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बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , आप की अपेक्षाएँ पूरा करने का प्रयास जरूर करूँगा , स्नेह बनाये रखिये , सादर आभार ..
एक सामान्य सी लगने वाली सामाजिक टिप्पणी के दंश को वही समझ सकता है जिसने ऐसी टिप्पणियों को भोगा हो. सैद्धांतिक तौर पर बड़ी बातों में और आम बोलचाल की टिप्पणियों में बहुत अन्तर हुआ करता है.
यार देखो, लंगड़ा जा रहा है.. जैसी दैहिक विकलांगता पर होती टिप्पणियाँ बोलचाल में कितनी आम हैं, शायद ही कोई इनकार कर सकता है. लघुकथा ऐसी किसी दशा को उभार रही है जिसमें पात्र ऐसे माहौल के बावज़ूद अव्वल हो कर सामने आता है तो उसका हर तरह से स्वागत है. यह अवश्य है कि लेखन के क्रम में नैतिक और व्यावहारिक सीमाओं का अतिक्रमण किसी सूरत में न हो.
इस प्रस्तुति हेतु साधुवाद, आदरणीय.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी । किसी भी व्यक्ति के मनोबल को तोड़ने का बहुत पुराना हथकंडा रहा है ये की उसकी किसी शारीरिक या मानसिक कमज़ोरी को निशाना बनाया जाये । ये एक सम्बोधन उस व्यक्ति का आत्मविश्वास हिलाने में सक्षम होता है , बस यही कुछ मैं कहना चाह रहा था इस लघुकथा के माध्यम से । और कभी कभी यही सम्बोधन उसके लिए उत्प्रेरक का काम है और वो अपने आप को सिद्ध करने के लिए सामान्य से ज्यादा प्रयास करने लगता है । हाँ मैं खुद ये तंय करने में असफल हूँ कि ऐसी जगह " लंगड़ा " शब्द का प्रयोग नैतिक और व्यावहारिक सीमाओं का अतिक्रमण तो नहीं कर रहा है । कृपया इस पर मेरा मार्गदर्शन करने की कृपा करें , सादर आभार आपका ..
आदरणीय विनयजी
अच्छी कथा हुई , आदमी कर्म से जाना जाये न कि चर्म से [ शरीर की बनावट से] ।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बहुत बहुत आभार आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी । वास्तव में इंसान की पहचान उसके कर्मों से ही होती है , सादर ..
सुंदर प्रेरक कथा
आदरणीय पंकज जोशीजी,
सूचनार्थ -
अति आवश्यक सूचना :-
२. सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हलकी टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
बहुत बहुत आभार आदरणीय पंकज जोशी जी ।
आदरणीय विनय जी
संदेशप्रद बहुत सुन्दर लघुकथा.
ईश्वर जिनसे कुछ छीनता है उन्हें बहुत कुछ दे भी देता है.
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथलेश वामनकर जी । ये कुदरती न्याय है शायद , सादर..
बहुत अच्छी लघुकथा ,आदरणीय विनय जी. विषय पर कुछ अलग सोच ली हुई. बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेंद्र पस्तरीया जी । आप जैसे सधे हुए लघुकथाकार द्वारा प्रशंसा पाना बड़ी बात है , सादर ..
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