आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
आदरणीया राजेश कुमारी जी, एक नवीन विषय को लेकर बहुत अच्छी रचना का सृजन किया है आपने| कई अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर भी हमें स्वयं को ही खोजना होता है| सादर बधाई स्वीकार करें इस बहुत अच्छे सृजन हेतु| कहीं-कहीं टंकण की छोटी-मोटी त्रुटियाँ हैं जैसे आकार-आकर, ये बात - यह बात, वो दौड़ में - वह दौड़ में, // जब भी वो दौड़ में आगे निकलता // वाली पंक्ति में तीन वाक्य हैं इसमें कॉमा का प्रयोग हो सकता है आदि| सादर,
मैं गुलाम हूँ
स्वतंत्रता सैनानियों के एक श्रद्धांजलि समरोह में देशप्रेम से ओतप्रोत कई कार्यक्रम एवं भाषण देखने-सुनने के बाद उन्हीं विचारों में डूबा हुआ वह कार चलाते हुए किसी अनजाने रास्ते पर चला गया। उसके दिमाग में गूँज रहा था, "शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।"
तभी उसे सड़क के बीचों-बीच कुछ दूरी पर लकड़ियों का एक ढेर जलता हुआ दिखाई दिया, उसने हड़बड़ाहट में कार रोकी और वहां जाकर देखा। वह एक चिता थी, लेकिन आसपास कोई नहीं था। वह घबरा गया और चिल्लाया, "कोई है..."
एक क्षण की शांति के बाद उसे एक जोशीली आवाज़ सुनाई दी, "मैं हूँ भगत।"
"कौन भगत... कहाँ हो?"
"सरदार भगत सिंह हूँ, चिता में पड़ा हूँ... अकेला...कोई मेला नहीं है।"
वह और घबरा गया, उसने मरी हुई आवाज़ में कहा, "भगत सिंह! तुम्हें तो... सतलुज के पास जलाया गया था..."
"हाँ! सारे टुकड़े जल गए, लेकिन दिल की आग ठंडी नहीं हो रही... जहां जाता हूँ, ज़्यादा जल उठता है..."
"क्यों...?"
"पूर्ण स्वराज मिलेगा तब ही मेरी चिता ठंडी होगी।"
"लेकिन हम तो आज़ाद हैं।"
"क्या मेरे भाईयों को अब कोई भय नहीं? क्या हम सब एक हैं? क्या अब हम, सारे अंग्रेजी कपड़े और किताबें जला कर, उनके कैदी नहीं रहे? बोलो तो..."
वह कुछ कहता उससे पहले ही किसी ने उसे झिंझोड़ दिया। वह हड़बड़ा कर जागा। उसने देखा कि वह तो वहीँ समारोह कक्ष में है, उसके पास बैठे हुए मित्र ने उसे जगाया था और खड़े होने का इशारा कर रहा था।
वह खड़ा हुआ और अपनी टाई को ठीक करते हुए मित्र से सुस्त स्वर में पूछा,
"क्या चंद जलती हुई लकड़ियाँ हमें धोती-कुर्ता पहना सकती हैं?"
मित्र ने उसे आश्चर्य से देखा और राष्ट्रगान के लिए सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया।
(मौलिक और अप्रकाशित)
बहुत-बहुत आभार सुनील जी भाई, आपको यह प्रयास ठीक लगा| आपका "टाइप्ड" न होने का सुझाव बहुत बढ़िया है, मैं ज़रूर ही इस पर अमल करूंगा| सादर,
विचारणीय प्रश्न है अभी कहाँ हुए हम पूरी तरह आजाद ? बहुत खूब सुंदर गंभीर मुद्दे पर लिखी लघु कथा हेतु बहुत बहुत बधाई आद० चंदेश कुमार जी
रचना के इस प्रयास पर उपस्थिति और टिप्पणी हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी टिप्पणी ने मेरा मनोबल उच्च किया है| सादर,
इस प्रयास पर आपकी प्रोत्साहित करती टिप्पणी के लिए दिल से शुक्रिया आपका जनाब मोहम्मद आरिफ जी साहब| सादर,
बहुत-बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी, इस प्रयास पर आपकी उपस्थिति और टिप्पणी ने मेरा मनोबल बहुत उच्च किया है| सादर,
सादर आभार आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी सर, यह प्रयास आपको ठीक लगा और अपनी टिप्पणी द्वारा आपने मेरा उत्साहवर्धन भी किया|
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |