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आदरणीया माला जी कथा के मर्म तक पहुँच के आपने जो सार्थक प्रतिक्रिया दी है उसके लिए आभारी हूँ.
"हे भगवान! इसने मेरा धरम भरस्ट कर दिया। पंक्ति पढ़ते ही ही ज्यूँ एक आघात सा लगा | मानसिकता को दर्शाती अति उत्तम कथा बधाई आ. मिथिलेश जी . सादर
आदरणीय सुधीर जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
आदरणीय मिथिलेश भाई
हर व्यक्ति का दोहरा चरित्र होता है। समय परिस्थिति उम्र और ज़रूरत के अनुसार चरित्र उभर कर आता है। लक्ष्मी एकांत में मिल जाय तो यही बाबानुमा भिखारी उसके चरणों में होगा।
हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर ।
वाह आदरणीय मिथिलेश जी, इसबार अपेक्षाकृत अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है, कथ्य और शिल्प पर कथा अधिक सुन्दर बन पड़ी है किन्तु अभी कथा और गठन की मांग करती है.
//बाबानुमा मुंह से टपक रही लार, कम-से-कम, उस पाव-भाजी के कारण नहीं है; ये लक्ष्मी के गदराये बदन की चुभती सिहरन, बखूबी पहचान चुकी थी।//
इसी तरह कुछ और वाक्यों के निरर्थक अंश को हटाकर लघुकथा को अधिक सुघढ़ कर सकते है. इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई प्रेषित है.
आदरणीय बागी सर लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
आपने सही कहा ये वाक्यांश कथा प्रवाह में जबरन घुसाए प्रतीत हो रहे है
आदरणीय सौरभ सर को दि प्रतिक्रिया में इसे स्पष्ट कर चुका हूँ पुनः
बाहर के तपते बदन की गर्मी को भीतर महसूस करता हुआ और
के गदराये बदन की चुभती सिहरन,
जलजला बरपाती एक और ट्रेन, स्टेशन पर बिना रुके, कान फाड़ती हुई निकल चुकी थी।
आदरणीय मिथिलेश जी,
सुन्दर कथा. बाबानुमा सूरत लिये भिखारी के भूख को बडे़ सुन्दर ढ्ंग से चित्रित किया है.
सादर.
आदरणीय Shubhranshu Pandey जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
आदरणीय सुनील जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
भिखारी की जोरदार चीख उसके कानों में पड़ी- "हे भगवान! इसने मेरा धरम भरस्ट कर दिया।"
अचानक एक और पहचान उभर आई थी- भिखारी की भी और लक्ष्मी की भी। ----अंतिम पंक्ति लघु कथा के शीर्षक को सार्थक कर रही हैं
समाज में ऐसे दोगुले चरित्र के लोग ही इस समाज को कलंकित कर रहे हैं ,बहुत बढ़िया लघु कथा हेतु दिल से बधाई मिथिलेश भैया |
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आदरणीय अखिलेश सर लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
आपने सही कहा