आदरणीय साथिओ,
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बहुत ही लाजवाब लघुकथा रची है जानकी वाही जी, वाह! एक लाचार पति व अपनी भावनाओं की अग्नि में जलती पत्नी के मध्य का वार्तालाप बहुत कुछ कहता हुआ भी बहुत कुछ "अनकहा" छोड़ रहा है. कथा जिस गति से आगे बढती है वह अतुलनीय है, पति के बेजाँ से हाथ को पत्नी द्वारा सहलाया जाना सब कुछ ब्यान कर रहा है. पता नहीं क्यों वह लाचार पति मुझे "जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आँखें मुझ में, राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है" जैसा प्रतीत हुआ. इस रचना की विशेषता यह है कि सब कुछ आँखों के सामने घटित होता हुआ प्रतीत होता है. इस विशिष्ट प्रस्तुती पर मेरी तरफ से हार्दिक प्रशस्तिवाद स्वीकार करें.
बेहतरीन लघुकथा । हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी।
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