For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लखनऊ चैप्टर की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन 19 जनवरी को कानपुर कनिष्का होटल मे -- एक रिपोर्ट

ओबीओ लखनऊ चैप्टर का पादप कुछ  अधिक पुष्पित पल्लवित हो  इस आशा के साथ कानपुर की सर जमीं पर इसका आयोजन किया गया । मेरी और कानपुर की ही ओबीओ की सदस्या आ0 मीना जी की  हार्दिक अभिलाषा थी कि एक काव्य गोष्ठी का आयोजन हमारे शहर कानपुर मे भी किया जाय जिसे लखनऊ चैप्टर के संयोजक आ0 डॉ शर्देंदु मुखर्जी जी एवं कार्यकारी सदस्य आ0 बृजेश नीरज जी ने सहर्ष स्वीकार किया और हमारे आग्रह  को मान दिया । फलस्वरूप गोष्ठी का आयोजन 19 जनवरी रविवार को कानपुर के कनिष्का होटल मे सम्पन्न हुआ  ।कार्यक्रम का शुभारंभ माँ शारदा की प्रतिमा को माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन से हुआ । आ0 अनीता मौर्य जी ने मधुर स्वर मे सरस्वती वंदना गाकर सबको सम्मोहित किया ।  

 कार्यक्रम का संचालन आ0 बृजेश ' नीरज ' जी ने किया ।  कार्यक्रम की अध्यक्षता कानपुर से वरिष्ठ गीतकार एवं भूतपूर्व वायु सैनिक आ0 राम कृष्ण चौहान जी ने की । मुख्य आतिथ्य स्वीकार किया लखनऊ से आए आ0 नरेंद्र भूषण जी ने ।

विशिष्ट अतिथियों मे  लखनऊ के गण मान्य डॉ अनिल मिश्र जी , डॉ कैलाश निगम जी , आ0 मधुकर अस्थाना जी , कानपुर से आ0 शैलेंद्र शर्मा जी ने कार्यक्रम की शोभा बढाई ।

जिसमे ओबीओ परिवार के लखनऊ क्षेत्र के सभी सदस्य आ0 डॉ शर्देंदु मुखर्जी जी , आ0 कुंती दीदी , आ0 प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी , आ0 बृजेश ' नीरज ' जी , आ0 केवल प्रसाद 'सत्यम ' जी ,आ0  राहुल देव , आ0 एस सी ब्रम्ह्चारी जी , आ0 संध्या सिंह जी ने अपनी उपस्थिति से हमे अनुगृहीत किया । लखनऊ से ही आ0 आदित्य चतुर्वेदी जी , राजर्षि त्रिपाठी जी , प्रदीप शुक्ल जी , अनिल ' अनाड़ी ' जी , प्रदीप शुक्ल ' गोबर गणेश ' जी , पी के  गंगवार जी , एवं विश्व विधायक साप्ताहिक समाचार पत्र से श्री मृत्युंजय गुप्त जी  का आगमन अनुगृहीत कर गया ।

कानपुर से आए साहित्य कारों मे आदरणीय देवेंद्र ' सफल ' जी , आ0 गिरिजा शंकर त्रिपाठी जी , आ0 राजेन्द्र अवस्थी जी ,आ0 नवीन मणि त्रिपाठी जी , करुणावती साहित्य धारा के संपादक आ0 आनंद विक्रम त्रिपाठी जी , काव्यंजलि के संस्थापक आ0 गोविंद नारायण शांडिल्य जी ,आ0 ब्रिज नाथ श्रीवास्तव जी ,  अनीता मौर्य , चाँदनी पांडे ,हेमंत पांडे , राहुल शुक्ल , मनीष'मीत ' , हर्ष वर्धन त्रिवेदी , आ0 सुरेन्द्र 'शशि ' , बी डी सिंह ' सत्य प्रिय ' कुमार सूरज , राजकुमार सचान , वैभव कठियार , सुरेश साहनी , गीतकार श्री मोहन लाल गौतम जी , आ0 अल्का मिश्रा  , कल्पना बाजपेई , श्री मोहन सिंह कुशवाहा , सर्वेश पाठक एवं अन्यान्य साहित्य प्रेमी उपस्थित हुए ।

अध्यक्ष श्री राम कृष्ण चौहान ने एक गीत सुनाया

कुछ भी कहने मे बेबस है

अंदर ही अंदर दहता है

घुटन बेबसी लाचारी मे

जाने वह क्या क्या सहता है

ऐसे मे यदि प्यार भरे दो

बोल कहीं कोई क़हता है

मानव की क्या बात , देवता

भी उसी का होकर रहता है ।

गीतकार मोहन लाल गौतम जी के मोहक गीत की पंक्तियाँ :-

सज धज कर साजन आए द्वारे

मैंने खोले हृदय किवारे

खुल गई आँख सेज है सूनी

नैना बस दो बूंद है धारे ।

आदरणीय देवेंद्र ‘सफल’ जी की सम्मोहित करती पंक्तियाँ :

किस माटी की बनी हुई हो ,

तुम कैसे सहती हो पीर

कैसे ये दुर्दिन निभाती

अम्मा तुम कितनी गंभीर

कवि गिरिजा शंकर त्रिपाठी जी की पंक्तियाँ :-

बांध दई बाज संग जीवन की नईया

दहेज बलि चढ़ि गई गाँव की गौरईया

एक तुकबंद :-

तुलना की विषम तराजू पर

भावों के मांस पिंड रख कर

तौलता कसाई जब मेरे

उर के भावों को खंडित कर

विश्वासों की बेहोशी मे जब

मुझको काट दिया जाता

 

हेमंत पांडे जी की व्यंग्यात्मक पंक्तियाँ :-

जो देख के दर्द भी नारों मे खड़े है

मै जानता हूँ किसके इशारों मे खड़े है

नेताओं के पुतले जो दिन रात फूंकते है

वो भी अब टिकट कतारों मे खड़े है

आ0 मीना धर जी की इस कविता ने खूब तालियाँ बटोरी :-

नहीं आता मुझे तुकांत अतुकांत

नहीं आता मुझे छंद अलंकार

लिखती हूँ मै भागते दौड़ते

बच्चों को स्कूल भेजते

आफिस जाते पति को टिफिन पकडाते

आटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते

ब्लाउज की आस्तीन से पसीना पोंछते

अपनी भावनाओं को दिल मे छिपाते

मुसकुराते , सारा दिन की थकान लिए

रात मे बिस्तर तक आते आते

लिख कर पूरी कर ही लेती हूँ

अपनी कविता ... गृहणी हूँ न ... गृहणी हूँ न

बस ऐसे ही लिखती हूँ अपनी कविता ।

अनीता मौर्य जी की पंक्तियाँ : -

लड़खड़ाए कदम मुझे हाथ दे

अपने सुख दुःख के पल हम चलो बाँट ले

यूं ही कट जाएगा जिंदगी का सफर

मै तेरा साथ दूँ तू मेरा साथ दे

मनीष ‘मीत’ जी ने गज़ल सुनाई :-

कोरे मन के कागज पर

जब सबने कुछ पैगाम लिखा

राधा ने घनश्याम लिखा

मैंने तेरा नाम लिखा

चाँदनी पांडे जी ने गजल से मोहक समां बांधा  :-

खुशी ने ख़ुदकुशी कर ली एक तेरे दूर जाने से

गमो को जब्त कर तबस्सुम ही बहाना है

बड़ा संगीन किस्सा है बहुत लंबा फसाना है

कभी वापस जो आओगे तुम्हें रोकर सुनाना है ।

 राहुल शुक्ल जी की गजल लुभावनी रही  :-

तुझसे टूटा तो मै बिखर जाऊंगा

तू ही ये सोच कि किधर जाऊंगा

तेरे दिल तक तो है मंजिल मेरी

उस तक न पहुंचा तो मै बहक जाऊंगा

 अन्नपूर्णा बाजपेई का घनाक्षरी छंद :-

छलक छलक जाती हैं अँखियाँ प्रभुश्याम

 आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ

ब्रज के कन्हाई का भरोसा मिल गया

खुशी न समानी मन मानी हुई जाती हूँ । 

आ0 बृजेश ‘नीरज’ जी की रचना  ने श्रोताओं को दुबारा सुनने पर विवश किया :-

गाँव नगर मे हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे

आ0 नवीन मणि त्रिपाठी जी रचना की कुछ पंक्तियाँ :-

हाँ यही सच है

आज पंडित महा दलित हो गया है

आ0 केवल प्रसाद ‘सत्यम’ जी की कुण्डलिया ने बहुत लुभाया :-

सरसइया के घाट पर करके गंगा स्नान

दान पुण्य परमार्थ से अर्जित करते मान

अर्जित करते मान शान संस्कृति का रखते

दीन हीन के साथ समृद्धि का योग रखते

देश करे अभिमान कानपुर मंझला भैया

उद्योगों का नगर तीर गंगा सरसइया ।

आ0 अनिल मिश्र ‘अनाड़ी’ जी की चुटीली रचना ने खूब हँसाया :-

जिंदगी होई गए झंडू बाम भैया

आ0  ‘गोबर गणेश’ जी की रचना दहेज लोभियों पर करारा व्यंग्य करती दिखी :-

जो कुछु देहो तुम

अपने बिटिया दामाद का देहो

हमका का देहो

आ0 प्रदीप शुक्ल जी ने जीवन संगिनी पर बहुत ही सटीक रचना सुनाई

समयाभाव के कारण हम कई कवि मित्रों एवं वरिष्ठ जनों को नहीं सुन पाये । समारोह को सफल बनाने मे सहयोगी रहा हमारा ओबीओ परिवार,  जिसके सभी सदस्य लखनऊ से कानपुर की सर जमी पर पहुंचे थे एवं कानपुर सभी मित्र जिनके बिना सब असंभव था । इस तरह का आयोजन हमेशा होता रहे इस आशा के साथ सभी एक दूसरे से विदा हुए ।  

 

 

 

Views: 2274

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, सबसे पहले एक सफल आयोजन की परिकल्पना करने और उसकी सफलता का कारण बनने के लिए आपको हार्दिक बधाई. आपके उद्देश्य पर कभी नहीं लेकिन आयोजन के सफलता की व्यापकता पर यदि कोई संशय मेरे मन में रहा हो तो वह सुखद रूप से निर्मूल कर दिया उस दिन के आयोजन ने. मुझे विश्वास है लखनऊ चैप्टर अपनी नयी विस्तृति में ओ.बी.ओ. के अन्य शहरों के सदस्यों के लिए कुछ संदेश देने में सफल हुआ है. रचनाकर्म के साथ-साथ वैचारिक आदान-प्रदान और एक दूसरे को सुनने समझने की गरिमामय प्रक्रिया रचनाकार, श्रोता, पाठक/पाठिकाओं के हित में ही होता है. यदि हम वरिष्ठजनों को सुन सकते तो और अच्छा होता...हर आयोजन से हमें कुछ सीख मिलती है...कानपुर में भी हमने अनुभव बटोरे जिनका सदुपयोग हम भविष्य में अवश्य करेंगे. आपका और कानपुर के साहित्य प्रेमियों का सहयोग मिलता रहेगा ऐसा लिखना ही शायद अत्योक्ति है. उस दिन मैंने ताली बजाई थी या नहीं ...याद नहीं लेकिन यहाँ कहना चाहूंगा कि आदरणीया मीना पाठक जी की रचना इस आयोजन की विशिष्ट उपलब्धि थी...उन्होंने मुझे आनंद से सराबोर एक स्तब्धता दी....मैं समझता हूँ उस दिन के अधिकांश श्रोता मुझसे सहमत होंगे. सादर.

आ0 मुखर्जी जी आपके कथन से मै पूरी तरह से सहमत हूँ । 

आदरणीय शरदिंदु सर , सादर नमन 

समझ नही पा रही हूँ कि किन शब्दों मे आभार प्रकट करूँ, मै कोई बहुत बड़ी रचनाकार नही बस एक गृहणी हूँ , जो भी अपने आस-पास देखती हूँ,महसूस करती हूँ शब्दों मे उकेरने का प्रयास करती हूँ , आप के द्वारा मेरी रचना को उस दिन की 'विशिष्ट उपलब्धि' से सम्मानित करना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है | मै आप से ये सम्मान पा कर बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ, हृदयतल से आभार स्वीकारें |
सादर 

इच्छा तो मेरी भी थी कि इस कार्यक्रम में मौज़ूद होता. इस लिये कि कानपुर इलाहबाद शहर पास ही हैं. साधन भी बहुतायत में हैं और विशेष दूर भी नहीं. लेकिन जिस तिथि पर उक्त कार्यक्रम के नियत होने की सूचना अन्नपूर्णाजी की ओर से आयी थी, मैं उसी तिथि को भोपाल के निकट सिहोर के एक साहित्यिक कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर मैं आमंत्रित हो चुका था.
और चाह कर भी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाया था. आज रिपोर्ट पढ़ कर मन अत्यंत प्रसन्न है. इस सफल आयोजन के लिए सभी सदस्यों को मेरी सादर बधाइयाँ.
 

आ0 सौरभ जी अगले आयोजन मे आपकी प्रतीक्षा रहेगी । सादर 

कानपुर का आयोजन आदरणीया अन्नपूर्णा जी के श्रम और संलग्नता की कहानी कहता है! कानपुर और लखनऊ के श्रेष्ठ रचनाकारों को एक मंच पर इकठ्ठा देखने और उनको सुन सकने का यह एक सुनहरा अवसर था! इस सफल आयोजन के लिए आदरणीया अन्नपूर्णा जी को हार्दिक बधाई! 

आदरणीय शरदिंदु जी के कहे से मैं सहमत हूँ कि आदरणीया मीना पाठक जी का रचना-पाठ इस आयोजन की उपलब्धि थी. मंच से, अतिथियों से फिर से उस रचना को सुनाने का आग्रह कम ही होता है और मीना जी की रचना ने वह कमाल कर दिखाया. आदरणीया मीना जी को बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें!

व्यस्तताओं के चलते आदरणीय सौरभ जी और वीनस भाई का न आ पाना हम सबको खला वरना इस आयोजन को और चमक मिल जाती!

सादर!

आ0 बृजेश जी आपने सही कहा मीना जी की रचना ने उस दिन वाकई कमाल किया  , एक गृहणी की कहानी कह सुनाई थी उन्होने अपनी रचना मे । उनको मेरी भी हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई । आ0 सौरभजी व आ0 वीनस जी के आने से वास्तव मे आयोजन को चमक मिल जाती ।

बहुत बहुत आभार अन्नपूर्णा जी 

आदरणीय बृजेश जी मेरी इस उपलब्धि मे आप का भी सहयोग है, आप के सहयोग और मार्गदर्शन के लिए मै बहुत आभारी हूँ आप की | सादर 

वाह बहुत सुन्दर आयोजन सभी रचनाकारों की रचनाओं के अंश पढना बहुत सुखद रहा  

आपका हार्दिक धन्यवाद आ0 वंदना जी । 

बहुत बहुत बधाई आप सभी को ............ आ0 मीना धर जी की इस कविता :- नहीं आता मुझे तुकांत अतुकांत नहीं आता मुझे छंद अलंकार लिखती हूँ मै भागते दौड़ते बच्चों को स्कूल भेजते आफिस जाते पति को टिफिन पकडाते आटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते ब्लाउज की आस्तीन से पसीना पोंछते अपनी भावनाओं को दिल मे छिपाते मुसकुराते , सारा दिन की थकान लिए रात मे बिस्तर तक आते आते लिख कर पूरी कर ही लेती हूँ अपनी कविता ... गृहणी हूँ न ... गृहणी हूँ न बस ऐसे ही लिखती हूँ अपनी कविता .........
.सच में ऐसे ही लिखती है कविता गृहणिया .दिल को छू गयी ...........


कुछ सोते कुछ औघते सुन रहे है कविता /
अचानक जग बजा देते है तालिया /
यह दिखाते हुए कि सुनी बड़ी ध्यान से कवितायेँ /
पर कौन सुनना चाहते है कविता /
कविता तो कभी परेशानी कभी /
मंजर होता है कवि के द्वारा झेला /
कभी मन को उड़ान देता है कवि/
भावों को शब्द देने के खातिर  /
कुछ हँसते खिलखिलाते चेहरे बता रहे है /
बहुत अच्छी लगी गोष्ठी /
कुछ एक दूजे की ओर देख /
समझने की कोशिश में है कि
क्या अच्छी लगी तुम्हें कविता /
कुछ व्यस्त हैं अपने ही मोबाइल में /
शायद कुछ लिख रहे है
या fb का पोस्ट कर रहे है लाइक /
क्योकि fb पर भी ऐसे ही बेमन से होते है कुछ लोग /
पढ़े ना पढ़े से अहसास दिलाते जैसे यहाँ /
फिर भी सारांश  यह है कि..
यु ही जारी रहे गोष्ठिया
औघते चेहरे को भुला अपने जेहन से .......सविता ..बस यु ही चित्र देख ख्याल आया .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
18 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
20 hours ago
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post ठहरा यह जीवन
"आदरणीय अशोक भाईजी,आपकी गीत-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाइयाँ  एक एकाकी-जीवन का बहुत ही मार्मिक…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. रवि जी "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service