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दिल से शुक्रिया अग्रज लडीवाला जी।
दिल से शुक्रिया आ० ज्योत्सना जी।
लाजवाब! आ० योगराज सर! खून लेने वाले ने खून लेते वख्त पहचान नही पूछी,देने वाले ने खून देते वख्त पहचान नही देखी,और विडंबना ये के अलग धार्मिक पहचान के कारण ही खून बहा! ऐसा चमत्कार तो लघुकथा में आप ही कर सकते है योगी सर! अभिनन्दन!
आपकी इस सराहना से दिल रंगा-खुश है भाई कृष्णा मिश्रा जी। दिल से शुक्रिया !
आ० अनुज
क्या टंच पञ्च लाईन है -मेरे बुढ़ापे का सहारा, मेरा इकलौता जवान बेटा जा चुका है। अब तो भाई मैं कहीं का भी नहीं। पर पहले वाले का ऐसा प्रश्न करना जो उपकृत हुआ हो.उसके चरित्र को हल्का करता है I
लघु कथा लेखन में आप अग्रजों के भी अग्रज हैं . सादर .
आपकी इस स्नेहसिक्त टिप्पणी से अभिभूत हूँ आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और ह्रदयतल से आभार प्रकट करता हूँ। आपने फरमाया है कि :
//लघु कथा लेखन में आप अग्रजों के भी अग्रज हैं //
तो शोले फिल्म का एक संवाद अर्ज़ करना चाहूँगा कि :
हमारा नाम भी सूरमा भोपाली एसे ई नईं ए !
:)))))))))))))))))))))))))))))))))))
आदरणीय योगराज भाई जी, आपकी जब भी कोई रचना पढता हूं ,ह्रदय पुलकित हो जाता है!आप शब्दों का ऐसा बेहतरीन सांमजस्य बैठाते हो कि कथा का अंत आते आते पाठक हत प्रभ हो जाता है!वह चाहता है कि और आगे पढे,पढता ही रहे!घटना को कितने करीने से पिरोया है ,वाह , लाज़वाब!हार्दिक बधाई!
आपकी इस ज़र्रा-नवाज़ी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आ० तेजवीर सिंह जी। लघुकथा में आपके पास शब्द होते ही कितने हैं खर्च करने के लिए ? अब अगर उन्हें भी करीने से संजोया/पिरोया जाए तो पढ़ने वालों को बदमज़गी न होगी सर ?
ना इस तरफ का ना उस तरफ का सुंदर प्रेरक कथा आदरणीय गुरुदेव
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इसका सारा श्रेय इस मंच को जाता है आ० शशि बांसल जी। जो कुछ पाया - यहीं से ही पाया है। जिस अंतिम पंक्ति की आपने बात की है, उसको पंच लाईन कहा जाता है। पूरी रामकथा के बाद यही पंक्ति लघुकथा उद्देश्य को उजागर किया करती है। बहरहाल, आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा हेतु आपका हार्दिक आभार।