आदरणीय साथिओ,
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गरम भजिये (लघुकथा) :
अपने दोनों बच्चों के ट्यूशन सेंटर चले जाने के बाद अकरम साहब घर के बगीचे में आराम कुर्सी पर पसरे हुए कुदरती ठंडी हवा के मज़े ले रहे थे। तभी उनके मूड के मुताबिक कुछ भजिये और कड़क चाय का कप लेकर उनके नज़दीक पहुंच कर उनकी बीवी ने कहा- "लीजिए जनाब, कुछ गरमा-गरम भी लीजिएगा।"
ऊपर से नीचे तक बीवी को निहारने के बाद उनके हाथ में ट्रे को ग़ौर से देख कर वे बोले- "बहुत-बहुत शुक्रिया। लेकिन ये चाय किसी दूसरे कप में लाओ।"
"क्यों?"
"कितनी बार कहा है कि इस तरह के कप में मुझे चाय पीने का मज़ा नहीं आता!"
"क्यों?"
बेरुखी से ट्रे से चाय का कप उठाते हुए अकरम साहब बोले- "इसका आकार, इसके होंठ तो देखो ज़रा; बिल्कुल तुम्हारी तरह?"
"तो इस उम्र में ये भी तुम्हें ज़ीरो फिगर और पतले होंठों वाला चाहिए!" टेढ़ा सा मुंह बनाते हुए चाय का कप वापस ट्रे में रखकर बीवी रसोई की ओर जा ही रही थी कि एक और ताना सुनाई दिया।
"सुनो, फ्रिज़ की बोतलें पुरानी हो गई हैं। नई बोतलें तुम मत ख़रीदना। इस बार मैं ख़ुद लाऊंगा। तुम्हारे दिमाग़ में तो एक ही आकार-प्रकार बसा हुआ है!"
"क्या मतलब?"
"तुम नहीं समझोगी; ये सब साइक्लोजी की बातें हैं!"
"किसकी साइक्लोजी? मेरी या तुम जैसे मर्दों की?"
"यही समझ लिया होता, तो अपने आप को फिट और मेन्टेन करके रखतीं न!" उन्होंने बीवी पर आदतन एक और तंज कसा।
"अपने आप को मेन्टेन करूं या तुम्हारे ऐश-ओ-आराम को; मुझे भी तो कुछ चाहिए!" बड़बड़ाती हुई बीवी रसोई में चली गई। अकरम साहब मोबाइल के चित्रों पर आंखें गड़ाए गरम भजियों के मज़े ले रहे थे।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
पति की मानसिकता पर सामान्य शब्दों में ही तीक्ष्ण कटाक्ष किया है आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब| सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
आदरणीया शिखा तिवारी जी, यह रचना गलत थ्रेड में पोस्ट हो गयी है|
अच्छी कथा , शिखा जी
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।पति पत्नी की आपसी तानाकशी पर खूबसूरत तंज़ करती हुई बेहतरीन प्रस्तुति।
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