आदरणीय साथिओ,
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उत्तम लघु कथाएँ , बहुत बहुत बधाई आपको ।
(1) सीधा आदमी
"तेरी मईया का..." टीवी खोलते ही डॉ. मुकुल के मस्तिष्क में यह वाक्य गूँज उठा।
डॉ. मुकुल शहर के जाने-माने मनोचिकित्सक हैं। आज सुबह जब वह अपने क्लीनिक जा रहे थे तो रास्ते में एक मोटा और भद्दा-सा व्यक्ति एक सीधे-सादे आदमी को पीट रहा था। वह उसकी पकड़ से बचने की लाख कोशिश कर रहा था मगर सब बेकार।
"प्लीज हेल्प!" उसने कहा, मगर पब्लिक चुपचाप खड़ी थी।
पिटने वाला शख़्स गोरे-चिट्टे बदन का छरहरा नौजवान था। उसके सूट, टाई और ब्रीफ़केस को देख कर लग रहा था कि वह किसी अच्छी जगह काम करता है। इसके विपरीत वह थुलथुला आदमी शक़्ल से ही गुण्डा लगता था। उसने कुर्ते के साथ आधी टांग तक उठा हुआ पायजामा पहन रखा था और पैरों में हवाई चप्पल।
"तेरी मईया का..." वह उसे लगातार पीटते हुए गालियाँ दे रहा था।
अचानक वह युवक किसी तरह उसकी पकड़ से छूटा और सीधे पब्लिक की तरफ़ भागा जहाँ डॉ. मुकुल भी खड़े थे। वह आदमी भी उसके पीछे लपका मगर इस बार उसे पब्लिक ने रोक लिया। उस आदमी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह उन्हें भी गालियाँ देने लगा जो उस युवक को बचाना चाहते थे। बस फिर क्या था, पब्लिक लगी उसे धुनने। मौका देखकर वह नवयुवक वहाँ से भाग गया।
टीवी पर दिखायी जाने वाली इस घटना की सीसीटीवी फुटेज से साफ़ पता चल रहा था कि किस तरह उस आदमी के पान थूकने पर बगल में खड़े उस नवयुवक ने ज़रा सी छींट पड़ने पर उसकी पेंटिंग फाड़ दी थी।
टीवी पर एंकर बोल रही थी, "देश के महान चित्रकार शाहिद अहमद हमारे बीच नहीं रहे। अचेतन अवस्था में उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनकी मौत हो गयी। उनकी नवीनतम कृति को फाड़ने वाला जेल से भागा हुआ कुख्यात अपराधी अभी भी फ़रार।"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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(2) वह तोड़ती पत्थर
वह महिला अभी भी इलाहाबाद के पथ पर पत्थर तोड़ रही थी। एक आदमी जो बहुत देर से उस महिला को देख रहा था, ने कलम से काग़ज़ पर कुछ लिखा और कहा:
"यह एक हृदय विदारक कविता होगी।" महिला ने उसकी तरफ देखा और पुनः चुपचाप पत्थर तोड़ने लगी।
वह महिला अब बूढ़ी हो चुकी थी। उसके चेहरे पर झुर्रियाँ थीं तो जिस्म पहले से और ज़्यादा काला। उसने आज भी वही मैली-कुचैली धोती पहनी थी जो अब लोकतंत्र की तरह जगह-जगह से फट चुकी थी।
"तुम चिन्ता मत करो, मैं तुम्हें अमर कर दूँगा।" उस आदमी ने पत्थर तोड़ती हुई महिला से कहा।
उसने घूर के उसकी तरफ़ देखा और खड़ी हुई। फिर हथौड़ा फेंक कर उसे मारा और कहा:
"कविता कलम से नहीं हथौड़े से लिखी जानी चाहिए।"
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(मौलिक व अप्रकाशित)
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की " वह तोड़ती पत्थर ... ",आज भी पत्थर तोड़ रही है लेकिन खामोशी से नहीं। बहुत अच्छी लगी ये कथा जिसका प्रेरणा केंद्र एक कविता की नायिका है। बधाई
"सीधा आदमी" अच्छी लघुकथा है मगर "वह तोडती पत्थर" तो लाजवाब लघुकथा है भाई महेंद्र कुमार जी, वाह वाह वाह!! एक कालजयी रचना को आधार बनाकर गज़ब की लघुकथा कही हैI यह लघुकथा इस आयोजन की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है जो आज से कई दशक बाद भी इतनी ही प्रासंगिक और प्रभावशाली रहेगीI अत: इस विशिष्ट प्रस्तुति पर ढेरों ढेर बधाई स्वीकारेंI
बहुत खूब महेंद्र जी , दोनों ही कथाएँ शानदार हैं हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर लघुकथाओं , दूसरी लघुकथा बहुत ही सुंदर लगी, बधाई स्वीकार करें
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