आदरणीय साथिओ,
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अहा | एक और बेमिसाल कथा , गृहस्थी के सुख के आगे सब बेकार हो जाता है | सर आपकी नज़र कितनी शुक्ष्म चीजो को देख लेती है , और आप उसीमे एक कथा का बिज रोप देते हो , गज़ब बस गज़ब | हार्दिक बधाई आपको |
ज़र्रनावाज़ी का हार्दिक आभार आ० कल्पना भट्ट जी.
सर सच में आपके ऑब्जरवेशन की तो मैं फर्स्ट डे से कायल हूँ |
सत्य वचन बालिके |
बिलकुल मैंने यही कहना चाह था सीमा सिंह जी, रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए हार्दिक आभार.
हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।बेहतरीन प्रस्तुति।कितनी सजीव और यथार्थ से ओतप्रोत लघुकथा। यही सत्य है कि गृहणी जब तक गृह कार्य को एक सुख मान कर समर्पण के साथ करती है, उसे सुख ही मिलता है और कार्य भी उच्च कोटि का होता है।वहीं दूसरी ओर जो महिला गृहकार्य को बेगार समझ कर करती है, वह इस सुख से भी वंचित रहती है और कार्य के परिणाम भी सुखद नहीं होते।मज़ा आगया आदरणीय।
हार्दिक आभार आ० तेजवीर सिंह जी.
रचना को मान देने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया भाई उस्मानी जी.
वाह, अपनों के लिए करने में जो सुख है वह और कहाँ| बहुत बेहतरीन रचना लिखी है आपने प्रदत्त विषय पर आ योगराज सर, लेखनी का प्रवाह बस देखते बनता है इसमें| मानव मन के गूढ़ भावों को इतनी सफाई से कागज़ पर उतार देना आप जैसे सिद्धहस्त के ही बस की बात है| बहुत बहुत बधाई इस लघुकथा के लिए
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