमला ने प्यार से अपना दूसरा हाथ बच्ची के सिर पर फेरते हुए कहा और नाच रही मंडली में शामिल हो गयी।
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(13).  डॉ विजय शंकर जी
चेहरा , परदे के इस ओर और उस ओर

प्रेस कांफ्रेंस में गहरी संवेदनाएं प्रकट करके वे रिटायरिंग रूम में आकर बैठे थे कि उनका निजी-सचिव भी पीछे पीछे आ गया। बोला , " सर बहुत अच्छा लगा आपकी बातें सुन कर , दुखी तो मैं भी बहुत था , आपकी बातों से हिम्मत आई है , कुछ कहूँ सर ? "
आराम कुर्सी पर पीठ टिकाये , सर ऊपर किये , आँखें मूंदे मूंदे वे बोले ," बोलो , क्या बात है ? "
" सर ये गरीब लोग जब इस तरह अपने किसी मरने वाले का शव कन्धे पर लेकर चलते हैं तो सच में कलेजा मुंह को आ जाता है , आज आपकी बातों से उम्मीद बनी है , आपके रहते इस तरह के लोगों के लिए तात्कालिक राहत की कुछ व्यवस्था हो जाए" , फिर कुछ उत्साह से बोला , " सर मैं प्रस्ताव बना लाऊं ? "
उनकी तन्द्रा टूटी , सर उठा कर बोले , " क्या कर सकते हैं इन गरीबों के लिए हम ? ज़िंदा के लिए तो हम कुछ करते नहीं , मरे के लिए क्या करेंगें ? " सर फिर पीछे करके बोले , " कॉफी भेजो , जाओ। "
रिटायरिंग रूम से बाहर निकलते हुए वह सोच रहा था कि कितना फ़र्क़ है इस आदमी के प्रेस कांफ्रेंस वाले चेहरे में और रिटायरिंग रूम वाले चेहरे में।
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(14). डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी
परदे के पीछे
 
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गाँव में मजमा लगा था . साध्वी को पुलिस ने चौधरी की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया था , साध्वी और हत्यारिन ---नामुमकिन , साध्वी की बहन का रोते-रोते बुरा हाल था ..
‘तो तुम कहती हो तुमने यह हत्या नहीं की ?’- इंस्पेक्टर ने कड़ककर कहा .
‘बिलकुल नहीं ---‘- साध्वी ने निर्विकार भाव से कहा .
‘ ठीक है अब अपनी बहन के मोबाईल पर यह टेप सुनो ,’
इन्स्पेक्टर ने टेप आन कर दिया .
‘वह जाग तो नहीं रही ?’- चौधरी की आवाज आयी
‘नहीं ----‘- साध्वी का मंद स्वर
‘ध्यान रखना, अब वह बच्ची नहीं रही , काफी धारदार हो गयी है , उसे हमारे संबंधो का पता नहीं लगना चाहिए .
‘तुम्हे भी आना बंद कर देना चाहिए, तुम्हारे अनुग्रह का भार मैं कब तक उठाती रहूँगी, मानती हूँ कि जवानी में विधवा होने पर तुमने मुझे और मेरी बहन को संरक्षण दिया, रहने को मकान दिया , गुजर-बशर के लिए कुछ जमीन मेरे नाम की.. गाँव तो केवल तुम्हारे उपकार को जानता है . पर मैं ---–’
‘ तुम्हे भी तो लोग देवी की तरह पूजते हैं . गाँव तुम्हारा कितना सम्मान करता है .’
.किन्तु मैं कब तक काशी जाने का बहाना कर एबॉर्शन कराती रहूँगी .कभी मेरी बहना को शक हो गया तो –--? देख रहे हो शरीर कितना दुर्बल हो गया है .’
‘देखो निश्चिन्त रहोगी और स्वास्थ्य पर ध्यान दोगी तो सब कुछ फिर ठीक हो जाएगा ‘
‘मुझे उसकी चिंता नहीं है मगर यह परदे के पीछे का खेल कब तक चलता रहेगा  कभी यदि पर्दाफ़ाश हुआ या बहना को पता चल गया तो तो मैं तो कही की न रहूँगी’
‘तो क्या मेरी इज्जत न जायेगी ? देखो मैं बाल-बच्चेदार आदमी हूँ, नाती –पोते हैं. समाज में इज्जत है. इससे ज्यादा मैं और क्या कर सकता हूँ . इतने दिन बाद काशी से आयी हो तनिक करीब आओ’
‘तब ठीक है मैं ही इस नाटक का पटाक्षेप करूंगी .’
‘बोलो अब क्या कहती हो ‘- इंस्पेक्टर ने टेप बंद करते हुए कहां .
‘यह टेप तो मेरी कलंक कथा है, इससे यह कहाँ सिद्ध होता है कि मैंने चौधरी की हत्या  की  ’- साध्वी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से इंस्पेक्टर को देखा . उसके पास इस बात का कोई  जवाब न था .
तभी साध्वी दहाड़ उठी - –‘पर अब जबकि मेरी मौत का सामान मेरी बहन ने ही कर दिया है तो मैं स्वीकार करती हूँ कि चौधरी की हत्या मैंने की और मैंने बिलकुल ठीक किया , चौधरी इंसान नहीं दरिंदा था .वह जवानी भर मुझे लूटता रहा और अब उसकी निगाहें मेरी बहन पर थी . मै अपने जीते जी ऐसा कैसे होने देती ?
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(15). श्री सतविन्द्र कुमार जी
तस्सली
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"अरे!तू तो अपनी उस रिश्तेदार के साथ संदीप का रिश्ता करावे था,जिसका तेरे साथ चक्कर चल रहा है?"
मित्र ने छेड़ते हुए कहा।
"हाँ यार, क्या करता ?रिश्तेदार जो पिच्छे पड़ गए थे।संदीप के साथ दोस्ती है।बस यो ही कारण था।कह रहे थे मेरा अच्छा दोस्त है ,इसलिए उसके परिवारवाले मान जावेंगे।"
"तूने बात चलाई?",मित्र ने फिर पूछा।
"हां।संदीप को भी मनाया और उसके घरवालों को भी।"
"हैंsss!",मित्र हैरान था।
"अरे,पूरी तस्सली दी थी मैंने उनको।"
"ओहो,पर तू तो नहीं चाहवे था कि उसका रिश्ता हो जाए।", एक आँख दबाते हुए छेड़ा।
"तो फिर हुआ क्या?",कुटिलता से मुस्काया।
"तेरी तस्सली देने के बाद भी!"
"अरे बावले,तस्सली सामने से दी गई थी, पर लड़की को बदनाम करने का रास्ता तो पिछला था।
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(16). सुश्री नीता कसार जी
'शिकवा नही '

क्या कह रही हो आप, एेसा कैसे हो सकता है ?
ससुराल वालों ने विवाह में जो गहने दिये है , वे असली नही है ?
"हां बुआ जी आप को मालूम है ,पक्की ख़बर है ये मंथू काकी है ना, वहीं बता रही है ।
अब तक तो ये ख़बर आग की तरह सब जगह फैल गई होगी।
और अब तो शादी - अब टूटी , तब टूटी।" बुआ जी का मन बैठा जा रहा था ।
पर मंथू काकी के कान पिंकी के कमरे के दरवाजे से लगे देख बुआ जी ने भी अपने कान लगा दिये।
"सुनिये शांता बहिन जी, नक़ली गहने नही दे रहे है हम , कुछ ही असली नही है ,कोई कमी नही है हमारे यहाँ , आप लोग जानते है ना हमें , लगता है ग़लतफ़हमी हो गई है आप लोगों को।
"ये गहने तो उस समय के लिये है जब बहू को हम विदा करा कर ले जाते । रात के सफ़र में डर लगता है ना ।"
"अब हम शादी कैसे कर सकते है नक़ली ज़ेवर कोई देता है क्या।"
माँ का पारा सातवें आसमान पर पहुँचने वाला था ।
"माँ क्या कह रही हो आप , शादी तो ज़रूर होगी" पिंकी ने माँ को चुप कराते हुये कहा।
माँ ज़ेवर से मेरा भविष्य तय नही होता , फिर एक बार हम ठंडे दिमाग से सोचें तो, मंशा गलत नही है इनकी ।
बेटी को बिदा करते हुये दोंनों की आँखों में खुशी के आँसू थे , बेटी ने माँ से इशारे से मुस्कुरा कर कहा ,
कोई शिकवा नही होगा मुझे ।
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(17). श्री विनय कुमार सिंह जी
सौदा

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नयी नयी आयी बहू कुछ सोच नहीं पा रही थी, वैसे उसे शक़ तो हो गया था| खटका तो तब ही था जब उसके जैसी ख़राब सूरत की और इतने गरीब घर की लड़की के लिए इतने बड़े घर से रिश्ता आया था| उसकी माँ ने उसकी कितनी बलैया ली थी कि क्या किस्मत पायी है उसने और साथ ही साथ तमाम हिदायत भी कि कोई नाखुश ना रहे ससुराल में|
कल रात में भी सुमित अचानक बिस्तर से गायब हो गया| पहले भी कई बार ये हो चुका था लेकिन वो इंतज़ार करते करते सो जाती थी| अगले दिन सुमित कोई न कोई बहाना बना देता और ज्यादा पूछने पर नाराज़ हो जाता| काफी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब वो नहीं आया तो उसने बाहर देखने का फैसला किया| लेकिन उसने जब सुमित को बड़ी बहू के कमरे से निकलते देखा तो वो स्तब्ध हो चुपके से वापस आ गयी थी|
पूरी रात इसी कशमकस में गुजरी कि वो क्या करे| लेकिन सुबह होते होते उसने स्थिति का सामना करने का फैसला कर लिया था| जैसे ही सुमित बाथरूम से निकला, उसने सीधा सवाल किया "कल रात में आप कहाँ गए थे"|
सुमित इस सवाल के लिए तैयार नहीं था, उसने अचकचा कर कहा "ऐसे ही बाहर निकला था, तुमको पहले भी कहा है कि ज्यादा पूछा मत करो"|
"मैंने देख लिया था कि आप कहाँ गए थे, और आज मैं बता देती हूँ कि आज के बाद ये सब नहीं चलेगा इस घर में", भावावेश में उसकी आवाज़ काफी तेज हो गयी|
सुमित घबराया लेकिन उसने भी काफी तल्ख़ लहज़े में जवाब दिया "ऐसी शक्ल सूरत और परिवार की होकर यहाँ ऊँची आवाज़ में बात करोगी? तुमको समझ नहीं आता कि तुम्हें क्यों इस घर की बहू बनाया गया है| आगे से चुप चाप पड़ी रहो और जैसे चल रहा है, चलने दो"|
"दो बात तुम भी सुन लो, अगर तुम सोचते हो कि मैं चुप रहूंगी तो तुम गलत हो| और दूसरी बात, अगर मैं इस घर से बाहर निकली तो ये बात घर के अंदर नहीं रह पायेगी"|
वो कमरे से बाहर निकल गयी, सुमित वहीँ बिस्तर पर धम्म से बैठ गया|
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(18). डॉ वर्षा चौबे जी
पर्दे के पीछे


"मिल आए वकील साहब से,क्या कहा उन्होंने, तैयार हो गए वो पैसा देने को। " सुधीर के आते ही सीता ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
"हाँ मिल आया, पर बात नहीं बनी, अब इसमें उनका भी दोष नहीं कई किसानों को लाखों रूपया दे चुके हैं, सबका यही हाल किसी ने भी नहीं लौटाया पैसा । सुधीर हताश स्वर में बोला।
"हाँ सो तो है,इस बाढ़ ने सब तबाह कर दिया।पर सुनो जी अब लेखा कि शादी को एक माह रह गया, कैसे करेंगे का...""।
"अरे नहीं -नहीं तू चिंता मत कर शादी समय पर ही होगी, मैंने कल ही इस मकान को गिरवी रखने का फैसला कर लिया है। "
"क्या कह रहे हो जी,कहा से चुकायेंगें इतना कर्ज, पहले ही.... "।
"धीरे बोल,और सुन लेखा को कुछ पता नहीं चलना चाहिए, तू शादी की तैयारी शुरू कर।"
"ओट में खड़ी लेखा ने सारी बात सुन सुनील को फोन लगाया "हैलो सुनील मैं लेखा, मुझे तुमसे इसी समय जरूरी बात करनी हैI"
"हाँ, बोलो,"दूसरी ओर से आवाज आई।
"क्या तुम सच में मुझसे शादी करना चाहते हो?"
"हाँ पर,ऐसा क्यों पूछ रही तुम "?
"मैं तुम्हें सब बाद में बताउंगी पर प्लीज तुम अपने पिताजी को मना कर दो कि तुम अभी एक साल तक शादी नहीं कर सकते, प्लीज प्लीज सुनील,।
"हाँ पर क्यों "सुधीर ने आश्चर्य से पूछा।
"अगर कल तक तुम्हारे घर से शादी टलने की खबर नहीं आई तो फिर ये शादी शायद कभी न हो पाए सुनील।"
तभी खाने के लिए माँ आवाज सुन लेखा ने फोन काट दिया।
अब बाप- बेटी दोनों खुश -खुश खाने का अभिनय कर रहे थे।
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(19). श्री मोहम्मद आरिफ जी
फर्ज़

‘‘पापा, आप कई दिनों से परेशान दिखाई दे रहे थे। मगर, आज आपका चेहरा बहुत खिला खिला दीख रहा है, मानो कोई बहुत बड़ा बोझ आपके सर से उतर गया है। आखिर राज़ क्या है?’’ राहुल।
‘‘हाँ बेटा, आज वो बोझ उतार आया।’’
‘‘कौन-सा बोझ था। मैं भी तो जानूँ।’’ राहुल।
‘‘आज पर्दा हटा ही देता हूँ। हमारे असली हीरों तो हमारे वीर जांबाज सिपाही है। कड़ाके की ठंड और बर्फबारी में सीमाओं की रखवाली करते हैं। प्राणों की आहुतियाँ देते हैं। पिछले दिनों दुश्मन देश ने हमारे अट्ठारह सैनिकों को शहीद कर दिया। शहीदों के परिवारों बाल बच्चों का दुख देखा नही गया। सोचा उनके लिए कुछ करूँ। ‘‘आर्मी रिलीफंड’’ के आॅनलाइन अकाउण्ट में पाँच लाख रूपये जमा करवा के आ रहा हूँ। देख, यह रसीद।’’
राहुल कुछ पल चुप रहा। फिर उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। शहर के सारे अख़बार भी मशहूर हीरा कारोबारी सेठ लालचंद घेराणी की देशभक्ति और शहीद परिवारों के प्रति सवंदेना का यशोगान कर रह थे।
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(20). सुश्री सविता मिश्रा जी
कीमत

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"वाह भई, कलम के सिपाही भी यहीं मौजूद हैं | परन्तु कमल का उपयोग ऐसा न करना कि यहाँ उपस्थित सबके राज से ही पर्दा उठ जाय|" pwd में कार्यरत अधिकारी चुटकी लेता हुआ बोला |
"काहे के सिपाही| बस चल रही हैं आप सब की कृपा से| कलम तो आप सब के हाथ में भी हैं, जैसे चाहे घुमाये आप सब |" पत्रकार बोला|
" पर पत्रकार भाई, आजकल प्रभावी तो आपकी ही कलम ज्यादा हैं | आपकी कलम घूमते ही सब घूम जाते हैं | फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है| आपकी कलम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता हैं कर गुजरते हैं | आपको चाय पानी देना बहुत जरुरी हैं | वरना तो बिन पानी मछली की तरह तड़पना पड़ता है उसे|" डाक्टर साहब बोल उठे|
ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोल उठा-"पर ये ताकतवर कलम हम तक नहीं पहुँच पाती|"
"क्यों भई, आप दूध के धुले तो हैं नहीं|" गाँव का प्रधान बोला|
"अरे कौन मूर्ख कहता हैं कि दूध का धुला हूँ | पर काम ऐसा हैं कि मूर्ख को मूर्ख बना जाता हूँ | जल्दी किसी को समझ नहीं आता है मेरा खेल|" फिर जोर का ठहाका ऐसे भरे जैसे इसका दम्भ था उन्हें |
सारी नदियाँ जैसे समुद्र से मिलती हैं | विधायक महोदय के आते ही उनसे मिलने उनके नजदीक पहुँच गईं|
"नेता जी मेरे कालेज को मान्यता दिलवा दीजिये बड़ी मेहरबानी होगी आपकी |" कालेज संचालक बिनती करते हुए बोल पड़ा |
"बिल्कुल मिल जायेगा, कल आ जाइये हमारे आवास पर | मिल बैठकर बात करतें हैं|"
"क्यों ठेकेदार साहब आप काहे बच बचा निकल रहें हैं | फिर पास बुला फुसफुसाते हुए बोले- "अमे मिया ये कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका| इतने कम में तो मैंने तुम्हारा पास करवा दिया था फिर भी तुमने तो कुछ ज्यादा ही ...|"
"नेता जी आगे से ख्याल रखूँगा| गलती हो गयी माफ़ करियेगा |" हाथ जोड़ते हुए नेता जी की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा |
"अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा ..., सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहें | आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो हम आपका रखेंगे |" विधायक साहब कान के पास बोले |
"जी सर, इस बार दंगे की तलवार से मेरा सिर कटने से बचा लीजिए, नौकरी के दामन पर दाग़ नहीं लागना चाहता | आगे से मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा |"
सुनकर नेता जी मुस्करा पड़े| सारे लोगों से मिलने के पश्चात वापस जाते हुए उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी | दो साल पहले तक जो अपनी छटी कक्षा में फेल होने का अफ़सोस करता था| आज अपने सामने बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे खड़े देख गर्व कर रहा था|
तभी एक किसान का इंजीनियर बेटा सबसे मुखातिब हुआ| स्टेज पर चढ़ उसने कहा- "आप में से कुछ ने मेरे पिता को दुःख पहुँचाया हैं | उनके आत्महत्या में हाथ भी आप सब का हैं | फिर उसने सब को ऐसा आईना दिखाया कि सब के होश पख्ता हो गये | सबकी तस्वीरें और फुसफुसाहटें वीडियों में साफ़-साफ़ सुनी जा सकती थीं|
बाजी पलट चुकी थी! नेता से लेकर ठेकेदार तक अब सब उसके कदमों में लोट रहे थे। अब वह अपनी कीमत आँकने में लगा था!!
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(21). श्री वीरेन्द्र वीर मेहता जी
छिपा हुआ सच
 
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"टिकट नहीं है साहब !" लोकल ट्रेन में पास ही बैठे उस लड़के की आवाज से वह सहसा अपने विचारों से उभर आया जिसमें वह अक्सर अपनी यात्रा में खो जाया करता था। उस लड़के ने अपनी बात कहने के साथ ही अपनी कलाई टिकट चेकर की ओर बढ़ा रखी थी जिस पर 'गोल स्टैम्प' लगी हुयी थी जो आमतौर पर जेल से रिहा होते समय बतौर पहचान लगा दी जाती है।
चेकर टिकट चेक करता हुआ आगे निकल गया और वह शख्स अब अनायास ही उस लड़के के बारे में जानने को उत्सुक हो उठा।
"क्या किया था बेटा ? जो 'सजा' हुयी थी तुम्हे !"
"कुछ नहीं, बस मंदिर से एक मुकुट चोरी का आरोप था।" वह धीरे से मुस्करया।
"क्यों किया था ऐसा ?
"मैंने नही, मेरे एक दोस्त ने चुराया था।"
"और वो दोस्त....!
"वो बच गया, मूर्ति मेरे पास थी।"
"ओह ! सच में क़ानून की आँखों पर पट्टी बंधी है।" उसने अफ़सोस जताया।
"नहीं साहब, उस पट्टी की ओट से बहुत कुछ देखा भी जाता है और झूठ-सच बेचा भी जाता है।" लड़के की बातों में बड़ो जैसी गंभीरता थी।
"मैं समझा नही, क्या कहना चाहते हो ?" उसने लड़के को कुरेदना चाहा।
"साहब ! मेरा दोस्त उसी मंदिर के पुजारी का बेटा है और उनकी सहमति से ही ये चोरी हुयी थी।"
"ओह ! सच में लोगों को अब कानून का डर नही रहा।"
"साहब, जिन्हें ईश्वर की खुली आँखों का डर नही वो कानून की बंद आँखों से क्या डरेंगे?" लड़का समझदारी की बात कह रहा था।
सही कहा बेटा ! पर तुम्हे तो इंसाफ नही मिला। व्यर्थ ही सजा काट आये।" उसने लड़के की ओर देख गहरी सांस ली।
"कोई बात नही साहब ! कभी कभी पर्दे के पीछे का सच भी दिखाई नही देता।" लड़का मुस्कराने लगा। "मुझे सजा काटने का कोई दुःख नही क्योंकि सौदे में मेरा हिस्सा तो मुझे पहले ही मिल गया था।"
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(22). श्री महेंद्र कुमार जी
एवरीथिंग इज़ फेयर


किसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे साइकोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. शशांक ने वाइन का पूरा गिलास एक ही सांस में अंदर किया और फिर सिगार का क़श लगाने के बाद कोर्टरूम की यादों में खो गए।
"जज साहब, इस हैवान को फांसी की सज़ा मिलनी ही चाहिए।" वक़ील ने जज से ज़ोर दे कर कहा।
"तुम्हें कुछ कहना है?" जज ने कटघरे में खड़े आरोपी से पूछा।
उसने कोर्टरूम में बैठे डॉ. शशांक की तरफ़ देखा और कहा, "मेरे दोस्त, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।"
डॉ. शशांक अभी भी सोफ़े पर बैठे हुए थे और आज कोर्टरूम में जो कुछ भी हुआ उसे पूरी तरह महसूस कर रहे थे।
जज ने अपना फैसला सुनाया, "ये अदालत मिस्टर मिहिर को उनके मित्र डॉ. शशांक की बीवी के साथ अवैध सम्बन्ध रखने और फिर राज़ खुल जाने के डर से उनका क़त्ल करने के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाती है।"
तभी डॉ. शशांक के फ़्लैट की घण्टी बजती है। वे दरवाज़ा खोलते हैं। बाहर जाह्नवी थी जो बहुत घबरा रही थी। वह अन्दर आती है और उनसे लिपट कर रोने लगती है।
"तुम चिन्ता क्यों करती हो? मैं हूँ न।" डॉ. शशांक ने जाह्नवी को ढांढस बंधाते हुए कहा।
"क़ाश मैं तुम्हारी बात मान लेती। तुमने मुझसे कहा था कि मिहिर से शादी मत करो, वह तुमसे प्यार नहीं करता मग़र मैंने तुम्हारी एक भी नहीं सुनी। तुम मुझे हमेशा से चाहते थे लेकिन मैंने कभी तुम्हारी क़द्र नहीं की। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।" जाह्नवी ने सिसकते हुए कहा।
डॉ. शशांक ने जाह्नवी को बाँहों में भर लिया और फिर उस आलमारी की तरफ़ देखा जहाँ पर रखी सम्मोहन की किताबें बड़े रहस्यमयी ढंग से उनकी तरफ़ देख कर मुस्कुरा रही थीं।

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(23). श्री मोहन बेगोवाल जी
पर्दे की पीछे
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“ये हमें बाँटना क्यूँ चाहते हैं” नंदू ने दर्द भरी आवाज़ से मास्टर से पूछने के अंदाज़ में कहा ।

मास्टर कुछ समय के लिए  चुप चाप कुर्सी पर बैठा कल की घटना के बारे में सोच रहा था ।   

नंदू फिर  कहने लगा, “हमारे पास बाँटने को है भी क्या है, हमारे शरीरों व् दिलों में से किसी को जख्मों कि सिवा क्या मिलेगा ?”

कुछ दिनों से गाँव में संतू के परिवारों का बाईकाट चल रहा था ।

वैसे तो संतू और नंदू दोनों एक साथ ही जंगल में काम करने जाते थे ।

मगर कल बंतू ने नंदू  से कहा  “अब हमें भी गाँव छोड़ना होगा ” । तो संतू के चेहरे पर भी उस दिन डर झलक रहा था ।

संतू की जात के कुछ परिवार पहले ही गाँव छोड़ कर जा चुके थे । नंदू को रात भर नींद नहीं आई और सुबह जल्दी ही  नंदू मास्टर को पूछने के लिए पहुंच गया था ।

अभी भी नंदू मास्टर के चेहरे की तरफ देख रहा था, मगर उसे जवाब नहीं मिल रहा था ।

“इस बार तो हम ने कोई पुगार बढ़ाने की भी  बात  नहीं कही ” नंदू ने खुद से कहा, फिर उस लगा संतू का परिवार ही क्यूँ, हम भी मजदूरी करते है।  

मास्टर सोच रहा था , “क्या मेरा जवाब इनको संतुष्ट कर पायेगा ?”

फिर भी मास्टर ने कहना शुरू किया, नंदू, “सरपंच और लाला” ।

“क्या हुआ उनको ?” बात को बीच में काटते हुए नंदू ने कहा ।

“उनको कुछ नहीं होता, जब उनको कुछ होने लगता है, तो वो हम के बीच कुछ करने लगते है” ।

“समझा नहीं’,यही बात कि हम समझ नहीं पाते और उनका शिकार बन जाते हैं हम ।“

अचानक ही नंदू के विचारों के प्रवाह को झटका लगा ।

जब मास्टर ने कहा, “बात तो ताकत की है” ।जब किसी ताकत छीनने लगती है तो .......... ।

सरपंच को लाला ही सरपंच बनाता था और सरपंच उस कि किसी काम का  विरोध नहीं कर सकता था, पर इस बार उस को लगा सरपंच ने संतू के कबीले को अपने  साथ कर लिया है, और लाले की अब सरपंच को जरूरत नहीं रही ।

“तभी ये ........”..नंदू ने कहा

“ये पर्दे के पीछे की राजनीती कहाँ नजर आती है हमको ”, मास्टर ने नंदू से कहा ...... ।

“आज संतू, कल नंदू तुम और  फिर पता नहीं कौन ......., जब तक हम सब इस पर्दे के पीछे की राजनीती, बे पर्द नहीं करते , ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा” । मास्टर ने कहा ।

नंदू उठा और संतू के घर की तरफ चल पड़ा ।

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(24). श्री विनोद खनगवाल जी
पर्दे के पीछे

सरकार के द्वारा इस बार दिवाली पर चीन निर्मित उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। टीवी पर खबरों में लोग इन उत्पादों का बहिष्कार करके देशभक्ति निभाने की कसमें खा रहे थे। इस विषय पर पड़ोसी दोस्तों के साथ एक गर्मागर्म चर्चा के बाद मैं भी अपनी बेटी के साथ दिवाली की खरीदारी करने चल दिया था।
"पापा ये लो! पापा ये भी ले लो!!"-बेटी ने एक दुकान पर कई चीजें पसंद आ गई थीं।
"कितने का होगा भाई ये सब सामान?"
"साहब! दस हजार के करीब हो जाएगा।"-दुकानदार ने हिसाब लगाकर बताया।
"दस हजार का!!! भाई जी और अच्छी सी वेरायटी का सामान नहीं है क्या तुम्हारे पास.....?"
"साहब, आप अंदर चले जाइए। आपको आपके हिसाब का सारा सामान मिल जाएगा।"- दुकानदार की अनुभवी आँखों ने मेरे चेहरे के भाव पढते हुए पर्दे के पीछे बनी दुकान में जाने का इशारा कर दिया।
"ये तो चाइनीज आइटम हैं!!! सरकार ने इसको बैन कर रखा है ना...?"
"साहब, पर्दे के पीछे सब चलता है। कोई दिक्कत नहीं है सभी के पास दिवाली की मिठाई पहुँच चुकी है।"
अब दिवाली की खरीदारी मजबूरी थी इसलिए बिना कोई बहस किये अंदर चला गया। वहाँ जाकर देखा तो देशभक्ति की कसमें खाने वाले दोस्तों की मंडली पहले से ही वहाँ मौजूद थी। सभी की नजरें आपस में मिली तो चहरों पर एक खिसियानी मुस्कुराहट दौड़ गई। सभी के मुँह से एक साथ निकला- "यार, हम तो सिर्फ देखने आए थे।"

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(25). श्री तेजवीर सिंह जी
वल्दियत – (लघुकथा )

सुबोध की शादी के बारह साल बाद बेटा हुआ था।नामकरण संस्कार पर बहुत बड़ी दावत रखी थी।दावत में यार दोस्त, रिश्तेदार,अड़ौसी पड़ौसी सब एकत्र हुए थे।खुशी का माहौल था।कुछ मुँह लगे दोस्त सुबोध से ठिठोली भी कर रहे थे।
"भाई सुबोध, बता तो सही,आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे"।
"कैसा चमत्कार"।
"यही जो बारह साल बाद  तेरे घर में हुआ"।
"तुम लोग भी यार कमाल की बात करते हो।यह  तो साधारण सी बात है।इसमें चमत्कार कैसा"।
"तो बारह साल से क्यों नहीं हुआ"।
"ऊपरवाले की मर्जी"।
"ऊपरवाला यानी तेरा किरायेदार"।
"यार तुम लोग अब अपनी सीमा पार कर रहे हो"।
"अबे यह हम नहीं कह रहे, तेरे मोहल्ले वाले कह रहे हैं।हर एक के मुंह पर यही बात है”|
“देखो दोस्त, इस तरह के हालात में हर कोई बकवास करने को आज़ाद होता है"।
"तो तुम अपनी बीवी से सच्चाई क्यूं नहीं पूछ लेते"।
"वाह,क्या सलाह दी है, तुम मेरे दोस्त हो।ठीक है मैं यह भी कर सकता हूं।मगर पहले मुझे यह जानना है, तुम लोगों में कितनों ने अपनी पत्नियों से अपने बच्चों की वल्दियत की सच्चाई पूछ ली है"।
"यार तू पागल है, हम क्यों ऐसी बात पूछेंगे।हमारा मसला ऐसा थोड़े ही है"।
"दोस्त, एक स्त्री से उसके बच्चे के बाप के बारे में पूछना, वह भी उसके पति द्वारा, इसका मतलब समझते हो"।
"देख भाई, मन में शंका हो तो पूछ लेना चाहिये"।
"पहली बात आप जैसे ही यह प्रश्न अपनी बीवी से करोगे, मतलब उसके चरित्र पर संदेह, यानी अपने ही हाथों अपनी खुशहाल गृहस्थी में पलीता देना और दूसरी बात, उसके उत्तर देने से पहले ही आपकी खुद की मर्दानगी भी दाँव पर"।

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(26). सुश्री अपर्णा शर्मा जी

पर्दे के पीछे

देशी-विदेशी दानदाताओं के उद्दात सहयोग से नर्मदा नदी के किनारे करीब 100 एकड़ में फैला भव्य आश्रम और गुरुकुल आध्यात्म की पुण्यस्थली के रूप में विख्यात था। चमत्कार और पुण्यलाभ की आशा में दूर-दूर से श्रृद्धालु आकर भक्तिभाव से बाबा के चरणों में शीश नवाते और सदवचनों का लाभ लेते। महिला गुरूकुल भी अपनी संस्कारवान शिक्षिकाओं के लिये प्रसिद्ध था। उस दिन करीब रात नौ बजे बाबाजी ने अपने कक्ष के पलंग पर विश्राम करने को उद्धत हुए। सेवक ने बादाम का गर्म दूध चाँदी के गिलास में लाकर दिया।

"आज प्रवचन सुनने बड़ी भीड़ थी"। बाबा जी ने सेवक से कहा।

फिर बोले:

"जाओ, गुरुकुल में जो नई कन्या आई है उसे दीक्षा के लिये ले आओ"।

सेवक ने जाकर कन्या को नहाधोकर दीक्षा के लिये तैयार होने को कहा। फिर उसे विशेष प्रसाद दिया। और बाबा के कक्ष में दीक्षा लेने भेज दिया। नशीला प्रसाद अपना असर दिखा रहा था। धीरे-धीरे कन्या बेसुध होने लगी और बाबाजी के हाथ उसके सुकोमल कंधे पर फिसल रहे थे...!!

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(27).  श्री चंद्रेश कुमार छतलानी जी

दहन किसका

 

"जानते हो रावण की भूमिका करने वाला असली जिंदगी में भी रावण ही है, ऐसा कोई अवगुण नहीं जो इसमें नहीं हो|" रामलीला के अंतिम दिन रावण-वध मंचन के समय पांडाल में एक दर्शक अपने साथ बैठे व्यक्ति से फुसफुसा कर कहने लगा|

दूसरे दर्शक ने चेहरे पर ऐसी मुद्रा बनाई जैसे यह बात वह पहले से जानता था, वह बिना सिर घुमाये केवल आँखें तिरछी करते हुए बोला, "इसका बाप तो बहुत सीधा था, लेकिन पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी की भूल कर बैठा, दूसरी ने  दोनों बाप-बेटे को घर से निकाल दिया...”

“इसकी हरकतें ही ऐसी होंगी, शराबी-जुआरी के साथ किसकी निभेगी?"

"श्श्श! सामने देखो|" पास से किसी की आवाज़ सुनकर दोनों चुप हो गये और मंच की तरफ देखने लगे|

मंच पर विभीषण ने राम के कान में कुछ कहा, और राम ने तीर चला दिया, जो कि सीधा रावण की नाभि से टकराया और अगले ही क्षण रावण वहीँ गिर कर तड़पने लगा, पूरा पांडाल दर्शकों की तालियों से गूँजायमान हो उठा|

तालियों की तेज़ आवाज़ सुनकर वहां खड़ा लक्ष्मण की भूमिका निभा रहा कलाकार भावावेश में आ गया और रावण के पास पहुंच कर हँसते हुआ बोला, "देख रावण... माँ सीता और पितातुल्य भ्राता राम को व्याकुल करने पर तेरी दुर्दशा..., इस धरती पर अब प्रत्येक वर्ष दुष्कर्म रूपी तेरा पुतला जलाया जायेगा..."

नाटक से अलग यह संवाद सुनकर रावण विचलित हो उठा, वह लेटे-लेटे ही तड़पते हुआ बोला, "सिर्फ मेरा पुतला! उसका क्यों नहीं जिस कुमाता के कारण तेरे पिता मर गये और तुम दोनों को...."

उसकी बात पूरी होने से पहले ही पर्दा सहमते हुए नीचे गिर गया|

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यथा निवेदित तथा प्रस्थापित.

ओ बी ओ लाइव लघुकथा गोष्ठी - १८ के सफ़ल आयोजन और त्वरित संकलन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।

हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जीI

आ०  अनुज , प्रथम तो आपके सञ्चालन को साधुवाद . पुनः उसी त्रुटि के प्रक्षालन का अनुरोध जिसका संकेत आपने  किया था -चौधरी ने साध्वी का हाथ थाम लिया.---इसे कथा से डिलीट करने की कृपा करें . सादर

यथा निवेदित तथा संशोधित

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी मेरी लघुकथा का यह संसोधित रूप स्वीकार किया जाए। आपसे विनम्र निवेदन है।


पर्दे के पीछे

सरकार के द्वारा इस बार दिवाली पर चीन निर्मित उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। टीवी पर खबरों में लोग इन उत्पादों का बहिष्कार करके देशभक्ति निभाने की कसमें खा रहे थे। इस विषय पर पड़ोसी दोस्तों के साथ एक गर्मागर्म चर्चा के बाद मैं भी अपनी बेटी के साथ दिवाली की खरीदारी करने चल दिया था।
"पापा ये लो! पापा ये भी ले लो!!"-बेटी ने एक दुकान पर कई चीजें पसंद आ गई थीं।
"कितने का होगा भाई ये सब सामान?"
"साहब! दस हजार के करीब हो जाएगा।"-दुकानदार ने हिसाब लगाकर बताया।
"दस हजार का!!! भाई जी और अच्छी सी वेरायटी का सामान नहीं है क्या तुम्हारे पास.....?"
"साहब, आप अंदर चले जाइए। आपको आपके हिसाब का सारा सामान मिल जाएगा।"- दुकानदार की अनुभवी आँखों ने मेरे चेहरे के भाव पढते हुए पर्दे के पीछे बनी दुकान में जाने का इशारा कर दिया।
"ये तो चाइनीज आइटम हैं!!! सरकार ने इसको बैन कर रखा है ना...?"
"साहब, पर्दे के पीछे सब चलता है। कोई दिक्कत नहीं है सभी के पास दिवाली की मिठाई पहुँच चुकी है।"
अब दिवाली की खरीदारी मजबूरी थी इसलिए बिना कोई बहस किये अंदर चला गया। वहाँ जाकर देखा तो देशभक्ति की कसमें खाने वाले दोस्तों की मंडली पहले से ही वहाँ मौजूद थी। सभी की नजरें आपस में मिली तो चहरों पर एक खिसियानी मुस्कुराहट दौड़ गई। सभी के मुँह से एक साथ निकला- "यार, हम तो सिर्फ देखने आए थे।"

मौलिक और अप्रकाशित

यथा निवेदित तथा प्रस्थापित.

संशोधित करने की कोशिश की है, कृपया आदरणीय प्रभाकर भैया जी इसे प्रस्थापित कर दीजिए पहले वाले से ...सादर नमस्ते भैया

~बाजी~


"वाह भई, कलम के सिपाही भी मौजूद हैं। " पीडब्‍ल्‍यूडी के चीफ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली।

"काहे के सिपाही। कलम तो आप सब के हाथ में हैं, जैसे चाहे घुमाये।" पत्रकार सबकी तरफ देखता हुआ बोला।
" पर पत्रकार भाई, आजकल तो जलवा आपकी ही कलम का है। आपकी कलम चलते ही, सब घूम जाते हैं । फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है। आपकी कलम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता हैं, हम सब वो कर गुजरते हैं। " डाक्टर साहब व्यंग करते हुए बोल उठे।

"सही कह रहे हो आप सब। वैसे हम सब एक ही तालाब के मगरमच्‍छ हैं। एक-दूजे का ख्याल रखें तो अच्छा होगा। वरना लोग लाठी-डंडे लेकर खोपड़ी फोड़ने पर आमदा हो जाते हैं।" लेखपाल ने बात आगे बढ़ाई|

"पर ये ताकतवर कलम, हम तक नहीं पहुँच पाती है।" ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोला।
"क्यों? आप कोई दूध के धुले तो हैं नहीं।" गाँव का प्रधान बोला।
"अरे कौन मूर्ख कहता है हम दूध के धुले हैं। पर काम ऐसा है जल्दी किसी को समझ नहीं आता है हमरा खेल।" फिर जोर का ठहाका ऐसे भरा जैसे इसका दम्भ था उन्हें ।
सारी नालियाँ जैसे बड़े परनाले से मिलती हैं, वैसे ही विधायक महोदय के आते ही, सब उनसे मिलने उनके नजदीक जा पहुँचे।

"नेता जी मेरे कालेज को मान्यता दिलवा दीजिये, बड़ी मेहरबानी होगी आपकी।" कालेज संचालक बिनती करते हुए बोला ।
"बिल्कुल, कल आ जाइये हमारे आवास पर। मिल बैठकर बात करतें हैं।" विधायक जी बोले।
"क्यों ठेकेदार साहब, आप काहे छुप रहे हैं। अरे मियाँ, यह कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका। इतने कम कीमत में तो मैंने तुम्हारा टेंडर पास करवा दिया था, फिर भी तुमने तो कुछ ज्यादा ही ...।"
"नेता जी आगे से ख्याल रखूँगा। गलती हो गयी, माफ़ करियेगा ।" हाथ जोड़ते हुए ठेकेदार बोला।

विधायक जी ठेकेदार को छोड़, दूसरी तरफ मुखातिब हुए, "अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा ..., सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहें हैं। आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो ही तो हम आपका रख पाएंगे।" विधायक साहब कान के पास बोले।

"जी सर, पर इस दंगे की तलवार से, मेरा सिर कटने से बचा लीजिए। दामन पर दाग़ नहीं लगाना चाहता । आगे से मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा।" साथ में डीएम साहब भी हाथ जोड़ खड़े थे।
सुनकर नेता जी मुस्करा उठे।

सारे लोगों से मिलने के पश्चात उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी । दो साल पहले तक, जो अपनी छटी कक्षा में फेल होने का अफ़सोस करता था। आज अपने आगे-पीछे बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे घूमते देख, गर्व से फूला नहीं समा रहा था।

तभी सभा कक्ष के दरवाजे पर खड़ा हुआ एक नौजवान सबसे मुखातिब हुआ। उसने विनम्रता से कहा, ‘’और मैं एक किसान परिवार का बेटा हूँ। जिसकी पढ़ाई करवाते-करवाते पिता कर्जे से दबकर आत्‍महत्‍या कर बैठे। परिवार का पेट भरने के लिए मुझे चपरासी की नौकरी करनी पड़ रही है। पर मुझे आज समझ आया कि मेरे पिता की आत्‍महत्‍या और मेरे परिवार को इस स्थिति में लाने में आप सबका हाथ है। आपका कच्‍चा चिठ्ठा अब मेरे पास है।‘’
बाजी पलट चुकी थी! विधायक से लेकर ठेकेदार तक, सब एक-दूसरे का मुँह ताक रहे थे।
पाठको, आगे क्‍या हुआ होगा, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है।

//पाठको, आगे क्‍या हुआ होगा, यह आपकी सोच पर निर्भर करता है।//

लघुकथा में ऐसा नहीं लिखा जाताI

अरे ! भैया यह गलती से लिखा  रह  गया |  लिखना  न था..कापी  पेस्ट  में  कट  नहीं पाया  ..सादर नमस्ते |

सादर नमस्ते भैया | सही कर दिए |

~बाजी~


"वाह भई, कलम के सिपाही भी मौजूद हैं। " पीडब्‍ल्‍यूडी के चीफ इंजीनियर साहब ने पत्रकार पर चुटकी ली।

"काहे के सिपाही। कलम तो आप सब के हाथ में हैं, जैसे चाहे घुमाये।" पत्रकार सबकी तरफ देखता हुआ बोला।
" पर पत्रकार भाई, आजकल तो जलवा आपकी ही कलम का है। आपकी कलम चलते ही, सब घूम जाते हैं । फिर तो उन्हें ऊँच-नीच कुछ नहीं समझ आता है। आपकी कलम का तोड़ खोजने के लिए जो बन पड़ता हैं, हम सब वो कर गुजरते हैं। " डाक्टर साहब व्यंग करते हुए बोल उठे।

"सही कह रहे हो आप सब। वैसे हम सब एक ही तालाब के मगरमच्‍छ हैं। एक-दूजे का ख्याल रखें तो अच्छा होगा। वरना लोग लाठी-डंडे लेकर खोपड़ी फोड़ने पर आमदा हो जाते हैं।" लेखपाल ने बात आगे बढ़ाई|

"पर ये ताकतवर कलम, हम तक नहीं पहुँच पाती है।" ठहाका मारते हुए बैंक मैनेजर बोला।
"क्यों? आप कोई दूध के धुले तो हैं नहीं।" गाँव का प्रधान बोला।
"अरे कौन मूर्ख कहता है हम दूध के धुले हैं। पर काम ऐसा है जल्दी किसी को समझ नहीं आता है हमरा खेल।" फिर जोर का ठहाका ऐसे भरा जैसे इसका दम्भ था उन्हें ।
सारी नालियाँ जैसे बड़े परनाले से मिलती हैं, वैसे ही विधायक महोदय के आते ही, सब उनसे मिलने उनके नजदीक जा पहुँचे।

"नेता जी मेरे कालेज को मान्यता दिलवा दीजिये, बड़ी मेहरबानी होगी आपकी।" कालेज संचालक बिनती करते हुए बोला ।
"बिल्कुल, कल आ जाइये हमारे आवास पर। मिल बैठकर बात करतें हैं।" विधायक जी बोले।
"क्यों ठेकेदार साहब, आप काहे छुप रहे हैं। अरे मियाँ, यह कैसा पुल बनवाया, चार दिन भी न टिक सका। इतने कम कीमत में तो मैंने तुम्हारा टेंडर पास करवा दिया था, फिर भी तुमने तो कुछ ज्यादा ही ...।"
"नेता जी आगे से ख्याल रखूँगा। गलती हो गयी, माफ़ करियेगा ।" हाथ जोड़ते हुए ठेकेदार बोला।

विधायक जी ठेकेदार को छोड़, दूसरी तरफ मुखातिब हुए, "अरे एसएसपी साहब आप भी थोड़ा ..., सुन रहें हैं सरेआम खेल खेल रहें हैं। आप हमारा ध्यान रखेंगे, तो ही तो हम आपका रख पाएंगे।" विधायक साहब कान के पास बोले।

"जी सर, पर इस दंगे की तलवार से, मेरा सिर कटने से बचा लीजिए। दामन पर दाग़ नहीं लगाना चाहता । आगे से मैं आपका पूरा ख्याल रखूँगा।" साथ में डीएम साहब भी हाथ जोड़ खड़े थे।
सुनकर नेता जी मुस्करा उठे।

सारे लोगों से मिलने के पश्चात उनके चेहरे की चमक बढ़ गई थी । दो साल पहले तक, जो अपनी छटी कक्षा में फेल होने का अफ़सोस करता था। आज अपने आगे-पीछे बड़े-बड़े पदासीन को हाथ बाँधे घूमते देख, गर्व से फूला नहीं समा रहा था।

तभी सभा कक्ष के दरवाजे पर खड़ा हुआ एक नौजवान सबसे मुखातिब हुआ। उसने विनम्रता से कहा, ‘’और मैं एक किसान परिवार का बेटा हूँ। जिसकी पढ़ाई करवाते-करवाते पिता कर्जे से दबकर आत्‍महत्‍या कर बैठे। परिवार का पेट भरने के लिए मुझे चपरासी की नौकरी करनी पड़ रही है। पर मुझे आज समझ आया कि मेरे पिता की आत्‍महत्‍या और मेरे परिवार को इस स्थिति में लाने में आप सबका हाथ है। आपका कच्‍चा चिठ्ठा अब मेरे पास है।‘’
बाजी पलट चुकी थी! विधायक से लेकर ठेकेदार तक, सब एक-दूसरे का मुँह ताक रहे थे।

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