परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 183 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा मशहूर शायर स्वर्गीय कुँवर बेचैन साहब की ग़ज़ल से लिया गया है।
तरही मिसरा है:
“जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना”
बह्र है फ़ायलातुन्, फ़ियलातुन्, फ़ियलातुन्, फ़यलुन् अर्थात् 2122 1122 1122 112 या 22
रदीफ़ है ‘’लिखना’’ और क़ाफ़िया है ‘’आनी’’
क़ाफ़िया के कुछ उदाहरण हैं जवानी, पुरानी, सुहानी, अजानी, सयानी, मानी, दानी आदि
उदाहरण के रूप में, मूल ग़ज़ल यथावत दी जा रही है।
मूल ग़ज़ल:
दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना
जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना
कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे हिस्से में कोई शाम सुहानी लिखना
आते जाते हुए मौसम से अलग रह के ज़रा
अब के ख़त में तो कोई बात पुरानी लिखना
कुछ भी लिखने का हुनर तुझ को अगर मिल जाए
इश्क़ को अश्कों के दरिया की रवानी लिखना
इस इशारे को वो समझा तो मगर मुद्दत बा'द
अपने हर ख़त में उसे रात-की-रानी लिखना
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 सितंबर दिन शनिवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितंबर दिन रविवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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मंच संचालक
तिलक राज कपूर
(वरिष्ठ सदस्य)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Tags:
2122 - 1122 - 1122 - 112 / 22
हमने सीखा है ये धड़कन की ज़बानी लिखना
दिल पे आता है हमें दिल की कहानी लिखना
सख़्त मुश्किल था क़लम से जो कहानी लिखना
कितना आसान है अश्कों की ज़बानी लिखना
आँखें कर देती हैं दिल पे लिखी हर बात बयाँ
दिल पे दिल की न कभी कोई कहानी लिखना
'अह्द-ए-हाज़िर में उख़ुव्वत का तसव्वुर यूँ है
“जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना”
हो क़वाफ़ी का तक़र्रुर तो तुम्हें दें ऊला
फिर मेरे मिसरे पे तुम मिसरा-ए-सानी लिखना
हर नए-पन से तबी'अत में है इक उकताहट
अबकि तुम ख़त में कोई याद पुरानी लिखना
उसने अश्कों ही से लिख डाली महब्बत की किताब
उस के हिस्से में भी इक शाम सुहानी लिखना
तंग-नज़री से त'अस्सुब ही से हलकान थे हम
और अब उन का हमें दुश्मन-ए-जानी लिखना
दौर-ए-हाज़िर में सियासत की बिगड़ती सूरत
जाँ-निसारों को दग़ा-बाज़ों का सानी लिखना
भेज देना उसे लिख कर मेरे हालात 'अमीर'
रोटियाँ हाथों में और आँखों में पानी लिखना
"मौलिक व अप्रकाशित"
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। मतला और हुस्न ए मतला भी खूब हुआ है। गिरह के लिए भी बधाई। अपने हालात थोड़ा अलग है अमीर साहब। अभ्यास के क्रम में मक्ते का अपना सानी "रोटियाँ ख़्वाबों में और आँखों में पानी लिखना" वाला है।
सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।
//मक्ते का अपना सानी "रोटियाँ ख़्वाबों में और आँखों में पानी लिखना" वाला है।//.... जी अच्छा है।
दरअस्ल "रोटियाँ हाथों में और आँखों में पानी लिखना" वाला सानी हमारे अतराफ़ में बोला जाने वाला मुहावरा "हाथ में रोटी, आँख में आँसू" पर आधारित है, जिस का भावार्थ है कि परिस्थितियाँ इतनी विचित्र और कष्टदायक हैं कि भोजन की व्यवस्था से चिंता-मुक्त होने के बावजूद दूसरे ग़मों के कारण आँखों के आँसू नहीं सूख पा रहे हैं। सादर।
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