आदरणीय साथिओ,
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पहली लघुकथा में पोहा इतना हावी हो गया कि सन्देश दबकर रह गयाI और आपने यहाँ जाने-अनजाने में दीनी तालीम को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया हैI दूसरी कथा पहली की ही दूसरी किस्त लग रही है, किन्तु पहली से कुछ बेहतर हैI लेकिन तलाक़ ना देने का कोई लॉजिकल रीज़न देने में आप असमर्थ रहे हैंI क्या वहीद अपनी पत्नी को सुधरने का मौक़ा देना चाह रहा है? बात स्पष्ट नहीं हुईI बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें भाई उस्मानी जीI
खुसुर-पुसुर=खुसुर-फ़ुसुर
दूसरी रचना पर पहली रचना प्रभावी ही गई. बधाई आप को दोनों लघुकथा के लिए.
दोनों ही लघुकथाएँ अच्छी हैं। बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बहुत खूबसूरत लघुकथायें ।
दोनों की कथा अच्छी हुई है आदरणीय शहजाद जी | हार्दिक बधाई |
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