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अपने देश में नेट के अति व्यापक होने के बाद से जो बात एकदम से देखने में आयी है वह यह है कि हिन्दी साहित्य का क्षेत्र तथाकथित ’साहित्यसेवियों’ और ’मान्यवरों’ के ’चंगुल’ से करीब-करीब स्वतंत्र होता जारहा है. एक लेखक के लिए भले ही आज भी स्थापित साहित्यकारों की सूची में शामिल होने का अर्थ उसके रचनाकर्म को प्रिण्ट-प्रकाशन से मिली मान्यता ही है. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि नेट के प्रादुर्भाव के बाद से रचनाकर्म और भाव-संप्रेषण के संसार की परिधि एकदम से विस्तृत हो गयी है. प्रिण्ट-पत्रिकाओं की हैसियत भले ऊँची मानी जाती हो, लेकिन अपने वज़ूद के लिये आज प्रतिदिन लड़ाई लड़ रही पत्रिकायें क्या स्वयं को साधें और क्या रचनाकारों की हैसियत आँकें ? अधिकांश पत्रिकायें तबभी जन्मते दमा की मरीज़ हो जाया करती थीं जब नेट का नामोनिशान क्या कॉन्सेप्ट तक नहीं था, तो आज तो परिस्थितियाँ और भी विकट हैं. बल्कि सही कहें तो बिगड़ी ही हैं.

 

फिर भी, यह प्रिण्ट-पत्रिकाओं की ठसक ही है कि जिन साहित्यकारों की हैसियत, उनकी पृष्ठभूमि तथा उन्हें प्राप्त हुआ या करवाया गया अवसर, इन तीनों का यदि सम्यक सुयोग बन गया तो वे एकदम से लाइम-लाइट में आ जाते हैं, छा जाते हैं. समाज उन्हें पढ़ने-सुनने लगता है. अन्यथा, यह दृश्य आम ही रहा है कि सही मार्गदर्शन तक के लिए नव-हस्ताक्षर साहित्य के महासमुद्र के कुटिल शार्कों के मज़बूत-पैने जबड़ों में फँस कर अपनी संभावनाओं और समय दोनों से खिलवाड़ होता भोगने को विवश रहते हैं. संभावनाओं के साथ जैसा खिलवाड़ साहित्य के प्रकाशन-क्षेत्र में देखा-सुना जाता रहा है वह एक संवेदनशील रचनाकार या पाठक को इस प्रश्न के तमाचे जड़ देने के लिए काफी है कि क्या साहित्य का लक्ष्य वास्तव में मनुष्य या मानवीय समाज ही है ? मठाधीशों की अहं-तुष्टि नहीं !

 

लेकिन नेट के होने के बाद से से रचनाकारों की संख्या में जिसतरह का महाविस्फोट हुआ है, वह संपूर्ण साहित्य-संसार के लिए चौंका देने वाली घटना है. लेकिन अब भी जिस कमी को सबसे अधिक गंभीरता से महसूस की जा रही थी वह है रचनाकर्म के संदर्भ में नव-हस्ताक्षरों के लिए उचित मार्गदर्शन के उपलब्ध न होने की, जिसपर तथाकथित उस्तादों, पण्डितों, धुरंधरों और मठाधीशों का निरंकुश कब्ज़ा इतना मज़बूत हुआ करता है कि उसके विरुद्ध बोलने तक की धृष्ठता एक नये रचनाकार को हाशिये पर डाल देने का कारण हुआ करती है. नेट के कारण इन धुरंधरों के संसार में उथल-पुथल मच गयी है. नेट के माध्यम से ऊर्जस्वी युवाओं का वह वर्ग सामने आया जिसने आपस में ’सीखने-सिखाने’ की वह परिपाटी विकसित की है जिसे साहित्य के संसार में अबतक देखा क्या, सोचा तक नहीं गया था.

 

अपने स्थापना के प्रारम्भिक समय से ही ओपन बुक्स ऑनलाइन (ओबीओ) का प्रबन्धन प्रधान सम्पादक के सक्षम नेतृत्व में अपने सार्थक उद्येश्य ’सीखने-सिखाने’ और ’साहित्य का परिसर सबके लिए’ के दर्शन के प्रति सदा ही गंभीर रहा है. यही कारण है कि मात्र तीन साल की अल्पायु में यह मंच, ओबीओ, कई-कई विसंगतियों को बलात् झेलने के बावज़ूद अपने मार्ग पर दृढ़ता से अग्रसरित रहा है. नये रचनाकारों के लिए ऐसे वातावरण का होना एक सुखद आश्चर्य ही है, जैसाकि ओबीओ पर उपलब्ध होता है. रचनाकारों को उनके रचना-प्रयास के क्रम में सार्थक तथा पवित्र वातावरण में व्यावहारिक मार्गदर्शन का मिलना श्रद्धानत तो करता ही है, यह माहौल उनके प्रयास के लिए उत्प्रेरक का काम भी करता है.  

 

इसी मंच पर सद्यः समाप्त आयोजन ओबीओ लाइव महा-उत्सव का अंक -30 कई मायनों में ओबीओ के प्रबन्धकों, रचनाकारों, पाठकों और समस्त शुभचिंतकों के लिए आत्म-विश्वास के बढ़ने कारण हुआ है. इस आयोजन की आशातीत सफलता ने स्पष्टतः रेखांकित कर दिया है कि साहित्य का वातावरण विधा-शिल्प के विशेषज्ञों की अपेक्षा तो करता है लेकिन आत्मश्लाघा में प्रतिपल जीने वालों से प्रभावित भी नहीं होता. ओबीओ का वातावरण ठोस वैचारिकता के सापेक्ष दृढवत सबल हो रहा है. तभी तो ओबीओ पर चल रहे आयोजनों का मर्सिया पढ़ने को तैयार बैठे कई-कई आत्म-मुग्ध मठाधीशों के लिए एक त्रिदिवसीय आयोजन में प्रविष्टियों और प्रतिक्रियाओं के 1700 से अधिक अपडेट्स संज्ञा-शून्य कर देने के लिए काफी हैं, जैसाकि सद्यः समाप्त हुए महा-उत्सव के दौरान हुआ.

 

लाइव महा-उत्सव के अंक- 30 का शीर्षक शिशु/बाल-रचना था. कोई संदेह नहीं कि प्रबन्धन समिति के जागरुक सदस्य इस शीर्षक की सफलता के प्रति वास्तव में सशंकित थे. इसके अपने कारण भी हैं. इसी मंच पर बाल साहित्य का एक विशेष ग्रुप भी है जिसमें बावज़ूद कई-कई स्तरीय रचनाओं के नई रचनाओं और प्रविष्टियों की निरंतरता का अक्सर टोंटा पड़ा रहता है.  

लेकिन प्रतिभागियों ने सारे भ्रम और संदेहों को दरकिनार करते हुए दिनांक 08  अप्रैल’13 को आयोजन की सफलता का एक नया मील का पत्थर जड़ दिया.  

आयोजन में तैंतीस प्रतिभागियों की कुल 63 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं.

प्रतिभागियों और उनकी प्रविष्टि की सूची इस प्रकार से है.

अनवर सुहैल  - 1, अमित मिश्र  - 2, अमिताभ त्रिपाठी – 1, अरुण कुमार निगम – 2, अरुण शर्मा अनन्त – 2, अशोक कुमार रक्ताले – 3, आशीष नैथानी सलिल – 1, कुन्ती मुखर्जी – 1, कुमार गौरव अजीतेन्दु – 2, केवल प्रसाद – 3, गणेश बाग़ी – 1, गीतिका वेदिका – 3, ज्योर्तिमय पन्त – 1, दिनेश ध्यानी – 3, परवीन मल्लिक – 1, प्रदीप कुमार कुशवाहा – 3, प्राची सिंह – 1, बृजेश कुमार – 3, राजेश कुमारी – 3, राम शिरोमणि पाठक – 3, लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला – 3, वन्दना तिवारी – 1, विजया श्री – 2, विंध्य्श्वरी प्रसाद त्रिपाठी विनय – 2, शालिनी कौशिक – 1, शिखा कौशिक – 3, सीमा अग्रवाल – 1, सतीश मापतपुरी – 1, सत्यनारायण शिवराम सिंह – 2, सरोज गुप्ता – 1, सौरभ पाण्डेय – 1, एसके चौधरी – 3, संदीप कुमार पटेल दीप – 2

 

इससे पूर्व कि आयोजन के रचनाकारों और उनकी प्रविष्टियों पर एक सांकेतिक या संक्षिप्त चर्चा हो, एक बात जो चौंकाने वाली हुई कि अधिकतर प्रतिभागी या तो ओबीओ के सक्रियतम सदस्य थे, या एकदम से नये सदस्य थे जिन्हों ने आयोजन से कुछ ही हफ़्तों या कुछ माह पूर्व ओबीओ की सदस्यता ग्रहण की थी. यानि, एक बड़ा और पुराना वर्ग जो ओबीओ के पटल से ’सीखने-सिखाने’ की परिपाटी के तहत महत्तम ग्रहण कर अपनी कई-कई सीमाओं के कारण अन्यमन्स्क हो चला था, आयोजनों के ऊर्जस्वी माहौल से दूर रह रहा था, ओबीओ की सरपट चाल के आगे स्वयं ही मुख्य राह से किनारे हो गया.

 

पिछले तीन-चार महीनों में ओबीओ के ऑनलाइन आयोजनों को देखा जाय तो हालत बिल्कुल समीचीन नहीं थे. कारण कुछ भी हों, कई हैं ! इसी दौरान ओबीओ के सबसे सक्षम व क्रियाशील इकाई अपने प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकर जी का लम्बी बीमारी के कारण एक तरह से विलग रहना भी हमारे धैर्य की नित नयी परीक्षा लेता रहा. इसीतरह वायु सेना के अपने दायित्व के कारण सियाचिन ग्लैशियर पर स्थानान्तरित प्रबन्ध समिति के मानद सदस्य भाई राणा प्रताप सिंह की अनुपस्थिति भी मंच के लिए अपूरणीय खालीपन सी रही है. हाँ, शुभ सूचना यही है कि दोनों महानुभावों की अनुपस्थिति यथाशीघ्र समाप्त होने जारही है. लेकिन... .लेकिन नये और उत्साही सदस्यों की उत्फुल्ल भागीदारिता ने सकारात्मक माहौल के पुनः व्यापने के संकेत दे दिये हैं. यह एक शुभ सूचना, एक शुभ संकेत है.

 

आयोजन के रचनाकारों और उनकी प्रविष्टियों की समीक्षा – 

एक तथ्य जो उभर कर कर सामने आया वो ये कि इस आयोजन में अधिकतर प्रतिभागी पहली-पहली बार शिशु/बाल-रचना पर कलमगोई कर रहे थे. ओबीओ के मुख्य प्रबन्धक श्री गणेश बाग़ी के शब्दों में कहा जाय तो बाल-रचनाओं पर हाथ आज़माना कोई बच्चों का खेल नहीं है. इन्हीं भावों को अपने शब्दों में निवेदित किया अपनी प्रथम बाल-रचना से ही अपनी संवेदनशीलता का लोहा मनवाने वाले आदरणीय अरुण निगमजी ने, कि, बाल-रचनाएँ रचनाकर्म और विधा के लिहाज से कत्तई सहज नहीं हुआ करतीं. तभी तो इस बार के आयोजन में बाल-समस्या, बाल-दशा या बाल-वातावरण पर कई-कई मान्य रचनाकारों की प्रविष्टियाँ अति उच्च स्तर की रहीं मगर वे बाल-रचना की संज्ञा से ही खारिज़ हो गयीं.

 

इस आयोजन की महती उपलब्धि यह भी रही कि बच्चों पर हुई रचनाओं और बाल-रचनाओं के अंतर को ओबीओ के पटल पर पहली दफ़ा स्पष्टता से रेखांकित किया गया. आयोजन के दौरान सभी रचनाओं पर उदारता से अपनी बातें कहती टिप्पणियों, प्रतिक्रियाओं और यदा-कदा होती अपरिहार्य परिचर्चाओं के कारण बहुत कुछ स्पष्ट हो कर समझ में आता गया. बालकों या बालिकाओं के ऊपर या उनकी दशा पर लिखी रचनाओं का पाठक प्रबुद्ध और सचेत वयस्क होता है, कि बच्चे. जबकि सार्थक शिशु/बाल-रचनाओं का प्रमुख पाठक बच्चा ही होता है. शिशु या बाल-रचनाएँ अपनी संप्रेषणीयता के लिहाज से बच्चों के मनस और उनके मनोविज्ञान को संतुष्ट करने के उद्येश्य को ही जीती हैं. फिर, शिशु-बच्चा-किशोर-युवा की संज्ञा पर खुल कर चर्चा हुई. शिशु की अवस्था का पाठक जो कुछ चाहता है वह बच्चे के वर्ग के पाठक की आवश्यकता से एकदम अलग होता है. जबकि कैशोर्यावस्था की पाठकीय मांग अलग ही होती है. वहीं अपनी गहरी हो रही समझ और आयु-अवस्था की आवश्यकतानुसार युवा लघु-वयस्क की तरह होता है, जिसमें वयस्कों के अपार अनुभव की अभी कमी होती है.

 

आयोजन के दौरान शिशु/बाल-रचनाओं के अत्यंत सफल रचनाकारों में जहाँ भाई कुमार गौरव अजीतेन्दु, भाई संदीप पटेल दीप, डॉ. प्राची सिंह, आदरणीय अरुण निगमजी, भाई गणेश बाग़ीजी, आदरणीय अमिताभ त्रिपाठी प्रमुखता से स्वीकारे गये. वहीं आयोजन के दौरान अपनी परिपक्व समझ और मुखर आत्म-विश्वास से सभी सदस्यों को चौंकाया भाई बृजेश नीरज जी ने. इन सभी रचनाकारों में आदरणीया प्राचीजी की पूर्व प्रकाशित इक्का-दुक्का रचनाओं को छोड़ दिया जाय तो सभी के सभी साहित्य की इस विधा में पहली बार ही प्रयासरत हुए थे. अर्थात, इन रचनाकारों की रचनाओं की सफलता उनकी अति उन्नत संवेदनशीलता के कारण रही. इस क्रम में आदरणीया राजेश कुमारी जी तथा आदरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी के नाम प्रमुखता से लेना चाहूँगा जिन्होंने इस विधा की रचनाओं के माध्यम से अपनी असीम रचना-संभावनाओं से मंच को आह्लादित किया. ख़ाकसार की रचना को भी पाठकों का अच्छा प्रतिसाद मिला है. इसके लिए मैं सभी पाठकों का हृदय से आभारी हूँ.

 

अपनी रचनाओं की विधाओं के निर्दोष अमलीकरण से मंच को चकित कर देने वालों में भाई आशीष सलिल का नाम सबसे प्रमुखता से उभर कर आता है. आपके दोहे उत्कृष्ट बाल-दोहों का अत्युत्तम उदाहरण की तरह सामने आये हैं. आदरणीया गीतिका वेदिका की उत्फुल्लता से जहाँ आयोजन का वातावरण समरस रहा, वहीं यह भी महसूस किया गया कि आपकी रचनाओं को विधाजन्य सक्षम सहयोग मिले तो उनका दायरा और उनकी पहुँच दोनों आशातीत रूप से बढ़ सकती हैं. इस क्रम में भाई राम शिरोमणि जी का निष्ठावान आचरण, उनकी गहन लगन और उनका अनथक रचना-प्रयास इस मंच पर उदाहरण सदृश है. नये रचनाकारों में आदरणीया कुन्ती मुखर्जी, भाई केवल प्रसादजी, आदरणीया ज्योर्तिमय पन्तजी, आदरणीया वन्दना तिवारीजी, आदरणीया विजया श्रीजी, आदरणीया शिखा कौशिकजी के रचना-प्रयास को सभी ने सराहा. इसके साथ-साथ आदरणीया सीमा अग्रवालजी की अहम् मौज़ूदग़ी ने माहौल को सार्थक बनाये रखा जिसके बिना आयोजन की सफलता की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी. आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवालाजी की सक्रियता तथा सकारात्मकता इस मंच की थाती है.

 

एक महत्वपूर्ण तथ्य जिसे साझा न किया गया तो इस रिपोर्ट की सार्थकता ही न्यून हो जायेगी, वह है, रचनाओं पर मिली टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं पर रचनाकारों की व्यक्तिगत सोच. इस संदर्भ में सदा-सदा से स्पष्ट किया जाता रहा है कि यह मंच मात्र सुनाने का कोई सोशल-साइट टाइप स्थान नहीं है, जहाँ अनावश्यक वाहवाहियाँ किसी उभरते रचनाकार को आत्म-मुग्धता के चरम सोपान पर जा फेंकती हैं, जो उतना ही छलावा हुआ करता है जितना कि रचनाकार का आत्म-विश्वास. इस मंच की परिपाटी रही है प्रस्तुत रचनाओं पर आवश्यक और सकारात्मक टिप्पणियाँ. ताकि एक रचनाकार अपने रचनाकर्म में हर प्रकार के उत्थान के लिए प्रयासरत हो. तदोपरान्त रचना-प्रयास को हुए लाभ के कारण उसमें अदम्य किन्तु सार्थक आत्म-विश्वास का संचरण हो. इस लिहाज से सकारात्मक ही नहीं नकारात्मक टिप्पणियों का महत्व भी बहुगुणा हो जाता है.

 

इस आयोजन में भी पूर्व के आयोजनों की तरह कई रचनाकार अपनी प्रविष्टियाँ डाल कर दुबारा देखने तक नहीं आये कि उन प्रस्तुतियों का सचेत पाठकों की दृष्टि में स्थान क्या रहा. दरणीया सरोज गुप्ता जी ने उपयुक्त अंतराल पर दो रचनायें प्रस्तुत कीं. लेकिन यह भी देखना उचित नहीं समझा कि उन रचनाओं का हश्र क्या हुआ. आपकी दोनों रचनाएँ गलत स्थान पर पोस्ट हुईं, जिसमें से एक रचना को बलात् डिलीट तक करना पड़ा. आदरणीय अमिताभ त्रिपाठी जी की रचना तो लगभग सभी सदस्यों-पाठकों से भूरिशः बधाइयों की हक़दार रही, लेकिन आप अपनी व्यस्तता के मद्देनज़र दुबारा नमूदार तक नहीं हो पाये. इस आयोजन में बाल-रचना की विधा पर आपकी रचना भी आपका प्रथम प्रयास ही थी. कई रचनाकार अपनी अभी तक की आदत के अनुसार रचना प्रस्तुत करते तो हैं लेकिन उन पर मिली सलाहों को अपनी जानी-अनजानी सीमाओं के कारण अमल नहीं पाते. कारण यह होता है, उनकी रचनाओं में दीखता महीनों पुराना विधाजन्य दोष आजतक बना हुआ है. इस रचनाकर्म का क्या उद्येश्य है यह ख़ाकसार की समझ से कत्तई बाहर है.

 

रचनाकारों को यह अवश्य मानना होगा कि रचनाकर्म मनस रंजन मात्र न होकर एक अति महत्वपूर्ण सामाजिक दायित्व भी है. एक रचनाकार अपनी संवेदनशीलता और तथ्यों को परख लेने की अपनी नैसर्गिक तथा विशेष शक्ति के कारण सामान्य जन से विशिष्ट हुआ करता है. इस विशिष्टता को रचनाकार जाया न जाने दें.

कुल मिला कर एक सफल आयोजन के बाद जिसमें नये प्रतिभागियों की संख्या आनुपातिक रूप से अधिक रही, हम अधिक आत्मविश्वासी हुए हैं. किन्तु समय की मांग यही है कि अपने उद्येश्य और अपनाये गये कार्य के प्रति श्रद्धानत हो कर पुनः रचनाकर्म और नये आयोजन के लिए जुट जायँ. 

नये आयोजन में पुनः इसी ऊर्जस्विता और तार्किकता के साथ पुनः भेंट होगी.  अस्तु.. .

 

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रिपोर्ट की तथ्यात्मकता को अनुमोदित करने केलिए आपका सादर आभार, आदरणीया कविता वर्माजी. ..

आदरणीय गुरुदेव श्री सादर प्रणाम!
ओ बी ओ महा उत्सव अंक -३० वें की अपार सफलता के बाद आपके विचार एवं आयोजन की विस्तृत समीक्षा पढ़कर आनंद की सीमा नहीं रही. मेरा स्वयं का अनुभव है मैं ओ बी ओ से लगभग 7-8 महीनों से जुड़ा कुछ आयोजन में सहभागी बना पाया और कुछ में नहीं. परन्तु जितनी आनंद की अनुभूति ओ बी ओ महा उत्सव अंक -३० में प्राप्त हुई पहले कभी नहीं हुई. और संभवतः यह पहली बार हुआ कि आयोजन के बाद आपके द्वारा विस्तृत समीक्षा की गई, आपकी इस सुन्दर समीक्षा ने आयोजन का स्तर एवं मान और बढ़ा दिया है. यह मेरा सौभाग्य है की मैं इस आयोजन में प्रतिभागी बन सका. मेरी ओर से आयोजन में सम्मिलित सभी प्रतिभागियों को भूरि-भूरि बधाई और साथ ही साथ आपको ह्रदय के अन्तःस्थल से अनेक अनेक बधाई आपका हार्दिक आभार. सादर

भाई अरुनजी, रचनाकर्म के लिहाज से मंच पर दोनों उत्सव (लाइव महा-उत्सव और छंदोत्सव) और तरही मुशायरा सार्थक वर्कशॉप की तरह ही आयोजित होते हैं, जहाँ रचनाकर्म मात्र सुनाने का साधन नहीं हुआ करता. बल्कि सुनाने की प्रक्रिया को मांजने का स्थान होता है. आप जैसे उत्साही रचनाकर्मी ही किसी मंच की शोभा होते हैं जो अपनी सार्थक उपस्थिति से मंच के वातावरण का समुचित लाभ भी लेते हैं.

//संभवतः यह पहली बार हुआ कि आयोजन के बाद आपके द्वारा विस्तृत समीक्षा की गई//

ऐसा एकदम नहीं है, भाई. रिपोर्टें या रिपोर्ताज़ या रपट सम्पन्न हो गये आयोजनों का एक अन्योन्याश्रय भाग हुआ करता था. जिसकी प्रतीक्षा हर सदस्य बेसब्री से किया करता था. प्रधान सम्पादक के सौजन्य से आयोजनों की समाप्ति के बाद रिपोर्टें अपलोड हुआ करती थीं. कई बार मुझ ख़ाकसार द्वारा भी इस दायित्व का निर्वहन किया गया है. चूँकि विगत के कई आयोजनों में ऐसी कोई विशेष चर्चा न हुई, अतः रिपोर्टें रुटीनी होने लगीं.  फिर, संकलित रचनाओं के साथ ही कुछ महत्वपूर्ण विन्दुओं को साझा कर लिया जाने लगा.  आदरणीय योगराजभाईसाहब का स्वास्थ्य-लाभ के क्रम में मंच से तात्कालिक और कुछ दिनों के लिए विलग होना इस क्रम में व्यवधान का महती कारण बन गया.

भाई, अरुण जी, आप सात-आठ महीनों से ओबीओ पर सक्रिय हैं. आयोजनों और उनके साथ की रचनाओं को कमसे कम देख लिया जाना आपके रचनाकर्म के लिहाज से बहुत लाभकारी होता. कारण कि, आयोजनों के दौरान हुई टिप्पणियों और चर्चाओं से कई-कई महत्वपूर्ण तथ्य खुल कर बाहर आते हैं. इसीकारण पुराने आयोजनों के लिंक मंच पर एक तरह से दस्तावेज़ की तरह से तो हैं ही, एक ऐसे साक्षी की तरह भी हैं जो सभी सदस्यों की रचना संबंधी प्रगति का आईना हैं.

भाई, हम तो सोच रहे थे कि आप अबतक कईएक आयोजन को पूरी तरह खंगाल चुके होंगे. और उनपर अपलोड हुई रिपोर्ट पढ चुके होंगे. 

आदरणीय श्री योगराज जी के स्वास्थ्य की जानकारी आज हुई. प्रार्थना है कि शीघ्र ठीक हो कर हमें मार्गदर्शन दें. 

आपकी रिपोर्ट तथ्यात्मक और उर्जा देने वाली है कि किस प्रकार आगे बढ़ा जाए. आभार परम आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी. 

सूखी  मिटटी की तरह मंच पर आया था. आप सब के स्नेह से भीग कर टूटी फूटी आक्रति में परिवर्तित हुआ. जो लक्ष्य आपका है वो मेरा भी है, यहाँ  से मशाल ले जा कर जहाँ मौका मिलता है लक्ष्य को पाने का प्रयास करता हूँ. और लोगों को बढ़िया साहित्य लिखने को, नये लोगों को प्रोत्साहित करता हूँ.

मुझे अच्छा लग रहा है की जिस प्रकार हमारे साथी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. मेरा सीना गर्व से फूल रहा है. 

ओ.बी.ओ. टीम का आभार है ऐसा अवसर देने का. 

मैं ज्यादा लिख नहीं पाता. बोल लेता हूँ. आप मेरी भावनाओ को अवश्य समझेंगे. 

आयोजनों हेतु सादर सस्नेह हार्दिक शुभ कामनाएं.

आदरणीय प्रदीपभाईजी, मंच पर आपकी अहम मौज़ूदग़ी आपकी सकारात्मकता और संवेदनशीलता का जीता-जागता उदाहरण है, आपने जिस उत्फुल्लता और उदारता से मेरे प्रयास को मान दिया है वह आपकी विशाल-हृदयता का भी परिचायक है.

सादर

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

ओ बी ओ के मंच पर महोत्सव अंक ३० की सफलता के लिए सर्वप्रथम आपको बहुत बहुत बधाई

आपकी यह विस्तृत रिपोर्ट पढ़ कर आनंद बहुगुणा हो गया है और एक तसल्ली हो रही है के मंच एक बार पुनः अपनी लय में नज़र आ रहा है, मैंने भी बाल रचना लेखन में अपना प्रथम पग ही रखा है, सच कहूँ तो संसय हो रहा था के क्या मैं बच्चों के लिए लिख पाऊंगा किन्तु आप सभी के स्नेह और आशीर्वाद से यह कार्य भी संभव हो गया और आप सभी की सराहना भी मिली , सीखने सिखाने के क्रम में यह महोत्सव अपने आप में सारे रिकार्ड ध्वस्त करते हुए जिस उंचाई को प्राप्त हुआ है उससे मन प्रसन्न है, आशा करता हूँ आगे भी आपके मार्गदर्शन में ऐसे ही सार्थक उत्सव इन्ही उचाईयों के साथ नए आयाम तय करेंगे

एक बार पुनः आपको बधाई

 

सादर प्रणाम गुरुदेव

अनन्य भाई संदीपजी, आपका रचनाकर्म आपकी सचेत रचनाशीलता और मंच का अभिनव वातावरण का आईना है. अपनी रचनाओं और अपने रचनाकर्म से संभवतः आपको इसका भान होता भी होगा, जैसे कि मुझे अपनी रचनाओं को देख कर तो होता है. 

अपनी रचनाओं को समाज तक लेजाने का दायित्व एक रचनाकार का ही है, फिर भी, यह अवश्य है कि कुछ विन्दुओं के संदर्भ में कहूँ तो मैं आपके हालिया कतिपय कदमों से तनिक असंयत हूँ.

खैर आप स्वतंत्र और विशिष्ट इकाई हैं. और यह भी है, कि मंच पर परस्पर संबोधनों में शिष्टाचार अपनी सीमाएँ जीता है. हाल के दिनों में आप मानद सदस्य के तौर पर हम सब के बहुत नज़दीक हुए हैं. आपसे बहुत उम्मीदें हैं, संदीप भाईजी.

शुभेच्छाएँ.

आदरणीय गुरुदेव सादर प्रणाम सहित आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ

\\मैं आपके हालिया कतिपय कदमों से तनिक असंयत हूँ.\\
गुरुदेव कृपया अपनी बात स्पष्ट करें आपका ये कथन बड़ा ही कष्टप्रद है यदि मैने कुछ ऐसा किया हो जो आपको या इस मंच की गरिमा को ठेस पहुँचाता है तो इसके लिए मैं लज्जित हूँ
यदि भूल वश ऐसा हुआ है तो अवगत कराएँ ताकि ये कभी भी दुबारा न हो
या वह कारण भी ग्यात हो जाए की ऐसा क्यूँ हुआ

आदरणीय गुरुदेव सादर
स्नेह और आशीष बनाए रखिए

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,सर्व प्रथम महा-उत्सव अंक-३० की जबरदस्त सफलता पर हार्दिक शुभकामनाएं!  महा-उत्सव के हर पहलू पर आपका विश्लेषण सटीक है. आदरेया डॉ. प्राची जी का कहना भी एकदम सही है की रचनाकारों को अपनी रचना सुधार की ओर ध्यान देना चाहिए. यह इस मायने में भी सही है की ऐसे अवसर यदाकदा ही मिलते हैं. आदरणीय प्रदीप सिंह कुशवाहा जी की तरह मैं भी चाहता हूँ की आदरणीय प्रभाकर जी शीघ्र ही मंच पर हमारे मार्गदर्शन हेतु आयें. आपकी सुचना से मन हर्षित है.

 सच कहूँ तो इसबार के विषय के साथ मैं कुछ असहज था. एक रचना बनी थी सोचा था रविवार को लिख लूंगा किन्तु इस बार महोत्सव में रचनाओं का काउंटर जिस तेजी से  बढ़ रहा था उनको पढ़ने में ही समय चला गया. अपनी रचनाओं को समय ही नहीं दे सका.

कई दिनों बाद महोत्सव में इतनी गहमा गहमी देखने को मिली.मन आनंदित हो गया. शायद कई रचनाएं मैं पढ़ भी नहीं पाया हूँ. अवसर निकालकर अवश्य पढूंगा. सादर.

आदरणीय अशोकजी, आपका सादर आभार.. .  कि सद्यः समाप्त हुए आयोजन पर प्रस्तुत हुई रपट आपको सार्थक लगी,

आपका सादर आभार.

आदरणीय सौरभ जी, ओ.बी.ओ. लाईव महोत्सव अंक 30 की गौरवमय सफलता पर आपका हार्दिक अभिनंदन. इस आयोजन में मैंने भाग नहीं लिया क्योंकि शिशु/बालमन के लिये लिखना मेरी शक्ति, मेरी क्षमता से परे है. फिर भी मैं परोक्ष रूप से इस अंक के साथ जुड़ा रहा. आयोजन के बारे में आपका गहन संवेदनशील रिपोर्ट पढ़कर मन तृप्त हो गया. आपके विचारों की स्पष्टवादिता, लेखनी की तिर्यकता और नवीन रचनाकारों के प्रति आपके सहानुभूतिशील लेकिन विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण की प्रखरता ने न केवल आपकी वांग्मयिता को एक विशिष्ट आसन पर प्रतिष्ठित किया है बल्कि साहित्य के मैदाने जंग में इर्द-गिर्द भूपातित सैनिकों की तरह हाँफते फुफकारते असंख्य रचनाकारों, विशेषकर संपादकों के लिये स्वस्थ और ईमानदार लेखन का एक उत्कृष्ट नमूना पेश किया है. आप इसके लिये साधुवाद के पात्र हैं. ईश्वर से प्रार्थना है कि आप और आप जैसों के मार्गदर्शन में हम लोगों के इस मंच और परिवार की “ऊर्ज्वसिता” तथा “तार्किकता” अपनी सकारात्मक प्रगतिशील पहचान लिये हमेशा बनी रहे. अस्तु.

आदरणीय शरदिन्दुभाईजी, आपको मेरा गिलहरी प्रयास सार्थक लगा यह मेरे जैसे व्यक्ति के लिए अति महत्वपूर्ण तथ्य है. आपकी गुरु-गंभीर उपस्थिति से मंच की गरिमा बढ़ी है.

किन्तु, यह सुन कर मुझे अपार कष्ट हुआ है कि आप आयोजन से परोक्षतः जुड़े रहे. आदरणीय, किसी ऑनलाइन आयोजन ही नहीं किसी भी आयोजन में पाठकों/श्रोताओं की अहमियत क्या होती है यह मेरे साझा करने की मुँहताज़ नहीं.

इस मंच पर आप किसी आयोजन में भाग ले सकते हैं.  यदि आपकी प्रविष्टियों से आयोजन लाभान्वित हुआ तो  अति उत्तम, अन्यथा एक पाठक के तौर पर प्रस्तुत हुई एक-एक रचना पर आप अपने मंतव्यों से मंच और रचनाकारों को लाभान्वित कर सकते हैं.

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

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