आदरणीय साथिओ,
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सादर आभार आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी सर, आपको यह प्रयास ठीक लगा, रचना पर आपके अनुमोदन ने मेरा मनोबल बढाया है|
हार्दिक आभार आदरणीया शशि जी, लघुकथा के इस प्रयास पर आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मायने रखते हुए उत्साहवर्धन करती है| सादर,
मुहतरम चंद्रेश कुमार साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघुकथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---
रचना के इस प्रयास पर आकर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया मुहतरम तस्दीक़ अहमद खान साहिब| सादर,
रचना के मर्म तक जाकर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरी हौसला अफज़ाई के लिए आपका बहुत आभारी हूँ आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब| सादर,
आहा चंद्रेश जी , मजा आ गया . बेहतरीन कथा . सादर .
सादर आभार आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सर, आपको यह प्रयास पसंद आया और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन किया|
प्रिय अनुज जी, कथा के शीर्षक से शुरूआत करता हूं जो बहुत ही सधा हुआ तीक्ष्ण और उपयुक्त है। /जिन्हें अपने शौक पूरे करने के लिये रौशनी से बेहतर अंधेरे लगते हैं,/ बहुत खूब, क्या बात है! शब्दों का सुन्दर व स्टीक संयोजन लघुकथा को एक विशिष्ट आयाम प्रदान कर रहा है। /उनकी बहनें किसी की बीवी नहीं बन पायीं और तुम यहीं आकर अपनी बीवी की बहन को खोज रहे हो!"/ बहुत गूढ़ बात कह दी भाई जी जो सीधे दिल में उतर गई। /वह सड़क पर पान की पीक थूक कर अपने मकान के अंदर चली गयी।/व्यवस्था के प्रति उसकी नफरत मुखरता के साथ सामने आ रही है। शीर्षक से लेकर अंतिम पंक्ित तक एक ज़ोरदार कथा जो पाठक को बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है। सादर शुभकामनाएं
मेरी रचना इतने दिनों के बाद आपकी टिप्पणी से समृद्ध हुई| इस सौभाग्य हेतु आभार दर्शाना भी छोटा लगता है, आदरणीय अग्रज रवि जी सर| यही निवेदन है कि इस स्नेह को यूं ही बनाये रखें| सादर,
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