आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया कल्पना दी, बहुत ही बढ़िया रचना कही है| लघुकथा के बीच में भी ऐसी पंक्तियाँ हों जिनका बहुआयामी अर्थ हो तो मेरे अनुसार रचना और भी प्रभावशाली हो जाती है| //“बिटिया जब तमाशे से पैसे मिलेंगे अपना दिन तो तभी निकलेगा न?"// इसी तरह की पंक्ति है| सकारात्मक अंत लिए हुए इस रचना के सृजन हेतु बधाई स्वीकार करें|
"अभी कल रात ही तो तुझे रोटी खिलाई थी ,अभी कहाँ से लाऊँ कुछ ? आज तो मिट्टी का तेल भी खत्म हो गया है, आज अगर पैसे न मिले तो घर में अँधेरा रहेगा । "// मार्मिक ,ये ही सच्चाई है विकास के वादों के पीछे की , हार्दिक बधाई प्रेषित है इस कथा पर प्रिय कल्पना जी
आ. मनन जी, प्रदत्त विषय पर अच्छी समसामयिक व्यंग्यात्मक लघुकथा प्रस्तुत की है आपने. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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