आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार जी।बेहतरीन प्रस्तुति ।बहुत ही मार्मिक प्रसंग लिया है आपने।
‘जवाब’
मनोज जब घर लौटा तो माँ चहक चहक कर किसी से बाते कर रही थी I
“पहचाना बेटा i राधा मौसी “I
राधा मौसी बारह तेरह साल पहले पास की खोली में रहती थी I माँ की पक्की सहेली थी , सगी बहन जैसी I पति की मौत के बाद अपने पाँच साल के बेटे को लेकर वो अपने गाँव चली गई थी I
“हाँ हाँ पहचान लिया “ मनोज ने हाथ जोड़ दिए I आज पता नहीं क्यों उसका मन बहुत भारी था I पर्दा लगा कर अलग किये खोली के हिस्से में जाकर वो अपने पलंग पर पड़ जाना चाह रहा था चुपचाप I
“ छोटू अब डॉक्टरी की परीक्षा में बैठने वाला है पता i राधा उसको कोचिंग दिलवाने के लिए इसी शहर में रहने आ गई है वापस I हनुमान मंदिर के पास खोली भी ले ली है”I मनोज की उदासीनता माँ को अच्छी नहीं लग रही थी I
“ छोटू ने बारवीं भी कर ली i मुझे तो वो ही छोटू याद है जो स्कूल जाने में रोता था और मै टॉफी का लालच देकर उसे स्कूल छोड़ कर आता था “I मनोज को बात चीत में शामिल देख माँ के चेहरे पर अब तसल्ली थी I
“दिन रात मेहनत तो कर रहा है छोटू I कोचिंग से आकर भी अपनी कोठरी में ही घुसा रहता है I पढ़ पढ़ कर आँखें सुजा ली हैं “I मौसी की आवाज में चिंता थी I
“डॉक्टरी की परीक्षा भी कोई हल्की वाली नहीं होती है मौसी I पर देखना जरूर निकलेगा अपना छोटू “I
“कमजोर भी बहुत हो गया है ,मुझसे भी ढंग से बात नहीं करता “I मौसी की आवाज़ भर्रा गई I
“ भगवान सब ठीक करेंगे “ माँ ने मौसी का हाथ अपने हाथ में ले लिया I “ बीए के बाद पांच छःसाल मनोज भी कितना परेशान रहा था नौकरी के लिए I अब ठीक है सब भगवान की दया से “I माँ ने ऊपर देखते हुए हाथ जोड़ दिए I
“ अब कहाँ नौकरी है ?” मौसी अब संयत थी I
“कोई सेठ के यहाँ है I है तो भागा दौड़ी की ही पर पैसे ठीक मिल जाते हैं “I मनोज के लिए वहां बैठना अब मुश्किल हो रहा था I
“ मै आता हूँ मौसी अभी “I
“ठहर मनोज “ मौसी अपना झोला टटोलने लगी “ ये देख फोटो छोटू का I कहीं टकरा जाए तो पहचान तो ले तू अपने छोटू को I आने से पहले गाँव में ही खिचवाई थी”I
माँ के कंधे को घेरे युवा छोटू हँसता हुआ बहुत प्यारा लग रहा था I अचानक मनोज को लगा जैसे जलता कोयला हाथ में ले लिया है I
“ बहुत सुन्दर लग रहे हो आप दोनों “ फोटो मौसी को थमा भारी क़दमों से अपने पलंग तक पहुँच वो ढेर हो गया I
क्यों आज उस गिडगिडाते याचना करते बैचैन लड़के को देख उसका मन भारी हो गया था , क्यों उस लड़के को मारने के लिए उठे रज्जाक भाई के हाथ को उसने पकड़ लिया था I हर ‘क्यों’ का जवाब अब आँसूं बनकर चादर को भिगो रहा था और रज्जाक भाई के शब्द कानों में गूँज रहे थे I
“देख मनोज, तुझे तो छः महीने ही हुए हैं ,मै चार साल से हूँ इसमें I हलक के अन्दर हाथ डालकर पैसे निकालने पड़ते हैं इन छोरों से I नशे के धंधे में दिल कमजोर रख कर काम नहीं चलता” I
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीया नीता जी
रचना पर प्रथम उत्साहवर्धन के लिए ..हार्दिक आभार आदरणीया शशि जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |