आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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मोहतरम जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
बढ़िया लघुकथा आदरणीय वीरेंद्र जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आपकी लघुकथाओं की सबसे बड़ी विशिष्टता होती है दृश्य चित्रण । /"टिकट नहीं है साहब !" लोकल ट्रेन में पास ही बैठे उस लड़के की आवाज से वह सहसा अपने विचारों से उभर आया जिसमें वह अक्सर अपनी यात्रा में खो जाया करता था।/ यहां आपने आपने 'वह' पात्र का एक सहज चित्रण किया है जो अक्सर यात्रा के दौरान अपने विचारों में खो जाता है । आपकी इसी विशिष्टता कि वजह से पाठक को लघुकथा एक चलचित्र भांति चलायमान महसूस करता है । मेरा तो मानना है कि दृश्य चित्रण हेतु यदि दो चार पंक्ितयां अधिक भी लिखनी पड़ जाए तो कोई हर्ज नहीं है। बाकी लघुकथा तो विषय से न्याय कर ही रही है । मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं ।
हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी। विषय को सार्थक करती बेहतरीन प्रस्तुति।
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