आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय अर्चना जी, बेहतरीन प्रस्तुति।
पहले से बेहतर इस रचना के सृजन हेतु बधाई आदरणीया अर्चना जी| मेरे अनुसार अंतिम बड़बड़ाहट को और बेहतर किया जा सकता है| सादर विचारार्थ,
आदरणीया अर्चना जी, रचना में //हकीकत की धरातल लौटती उर्मिला बड़बड़ा उठी " कैसे तुझपर विश्वास कर तुझे खुला छोड़ दूं ? वैसे भी अपने सुख के लिए मैं थोड़ा इंतजार ना कर सकी । फिर अपने ही द्वारा किये गए विश्वासघात के सत्य को तो मैं झुठला ही नही सकती ।"// के बजाय ऐसा कुछ कहें कि //हकीकत के धरातल पर लौटती उर्मिला बड़बड़ा उठी "विश्वासघाती के पास किसी के लिए भी विश्वास हो सकता है क्या?"// मेरे अनुसार इसके द्वारा कम शब्दों में सब कुछ कह देना चाहिये, लेकिन यह अवश्य देखिये कि कहीं रचना के मूल भाव ही तो प्रभावित नहीं हो रहे| सादर विचारार्थ प्रस्तुत है|
बढ़ीया प्रयास रहा आदरणीय अर्चना जी पर आपसे इससे बेहतर की अपेक्षा रहती है । सादर
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