आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
गैर-जरूरी--?
"ओए ! तू किधर भागा जा रहा है, आज़ इत्ती जल्दी दुकान काहे बन्द कर दी...?" लालू को हड़बड़ाहट में साईकिल पर सवार होते हुए देख सोहना ने गली से ही आवाज़ लगाई ।
"चच्चा सरकारी कोटा वाला चावल फिनिश हुई गवा है!अब बाज़ारी रेट पर मिलेगा !" साईकिल पर सवार होते-होते लालू ने सोहना से पीछा छुड़ाने का जतन किया।
"ठीक है, ठीक है सुन तो! बाज़ारी भाव ही ले ले..! जमाई जी आये है; नाक कट जायेगी जो आज़ घर में चावल न पका।" सोहना गली के मुहाने से ही हाथ हिलाते हुए रिरियाया।
"चच्चा ! फोर-जी सिम कनेक्शन लेने जा रहा हूँ।अब तो नाम-मात्र के पैसों में बात होगी। ऊपर से इंटरनेट भी मुफ़्त ! उसी से फ़ोन करके तुम्हे बुला लूँगा। अभी टाइम नही है।" कहते हुए लालू ने साईकिल आगे बढ़ा दी।
" चल हट! कोई मुफ्त में देता है कुछ?" हाथ में झोला लटकाए-लटकाए लगभग दौड़ते हुए सोहना गली से निकल कर अब सड़क पर लालू के क़रीब आ पहुँचा।
" कस्सम से चच्चा ! एक्को धेला नही देना पड़ेगा।" ब्रेक लगा कर एक पैर से साईकिल साधते हुए लालू ने अपनी बात की पुरज़ोर हिमायत की।
"ऐसा कौन दानवीर हुआ है जो..?" सोहना बोल ही रहा था कि लालू ,उसका कन्धा थपथपाते हुए चहक उठा।
" बहुत बड़ा कारोबारी है। कहता है कि इंटरनेट बहुत जरूरी है और यह हर देशवासी का हक़ है।अपने हक़ के लिए मैं किसी को पैसा नही खर्चने दूँगा।"
"अच्छा!! पर चावल तो ज़्यादा जरूरी है..।" सोहना गम्भीर होते हुए बुदबुदाया फ़िर फ़ौरन लालू की ख़ुशामद करते हुए बोला।
" हमारा लालू क्या कोई छोटा व्यापारी है भला! चल मुफ़्त न सही पर तू मुझे सरकारी भाव पर ही चावल दे देना।"
सोहना का आग्रह सुनकर लालू पल भर के लिए सकपका गया फ़िर "आखिर आप बुड्ढे लोग कब तक चावल-दाल में ही अटके रहोगे? इंटरनेट का जमाना है चच्चा! इंटरनेट का!" कहते हुए साईकिल दौड़ा दी।
कुछ पलों तक ख़ामोश खड़े रहने के बाद निराश सोहना, जरूरी-गैरजरूरी के हिसाब में उलझ कर धीरे-धीरे वापस उसी तंग गली में गुम होता जा रहा था।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित
इस सार्थक कथा के लिए बधाई स्वीकारें सर | दो मुट्ठी चावल नहीं मिल पाया और नेट का क्या होगा ? बहुत बढ़िया !
आदरणीय सुधीर जी, जबरदस्त, लाजवाब. इस शानदार लघुकथा को पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद. ऐसा पैना व्यंग्य किसी पंचलाइन से पैदा हो जाए तो लघुकथा की सफलता सुनिश्चित हो जाती है.
इस लघुकथा में यदि केवल इन्वर्टेड कॉमा के भीतर के वाक्य अर्थात कथोपकथन और पंचलाइन ही पढ़ ली जाए तो भी कथा और कथा का सन्देश स्पष्तः संप्रेषित हो जाता है. सादर
बहुत ही तगड़ा कटाक्ष किया है इस लघुकथा के माध्यम से भाई सुधीर द्विवेदी जीI प्राथमिक्तायों का यह तुलनात्मक अध्ययन लागुकथा को एक ज़बरदस्त ऊंचाई दे गयाI ढेरों ढेर बधाई प्रेषित हैI
//कुछ पलों तक ख़ामोश खड़े रहने के बाद निराश सोहना, जरूरी-गैरजरूरी के हिसाब में उलझ कर धीरे-धीरे वापस उसी तंग गली में गुम होता जा रहा था।// बहुत खूब .. समसामयिक हालातों पर बढ़िया कटाक्ष ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सुधीर जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |